आसमां पर शाम का
पहरा हुआ सा है ।
वक्त जाने किसलिये
ठहरा हुआ सा है ।
रुक गई है जिन्दगी
उस मोड पर आकर
खुद से ही अनजान ,
यह चेहरा
हुआ सा है ।
दास्तां अपनी सुनाने
चल दिये किसको
इस शहर में हर कोई ,
बहरा
हुआ सा है ।
दूर थे वो , बेकली
थी
पास जाने की ।
पास जाकर जख्म क्यूँ ,
गहरा
हुआ सा है ।
साथ देंगी शाम तक
केवल प्रतीक्षाएं ।
सुबह से ही आज कुछ
कोहरा हुआ सा है ।