बड़ों के लिए किस्से बचपन के
- लोकेन्द्र सिंह
गिरिजा कुलश्रेष्ठ का पहला कहानी संकलन है 'अपनी खिड़की से'। भले ही यह उनका पहला कहानी संग्रह है लेकिन उनकी लेखनी की धमक पहले से मौजूद है साहित्यकारों के बीच। हाल ही में अपने स्थापना के तीन सौ साल पूरे करने वाली बाल जगत की पत्रिका 'चकमक' में उनकी कहानियां प्रकाशित होती रही हैं। झरोका, पाठक मंच बुलेटिन और सोशल मीडिया भी उनकी रचनाओं को लोगों तक पहुंचा चुका है। 'अपनी खिड़की से' में १५ बाल कहानियां हैं। हालांकि परंपरागत नजरिए से ये बाल कहानियां हैं लेकिन मेरे भीतर का मन इन्हें सिर्फ बाल कहानियां मानने को तैयार नहीं। इन १५ कहानियों का जो मर्म है, आत्मा है, संदेश है वह न सिर्फ बच्चों के लिए आवश्यक है बल्कि उनसे कहीं अधिक जरूरी बड़ों के लिए है। भाग-दौड़ के जीवन में अक्सर हमारा मन इतना थक जाता है कि हम अपने बच्चों की आवाज भी नहीं सुन पाते, उनकी संवेदनाओं को महसूस करना तो दूर की बात है। ऐसे में गिरिजा कुलश्रेष्ठ की कहानियां हमें ये सोचने पर मजबूर करती हैं कि अनजाने में ही सही कहीं हम अपने लाड़ले के बचपन के साथ नाइंसाफी तो नहीं कर रहे। हालांकि 'अपनी खिड़की से' की कहानियां खुलेतौर पर बड़ों को उनकी गलतियां नहीं बतातीं लेकिन कहानियों का मर्म यही है। ये कहानियां गुदगुदाती हैं, जिज्ञासा जगाती हैं, चाव बढ़ाती हैं, मुस्कान लाती हैं और हौले से जीवन की अनमोल सीख दे जाती हैं।
संग्रह का शीर्षक पहली कहानी के शीर्षक से लिया गया है। पहली कहानी में साधारण परिवार का बालक वचन अपने घर की खिड़की से पड़ोस में रहने वाले अमीर परिवार के बालक नीलू की गतिविधियां देखकर अपना मन उदास करता रहता है। नीलू के कितने मजे हैं। उसके पास कितने खिलौने हैं। इकलौता होने के कारण मम्मी-पापा के प्रेम पर भी अकेले का अधिकार। लेकिन, जिस दिन वह मौका पाकर नीलू के घर उसके साथ खेलने जाता है और वहां उसकी जिंदगी से बावस्ता होता है तब उसे पता चलता है कि मजे तो नीलू के नहीं उसके हैं। उसके मां-पिता कहीं भी जाते हैं तो सब भाई-बहनों को लेकर जाते हैं। वह जी भरकर साइकिल चला सकता है। कपड़े मैले होने का डर नहीं, वह मैदान में खेल सकता है। लेकिन नीलू की मां तो कितनी रोक-टोक करती है। चुपके से यह कहानी बड़ों को भी समझाइश देती है कि बच्चों के मन को समझो और उन्हें तितली की तरह आजाद रहने दो। तमाम तरह की बंदिशों में बचपन को बांधकर उन पर जुल्म न किया जाए। बच्चों को महंगे खिलौनों से अधिक अपनों का स्नेह चाहिए होता है। इसलिए दुनियादारी के बीच से अपने मासूमों के लिए थोड़ा-सा वक्त तो निकाला जाए। दूसरी कहानी 'पतंग' बड़ी महत्वपूर्ण है। माता-पिता कई बार जबरन और कुतर्क के साथ अपने विचार अपने बच्चों पर थोप देते हैं। बच्चे की खुशी जाए भाड़ में। माता-पिता की यही गलतियां कई बार उन्हें और बच्चों को असहज स्थितियों में लाकर खड़ा कर देती हैं। अब इसी कहानी के पात्र सूरज को लीजिए, वह ईमानदार, सच बोलने वाला और माता-पिता का आज्ञाकारी बालक है। उसके पिता का मत है कि पतंग उड़ाने वाले लड़कों का भविष्य निन्यानवे प्रतिशत खराब है। वे सबके सामने यदाकदा घोषणा भी करते रहते हैं कि हमारा बेटा सूरज कभी पतंग नहीं उड़ाएगा। उसे तो एक अच्छा विद्यार्थी बनना है। अब भला पतंग न उड़ाने और अच्छे विद्यार्थी बनने का क्या विज्ञान है? सूरज का मन तो पतंगों के रंगीन ख्वाब सजाता है। एक दिन पतंग उड़कर खुद ही उसके करीब आ जाती है। अब वह पिता के डर से उसे छिपाता है, झूठ भी बोलता है, इस चक्कर में वह गिरकर चोटिल भी हो जाता है। हालांकि अंत में पिता को पता चल जाता है और बेटे की खुशी को भी वो समझ लेते हैं। 'रद्दी का सामान, इज्जत वाली बात, मां, बॉल की वापसी और आंगन में नीम' बेहद रोचक कहानियां हैं। ये बड़ों और छोटों के मनोविज्ञान को उकेरती हैं। बड़ों और छोटों के बीच किन बातों को लेकर उठापटक, खटपट और अनबन रहती है और इन्हें कैसे दूर करके दोनों एक-दूसरे के नजदीक आ सकते हैं, दोस्त बन सकते हैं, इन कहानियों में बेहद खूबसूरती से इसका शब्द चित्रण किया गया है।
'कोयल बोली' निश्चित ही आपको भावुक कर देगी। आपको आपका छुटपन और छुटपन के खास दोस्त की याद दिला देगी। 'बिल्लू का बस्ता' स्कूल के शुरुआती वर्षों की यादों का पिटारा खोल देगा। स्कूल जाने की कैसी-कैसी शर्तें होती थी। मां-पिता भी कितने प्रलोभन देते थे स्कूल भेजने के लिए। हमारे बस्ते में किताबें कम खिलौने ज्यादा मिला करते थे। विद्या के नाम पर किताबों में किसी पक्षी के रंगीन पंख और पौधे की पत्तियां। कंचे, डिब्बे-डिब्बियां, किताबों से काटे गए कार्टून और फूल के चित्र न जाने क्या-क्या। उस वक्त तो यही हमारे लिए कुबेर का खजाना होता था। सबसे छिपाकर रखना पड़ता था अपना खजाना।
'सूराख वाला गुब्बारा' और 'बादल कहां गया' बड़ी मजेदार कहानियां हैं। सूराख वाला गुब्बारा का आशय चंद्रमा से है। यह धरती, सूरज और चंद्रमा के संबंध में है। मनुष्य की गलतियों की वजह से 'बादल का अपहरण' हो गया है। हवा बालक बादल को अपने साथ ले गई है। उसने फिरौती के रूप में मांगे हैं पेड़, पौधे, जंगल और बगीचे। बादल चाहिए तो हमें धरती को हरी साड़ी से सुशोभित करना पड़ेगा। प्रकृति के संवद्र्धन का संदेश देती कहानी है यह।
तो मित्रो गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने अपने पहले ही कहानी संग्रह में हमें एक भरी-पूरी फुलवारी सौंपी है। जिसके १५ पुष्पों से उठती तरह-तरह की भीनी खुशबू बेहतरीन है। लेखिका प्रस्तावना में उम्मीद व्यक्त करती हैं उनकी ये बाल-कहानियां बाल पाठकों में ही नहीं वरन् प्रबुद्ध पाठकों के बीच में भी अपना स्थान बनाएंगी। मेरा मत है कि कहानियां प्रबुद्ध पाठकों द्वारा निश्चित ही सराही जाएंगी। अपने मकान की 'अपनी खिड़की से' देखेंगे तो कहीं न कहीं ये कहानियां हमें अपने आस-पास ही बिखरी नजर आएंगी।