मंगलवार, 16 जून 2015

मिसेज शर्मा --2


मिसेज शर्मा और संगीत

आजकल जब भी कालबेल बजती है ,आने वाला चाहे कोरियर वाला हो या ऑर्डर पर पानी और घर की दूसरी चीजों वाला पर मुझे मिसेज शर्मा का ही अनुमान होता है . वह अक्सर सही भी निकलता है .
अरे क्या कर रही हो अकेली ? मैं तो समझ रही थी कि कहीं चली गई हो .-वे जब भी दिखतीं हैं यही कहतीं हैं . मैं सोचती हूँ कि ये घर में बैठे बैठे ही मेरे जाने का अनुमान लगा लेतीं हैं ?
वे आतीं हैं तो अक्सर हाथों में खुद बनाई गई या बाजार की कोई न कोई चीज होती है .
हालाँकि मेरे लिये यह नई बात नही है .आटे से लेकर अदरक अमचूर और प्याज जैसी चीजें पड़ौस से लेकर काम चलाना हमारे पड़ौस मोहल्ले में खूब चलता है .सोचा चलो इस अजनबी शहर में अपने गाँव कस्बा जैसी अनुभूति कराने वाला कोई तो मिला .
लेकिन जल्दी ही मुझे अहसास होगया कि उस व्यवहार को जारी रखना मेरे लिये मुश्किल है .एक तो यह कि मिसेज शर्मा के इस व्यवहार की अधिकता मुझे संकोच से भर देती है .लेनदेन दोनों ओर से चलता है तभी ठीक रहता है इसलिये वे जब कचौरी ,हलवा आदि कुछ दे जातीं हैं तो मैं भी उन्हें जब भी कुछ विशेष चीज नारियल के लड्डू या मँगौड़े आदि बनाती हूँ दे आती हूँ .लेकिन यह  कुछ यांत्रिक सा लगता है  एक तो हम आम तौर पर हम लोग दैनिक खानपान बहुत ही सादा रखते हैं . उन्हें देने के लिये खासतौर पर बनाना पड़ता है . दूसरे वे तुरन्त ही चाहे घर में रखा नमकीन ही क्यों न हो मेरा ही बर्तन भर कर लौटा देती हैं . मुझे जाने क्यों वह कर्ज सा महसूस होता है . आपको बता रही हूँ कि देन लेन का यह प्रसंग अन्तहीन ही रहेगा जब तक कि मैं उनकी प्लेट या प्याली को खाली ही न लौटादूँ .
मिसेज शर्मा ,इस सबकी जरूरत नही है . प्लीज आप परेशान न हों .”– मैं इस अनपेक्षित से लेनदेन से असहज होजाती हूँ  .दरअसल मैं उनसे कुछ और ही जानना ,सीखना और समझना चाहती हूँ .मेरा मतलब संगीत से है  जो अभीतक सिर्फ उनकी बातों में ही देखा है .
अरे इसमें परेशानी की क्या बात है .--वे मुझे तुरन्त रोक देतीं हैं--
 मुझे बनाने -खिलाने की आदत है .हमारे इन्दौर में तो रोज तीस-चालीस लोगों के लिये खाना बनता था .शर्माजी को भी खाने और बनाने का शौक है . जरा किचन खाली मिला ,कुछ न कुछ बनाते रहते हैं ..ये पूड़ियाँ उन्होंने ही बनवाई हैं . बोले अपनी सहेली को देकर आओ ..
खाने-पीने चीजों के साथ बहुत ही जानी-पहचानी सी कथाएं और उनसे जुड़ी प्रासंगिक कथाएं भी आतीं हैं जिनमें मेरी  दिलचस्पी एक सीमा तक ही रहती है .बल्कि कहूँ कि रहती ही नही है .
उसदिन पूड़ियाँ देने के बाद सुनातीं रहीं —ये मीठी पूड़ियाँ हैं न मेरे ससुर को बहुत पसन्द थीं . वे खाने के बड़े शौकीन थे खूब मोयन डलवाते थे शुद्ध घी का  पर खाते मेरे हाथ का बना ही ..जब और जो भी खाने का मन होता बच्चों से कहलवा देते थे . अब उनकी रुचियों की क्या बताऊँ आज तो कोई नाम भी नही जानता होगा उनके ,गुड़ के सेव ,लम्बा हलवा ..नमकपारे..होली पर खास तौर पर अनरसे बनवाते थे . बाप रे अनरसे बनाने में तो पूरी दम लग जाती है . तब मिक्सी नही हुआ करती थी ,सिल-बट्टे पर ही चावल पीसकर महीन करने होते ते वह भी शक्कर या गुड़ के साथ ..उन्हें मीठा बहुत पसन्द है . बाकी सबको मिर्च-मसाले वाला नमकीन पसन्द है और भजिये तो सभी को इतने नापसन्द है कि कुछ पूछो मत ..एक बार मैंने बनाने शुरु किये तो देवर आगए ..फिर उसी समय ननदोई और उनके दोस्त ..मैं बेसन घोलती जाऊँ ,कढ़ाई में तेल डालती जाऊँ पर प्लेटें जब देखूँ खाली ..बाप रे ..आधीरात जब बेचारे शर्मा जी आए तब उनके लिये .....
मैं शिष्टाचारवश बेमन ही हँसती रहती हूँ और वे गर्व और इस विश्वास के साथ बताती रहती हैं कि मैं उनकी जानकारियों से काफी लाभान्वित हो रही हूँ और मैं सोचतीं हूँ कि ये रसोई ,लेन देन और तमाम कथाओं से आगे बढ़ें तो कुछ अच्छा सीखने-सुनने मिले .
कभी-कभी मैं हैरान होती हूँ .आखिर ये मिसेज शर्मा वास्तव में हैं क्या . वे बिना ब्रेक लिये एक घंटा बोल सकतीं हैं . हर कला में उनके पास उस विषयक ढेर सारी बातें और जानकारी होती हैं . बस भूले से बात निकल भर जाए वे शुरु होजातीं हैं –क्या कढ़ाई ?..मैंने बहुत की है .हर तरह की .लखनवी ,कश्मीरी ,गुजराती और कितने ही प्रकार के चैन स्टिच ,क्रास ,रोप ,रनिंग ,फिशबोन...और भी बहुत सारे...
बुनाई ?..अरे बुनाई तो इतनी की है कि पूछो मत . सलाई से भी और क्रोशिया से भी .फ्राक ,,पुलोवर स्वेटर मफलर ,मौजे ,दस्ताने ,वी गला और हाईनेक जरसी ..दो से लेकर दस दस रंगों तक के डिजाइन ...स्वेटर बना बनाकर यू एस तक पहुँचाए हैं मैंने ..अरे नही सेल के लिये नही ,मेरी बहन की देवरानी का भाई है न , उसके लिये . कहता है इन्दौरवाली दीदी के हाथों से बुने स्वेटर में जो गर्माहट होती है ...ऐसे ही सिलाई भी ..अरे वो समय था कि लड़कियों को सीखने की प्रेरणा माँ-बाप देते थे . अब तो लड़कियों को लड़का बनाने पर तुले हैं लोग ..इन अकल के दुश्मनों से पूछो कि..
मिसेज शर्मा आपने बताया था कि आपने संगीत सीखा है ...मैं मूल विषय पर आने को उन्हें कई बार उकसा चुकी थी आज फिर कोशिश की .
संगीत ?..संगीत तो जीवन का ही दूसरा नाम है . संगीत की महिमा के वर्णन में एक पूरा वेद ही लिखा गया है .मेरे पिताजी कहा करते थे कि ...
आप गायन की बात कर रही थीं .”–मैंने उन्हें रोका कि कहीं पिताजी की बातें लम्बी न होजाएं .
हाँ हाँ .गायन तो मैने बताया था न ,भातखण्डे संगीत विद्यालय में सीखा था . तबला और हारमोनियम भी सीखा है .सितार और सन्तूर भी बजा लेती हूँ . बहुत सारे स्टेज प्रोग्राम किये .खूब बच्चों को भी सिखाया अब सब छूट गया .—उन्होंने इस बात को जैसे जल्दी से खत्म करने के लिये कहा .
अरे यह सब छूटता थोड़ी है . आप कोशिश करिये फिर शुरु होजाएगा .
यह तो व्यास भैया ही कितनी बार कह चुके हैं कि....
ये व्यास जी कौन हैं ?
अरे व्यास भैया को नहीं जानती ?. हर संगीतप्रेमी उन्हें जानता है . ऐसी आवाज कि सुनते ही रह जाओ .चाँदनी रात में क्षिप्रा के किनारे हम लोगों की महफिल जमती थी .कितने ही राग फूट पड़ते थे अपने आप .जौनपुरी राग तो उनका प्रिय था . मुझसे कितनी ही बार सुनते थे .कहते थे इला तेरी आवाज तो....
अपनी आवाज हमें भी तो सुनाइये .."--उनका इस तरह का बखान मेरी जिज्ञासा और बढ़ा देता है . अनावश्यक बातों से कछ कुछ खीज भी ..
सुनाऊँगी कभी ...हाँ तो मैं बता रही थी कि मैंने लड़कियों को भरतनाट्यम भी सिखाया है .लड़कियाँ तो बाप रे ..पीछे ही पड़ी रहतीं थीं जिस दिन स्कूल नही जाती वे घर आजाती थीं . लिपट जातीं कि दीदी आप स्कूल क्यों नही आईं . आपके बिना हमें अच्छा नही लगता .. उनमें बड़ी लगन थी सीखने की . पर सिखाने वाला भी तो होना चाहिये .पूरे छह घंटे देती थी बच्चों को . पीटी , डांस  योगा  गायन ..सब कुछ मुझे ही तैयार कराना होता था .  फिर बच्चे तो प्यार के भूखे होते हैं .अब देखो उन्हें आम का अचार पसन्द था तो मैंने स्कूल में पूरी बरनी रखदी थी .जब जिसे खाना है खाओ ..घर पर आतीं थीं तो मेरे हाथ का बना पुलाव खाए बिना नही जातीं थीं ..
गायन में  क्या क्या सिखातीं थीं ?”...मैंने उनकी लम्बी होती कथा को रोकते हुए पूछा .
गायन में क्या नही गाया ?..ठुमरी , ध्रुपद ..दादरा ख्याल ..सब गाया है . कई कलाकारों के साथ तबला पर संगत की है . कहरवा--धिनक धिनक ता, और त्रिताल ..ता ता तिन ता... फिर रूपक ..दादरा ,..तबला भी मैंने कितने ही बच्चों को सिखाया .चालीस से अस्सी अस्सी तक बच्चे रहते थे ग्रुप में .एनवल फंक्शन में वो शानदार प्रोग्राम होता था कि क्या बताऊँ .! आज भी लोगों के फोन आते है कि इला दीदी आप यहीं आजाओ माथुर भाई साहब तो कहते थे –इला तुम्हें संगीत तो विरासत में मिला है इसे छोड़ना मत ..
अब ये माथुर कौन है ?–मैंने सोचा लेकिन पूछा नही वरना एक और पृष्ठ खुल जाता .
मैं हैरान हूँ ..इतना सारा ज्ञान कैसे समेट रखा है मिसेज शर्मा ने . लेकिन क्यों कंजूस के धन की तरह उसे दिखाने तैयार नही होतीं . क्या वे किसी बड़े कलाकार की तरह विशेष अवसर पर विशेष श्रोताओं को ही सुनाने का सिद्धान्त रखती हैं या केवल रटी हुई बातें ही हैं ...
“आप बतातीं तो इतना रहतीं हैं ,कभी कुछ  सुनातीं तो हैं नही ....
अब तुम सुनाओ ..तुम्हारी रुचि गाना सुनने में है तो गाने में भी जरूर होगी .
मैं आपसे कह रही हूँ और आप मुझी पर डाले दे रही हैं ,यह क्या बात हुई ?”—मैं कुछ चिढ़कर बोली पर वे प्रभावित हुए बिना बोली --अरे अब तो सब छूट गया ...छोड़ना पड़ा .न छोड़ती तो बच्चे कैसे बनते ? सुनील बड़ी कम्पनी में मैंनेजिंग डाइरेक्टर है . लड़की सी ए होगई . बच्चे बन गए तो जिन्दगी सफल ...
सही कहा पर अब तो आप फ्री हैं एकदम..
अरे कहाँ !.. जब तक जीवन है मुक्ति कहाँ !..अच्छा चलती हूँ सुरभी का फोन आने वाला होगा ..
कौन सुरभी ..?”-न चाहते हुए भी मैं पूछ बैठी तो वे जाते जाते रुक गईं.
अरे उन्ही श्रीवास्तव भाई साहब की बेटी,जो हमारे पड़ोस में रहते थे . मैने बताया था न ? जरा सी थी तभी से हमारी जान बन गई थी . बहुत ही प्यारी थी . मेरे हाथों से ही खाती-पीती थी . मेरे हाथों से ही नहाती और तैयार होती थी अपनी माँ के पास केवल रात में जाती थी .वह हमसे इतनी हिल गई थी कि रमेश भाई साब ने ...अरे वही सुरभी के पिता .कह दिया बहन जी सुरभी के लिये लड़का भी आप ही ढूँढ़ना...और कन्यादान भी .सुरभी आपकी ही बेटी है ..सुरभी आज भी .....”--वे  बड़ी देर तक लगातार बोलतीं रहीं..
अब भी बोलती रहतीं हैं .तमाम आग्रह के बावजूद मेरी गाना सुनने की चाह अभी तक तो पूरी नही हुई . आप क्या कहते हैं ?


सोमवार, 1 जून 2015

मिलिये मिसेज शर्मा से

मिसेज शर्मा के पडौस में आने का समाचार मेरे लिए वैसा ही था 
जैसा अखबार के कूपन पर इनाम निकलने का होता है .
मिसेज शर्मा यानी इलादेवी मुझे अचानक ही तब मिलीं थी जब मैं सडक की भीड़ में अकेली चलती हुई इस शहर की भाषा की और भाषा से अधिक सोच की अजनबियत से थोड़ी मायूस थी .
वैसे अब यहाँ भाषा की कोई समस्या नहीं है .यह हिन्दी की सरलता या सरसता कहें या लोगों में सीखने की ललक ( जरुरत भी कह सकते हैं ) कि हिन्दी बड़ी आसानी से अपनी जगह बना लेती है .मैंने देखा है कि टूटी-फूटी ही सही यहाँ कई स्थानीय लोग भी हिन्दी बोलते हैं ,बोलना सीख रहे हैं जबकि लगभग आठ सालों में विचार होने के बाद भी हम लोगों ने कन्नड़ नहीं सीखी है .ऑफिस और मित्रों में प्रशान्त आदि अंग्रेजी से काम चला लेते हैं और मैं अभी छुट्टियों में ही यहाँ आती हूँ. फिर भी अगर यहाँ स्थायी रहने का विचार हुआ , तब कन्नड़ तो सीखनी ही पड़ेगी क्योंकि उसके बिना यहाँ की ‘जमीन’ से नहीं जुड़ा जा सकता और बिना जमीन से जुड़े लेखन कैसे हो सकता है ! खैर...
मैं बता रही थी कि भाषा के अपरिचय से अधिक समस्या यहाँ व्यावहारिक व भावनात्मक अपरिचय की है हमारे ही शहर के लोग यहाँ आकर अजनबी से हो गए हैं .ऐसे में मिसेज शर्मा का मिलना किसी सुखद घटना से कम नहीं लगा .
उस दिन एक सब्जी की दुकान पर मैंने उन्हें सब्जीवाली से ठेठ हिंदी में बहस करते देखा था .गेहुँआ रंग ,स्थूल शरीर ,किनारी वाली लाल साड़ी , उम्र पचपन से ऊपर ही होगी जो शारीरिक तौर पर ही लगती थी .आवाज का जोश और आँखों की चमक किसी युवती से कम नहीं थी . और बोलने का लहजा एकदम घरेलू . मुझे प्रसन्नता भरा विस्मय हुआ .पूछे बिना न रह सकी– आप कहाँ से हैं ?
एम पी से .” उन्होंने बिना देखे ही कहा और फिर देखकर इस तरह खिल उठीं मानो वे मेरा ही इन्तजार कर रहीं थीं ---अरे ,आप भी शायद....मैंने तो देखकर ही पहचान लिया कि ये जरुर अपनी तरफ की हैं . मैं चमत्कृत . लहजे में इतना अपनापन ?
इसके बाद तो परिचय का जैसे पिटारा खुल गया .चलते-चलते ही उन्होंने बड़े अपनेपन के साथ अपना इतिहास भूगोल बता दिया कि वे इंदौर व उज्जैन से ताल्लुक रखतीं हैं . तीन-तीन विषयों में स्नात्तकोत्तर हैं .समाजशास्त्र ,अर्थशास्त्र और राजनीतिशास्त्र . दस-पन्द्रह साल अध्यापन भी किया है .पति ‘डीआरडीओ’ में थे अब रिटायर हो गए हैं .दो बच्चे हैं .बड़ी बेटी है जो पति के साथ मुंबई में है . बेटा छोटा है . उसकी अभी चार महीने पहले शादी हुई है . अभी वह यू एस गया है तीन माह के लिए तब तक के लिए वे बहू के साथ हैं वगैरा..वगैरा लेकिन सबसे अच्छी जानकारी यह हुई कि वे कलाकार हैं,. बुनाई ,कढाई ,पेंटिंग , डांस ,तबला ,हारमोनियम सितार ,गायन सबमें मास्टर ..वाह, ऐसे लोग भला कहाँ मिलते है. आसानी से.....
मैंने सोचा ,काश मिसेज शर्मा मेरे पड़ोस में ही होतीं .  
और देखिये ,मिसेज शर्मा आखिर हमारे पडोस में आ ही गईं .वह भी बगल वाले फ़्लैट में .
देखो तुम्हारा स्नेह खींच ही लाया . वे उसी दिन बड़े उत्साह से बोलीं .
मैं बहुत खुश हूँ कि अब आप बगल में ही आगईं हैं .वास्तव में मैं यही चाह रही थी . मुझे उस दिन विश्वास हो गया कि सच्चे दिल से चाही गई बात जरूर पूरी होती है .
यह कोई पूर्वजन्म का फल है . सच्ची कहती हूँ कि मेरा लगाव इस तरह कभी किसी से नहीं हुआ .एक थे श्रीवास्तव भाईसाहब ..लखनऊ में हमारे मात्र दो साल पडौसी रहे पर जो रिश्ता बना आज तक है . दीदी फोन पर आज भी रोतीं हैं कि इला छोड़ क्यों गई हमें ?
यह भी संयोग है .जब मन और विचार मिल जाते हैं तब ...मैं कुछ कहना चाहती थी पर वे बीच में ही बोल पड़ीं  –जब जब जिसको जिससे मिलना होता है ,मिलता है और यकीन करो कि सचमुच मिलता है ...अब तुम्हें क्या बताऊँ बहन  ! मेरे पिताजी बहुत बड़े ज्योतिषी थे .जो बताते थे सही होता था .उन्होंने संदीप( उनका बेटा ) के जन्म से पहले ही बता दिया था कि इस बच्चे का पिता से छत्तीस का आंकड़ा रहेगा .सो है .एक दूसरे को चाहते हुए भी विचार बिलकुल अलग होंगे और वही हुआ .ऐसे ही उन्होंने मेरी बुआ के देवर के बारे में कह दिया था कि जेठ की पहली अष्टमी इसके लिए भारी है . होसकता है कि....ओ फ़्फो..ठीक अष्टमी के दिन ही ..इत..नाsss...सुन्दर लड़का ..मुंबई से दो बार बुलावा आया था ..माडलिंग के लिए ..फूफाजी ने साफ़ मना कर दिया नहीं तो सोचो कि आज उसकी क्या लाइफ होती .
मिसिज शर्मा होनी को कौन टाल सकता है .
टल जाती है ! ईश्वर से बड़ा कुछ भी नहीं .जहर को अमृत करदे .अंगारों को बर्फ बनादे ....ईश्वर वो भजन नहीं सुना ?...जहर का प्याला राणा जी ने भेजा .मीरा ने बहुत सुन्दर-सुन्दर पद लिखे हैं ..कितना दर्द हैं उनके पदों में !
हाँ यह तो है...उनके पदों को भीमसेन जोशी,लता मंगेशकर जैसे बड़े गायकों ने बड़े .....”--मैंने कहा पर कुछ और कहने से पहले  वे बोल पड़ीं--
भीमसेन जोशी तो उज्जैन कई बार आए .  भैया के यहाँ ही रुकते थे ."
आप मिली हैं उनसे ."
"मिली हैं !"–वे मेरी अल्पबुद्धि पर चकित हुई –'अरे घंटों तक सामने बैठकर उनको सुना है ..व्यास भैया के घर में ..'  
आपको संगीत में काफी रुचि जान पड़ती है .
 “अब तुम्हें क्या बताऊँ तुम कभी व्यास भैया से पूछना कि रुचि ही नही मेरा कितना दखल रहा है गायन और वादन दोनों में . दो दो बजे तक गीत-संगीत चलता था . बहुत सारे बड़े बड़े कार्यक्रमों में गा चुकी हूँ . मुझे खुद पिताजी साइकिल पर बिठाकर ले जाते थे और तबतक बैठे रहते थे जबतक मेरी प्रस्तुति नहीं हो जाती समय का पता भी नहीं चलता था .लोग आसन जमाए बैठे रहते थे . सुनते रहते थे .कम से कम दस बार तो चाय के साथ ड्रायफ्रूटस के लड्डू हो जाते थे . खटाई खाना तो मना था.. ..मेरे पिताजी ने बहुत त्याग किया ..उन्ही की बदौलत मैंने सब सीखा .गाना और तबला ,सितार ,हारमोनियम ,..
वाह..—मेरे मुंह से निकल पड़ा .मुझे विश्वास होगया कि वे संगीत के क्षेत्र में अच्छा खासा दखल रखतीं हैंखैरागढ़ ,भातखंडे ,बिलावल ,खमाज ,काफी ,जौनपुरी ,भीमपलासी आदि राग , रागों के गायन का समय ..तीन सप्तक और जाने कितनी बातें उनके प्रगाढ़ संगीत-ज्ञान का परिचय दे रहा था . अब तो मिसेज शर्मा का गायन सुनना जरूरी होगया भले ही इस क्षेत्र में मेरी जानकारी कुछ खास नहीं हैं लेकिन अच्छा गीत-संगीत सुनना किसे अच्छा नही लगता .
मिसेज शर्मा आप हमें भी कुछ सुनाइये ना ..
अरे अभी ,वे किसी स्थापित गायक के विश्वास से बोलीं ---

सुनना कभी ..अभी तो देखती हूँ क्या क्या फैला पड़ा है . यहाँ आकर भूल ही गई .मैं भी कहाँ –कहाँ की बातें ले बैठी . सच कहूँ मैं इतनी बातें किसी से करती नहीं हूँ .तुमसे जाने किस जन्म का ...नहीं सच्ची कुछ तो है ..अच्छा फिर आती हूँ अभी ..
( जारी.....)