अगर प्रेम विश्वास रहे तो
साथ न छूटेगा .
अन्तर को जोड़ा जिसने
वो तार न टूटेगा .
संकल्पों के बीज भरी
फसलें लहराती हों
मोड़ मोड़ पर जहाँ हवाएं
फागुन गाती हों .
वहाँ लुटेरा कोई भी
खलिहान न लूटेगा .
अगर प्रेम विश्वास रहे...
यहाँ वहाँ से टुकड़े ले
जो भवन खड़ा करते हैं
सहज प्रवाहित धारा में
चट्टान अड़ा करते हैं .
होंगे वे निःशब्द
समय जब कारण पूछेगा .
मनमानी को जो अपना
अधिकार समझते हैं .
पकी फसल पर जो
बनकर अंगार बरसते हैं
पर कब तक ,एक दिन तो
घट कच्चा है ,फूटेगा .