शनिवार, 8 जनवरी 2011

अनजाने से सच

हुए, हादसे भी अपने 
 उनको अफसाने हैं । 
जीवन के कुछ राज रहे 
 अब तक अनजाने हैं ।

 झूठ बोलकर भी वो सच्चे, 
हम झूठे सच कह कर । 
सदा हाशिये पर ही हैं 
 हम मुख्य कथानक होकर । 
उनके दुख तो दुख हमारे सिर्फ बहाने हैं । 
जीवन के ये राज.... 

सुविधाओं पर उनका ही हक 
फिर भी रोते हैँ । 
उनके बिखराए मलबे को 
 हम ही ढोते हैं । 
फिर भी ,
गीत अराजकता के उनको  गाने हैं । 
जीवन के ये राज....

 छूट कहाँ पढने की 
 अब हैं सिर्फ परीक्षाएं । 
पास-फेल करना 
उनकी मर्जी है, जो चाहें । 
गिने-चुने उत्तर ही रटने और रटाने हैं 
 जीवन के ये राज.... 

क्या गठरी को खोलें 
 उसमें धूल भरी होगी 
 उम्मीदों की तितली 
कबकी दबी मरी होगी । 
फिर से जी उठने के किस्से हुए पुराने हैं । 
जीवन के ये राज रहे.
अब तक अनजाने हैं । 
अपनी इस हालत के हम खुद भी हैं जिम्मेदार । हमदर्दी के याचक बन कर रहे उन्ही के द्वार । जिन्हें हमारी खबरों से अखबार चलाने हैं । जीवन के ये राज रहे अबतक अनजाने हैं ।