शनिवार, 3 अप्रैल 2021

तुम अतुलनीया

जिया की याद में --

 

नफरत को अनदेखा करके
मन में बचाए रखना
केवल स्नेह  ,
प्रतिशोध व ईर्ष्या की जगह 
हदय में निरन्तर  निस्रत
वात्सल्य ..प्रेम , ममत्व .
और ,
कटुता को भुलाकर हर जगह 
खोजना  केवल माधुर्य ---
यह तुम्हारी  ही दृष्टि थी माँ !

जब हम तुम्हारी तरह से सोचते थे
तब कितना आसान था सब कुछ ।
सब कुछ यानी --
कुछ भी मुश्किल नही था , 
कुछ भी...
जब से हम अपनी तरह सोचने लगे हैं
सन्देह व अविश्वास लग गया है हमारे साथ ।
हमें दिखते हैं केवल दोष ,अभाव
महसूस होते हैं ,
अपनों में  छल और दुराव
मन होगया है ,
गर्मियों वाले नाले की तरह ।
कद-काठी से छोटे दुशाले की तरह ।
अब समझ में आता है कि
हमारे आसपास क्यों है इतनी अशान्ति
श्रान्ति और क्लान्ति
और यह  भी कि ,
क्यों तुम्हें
अतुलनीया कहा जाता है माँ !