जिया की याद में --
नफरत को अनदेखा करकेमन में रखना
केवल स्नेह को ,
प्रतिशोध व ईर्ष्या की जगह
रोपना--- वात्सल्य ..प्रेम , ममत्व
और ,
कटुता को भुलाकर
खोजना माधुर्य को,
हर जगह...
यह तुम्हारी दृष्टि थी माँ ।
जब हम तुम्हारी तरह से सोचते थे
तब कितना आसान था सब कुछ ।
सब कुछ माने--
कुछ भी मुश्किल नही था ,
यह तुम्हारी दृष्टि थी माँ ।
जब हम तुम्हारी तरह से सोचते थे
तब कितना आसान था सब कुछ ।
सब कुछ माने--
कुछ भी मुश्किल नही था ,
कुछ भी...
जब से हम अपनी तरह सोचने लगे हैं
सन्देह व अविश्वास लग गया है हमारे साथ ।
हमें दिखते हैं केवल दोष ,अभाव
जब से हम अपनी तरह सोचने लगे हैं
सन्देह व अविश्वास लग गया है हमारे साथ ।
हमें दिखते हैं केवल दोष ,अभाव
महसूस होते हैं ,
अपनों में छल और दुराव
मन होगया है ,
गर्मियों वाले नाले की तरह ।
कद-काठी से छोटे दुशाले की तरह ।
अब समझ में आया है कि
हमारे आसपास क्यों है इतनी अशान्ति
श्रान्ति और क्लान्ति
और यह भी कि ,
क्यों तुम्हें
अतुलनीया कहा जाता है माँ !
अपनों में छल और दुराव
मन होगया है ,
गर्मियों वाले नाले की तरह ।
कद-काठी से छोटे दुशाले की तरह ।
अब समझ में आया है कि
हमारे आसपास क्यों है इतनी अशान्ति
श्रान्ति और क्लान्ति
और यह भी कि ,
क्यों तुम्हें
अतुलनीया कहा जाता है माँ !
बहुत सुंदर भाव । माँ के सामने भला कौन टिक आया है ।
ReplyDeleteआभार संगीता दी
Deleteबहुत सुंदर लिखा गिरिजा दीदी ....माँ का तो मुकाबला ही नहीं हो सकता🙏🏻
ReplyDeleteबहुत स्नेह के साथ धन्यवाद ब्लाग पर आने के लिये
Deleteबहुत सुन्दर् और सशक्त।
ReplyDeleteमाँ को नमन।
प्रणाम शास्त्री जी
Deleteमाँ को शत शत नमन !
ReplyDeleteआभार अनीता जी
Deleteआंखें नम हो आईं
ReplyDeleteदीदी ....
Deleteसच में ,मां के लिए इससे अच्छे भाव व्यक्त नहीं किए जा सकते 🙏
ReplyDeleteबहुत सूना है मन उनके बिना
Deleteजिया की स्मृति को ऐसे शब्द देना और उनकी सीख को इस तरह याद करना, सचमुच अतुलनीय है दीदी! वे जहाँ भी हों, आपको आशीष दे रही होंगीं! मेरा भी सादर प्रणाम जिया को!!
ReplyDeleteबहुत सुकून मिलता है आपके शब्दों से
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