“मम्मी ...!”
ईशान बिस्तर में से ही चिल्लाया . उसकी आँखें बन्द थीं
और सिर तक चादर ओढ़े हुए था मतलब सीधा था कि वह अभी सोना चाहता था . ईशान को बचपन से
ही सुबह देर तक
जागने की आदत है .फिर चाहे उससे गरमागरम जलेबियों का
नाश्ता क्यों न छूट जाए ..या रौनक पापा के साथ नहर तक सैर कर आए और उसे चिढ़ाते
हुई बताए कि सैर में उसे बहुत मज़ा आया . उसने बेहद खूबसूरत सारस का जोड़ा देखा .
जो जागत है सो पावत है जो सोवत है सो खोवत है ..
“जा जा अपनी कहावतों का ज्ञान कहीं और जाकर
बाँट मेरी नानी ...”
दस-बारह साल से ईशान बाहर ही रहा है . . पहले बी. टेक. और एम
टेक के लिये और नौकरी के कारण.. अभी हफ्ताभर पहले ही वह बैंगलोर से आया है . वहाँ एक
मल्टीनेशनल कमपनी में शानदार नौकरी है...बढ़िया फ्लैट ..सारी सुविधाएं ..लेकिन करोना
संक्रमण के कारण हुए ल़ॉकडाउन में कम्पनी ने घर से ही काम करने की अनुमति दे दी है
. माँ ने आग्रह किया कि अपने घर आकर ही काम करले . इसी बहाने कुछ साथ रह लेगा
..कितने सालों से साथ रहने का मौका ही नहीं मिला .
मैट्रो सिटी की जिन्दगी और कम्पनी में काम करने के समय
ने ईशान की सुबह देर तक सोते रहने की आदत को और मजबूत कर दिया है . बैंगलोर में
फ्लैट बन्द करने के बाद बाहर की कोई आवाज
नहीं आती . वैसे भी वहां इस बात का ध्यान रखते हैं कि उनके कारण किसी को परेशानी न
हो . लेकिन यहाँ तो पूरी गली जैसे हमारे घर से निकलती है . साइकिल भी निकले तो
उसकी खट् भी सुनाई देती है . फिर कभी रद्दी वाला तो कभी दूध वाला ....तो कभी कोई
बच्ची मीठे नीम के पत्ते माँगने आजाती है ..और पड़ोस के माधौ का बेटा तो चाहे जब
शिवरात्रि के मेला से खरीद लाई पुंगी को जब तब बजाता रहता है—पीं ...पीँ ...पीँ ”
“मम्मी ,लाली आंटी से कहो कि थोड़ी देर से आया
करें ..—ईशान ने आने के दूसरे ही दिन कह दिया ---हद है यार, पाँच बजे ही दरवाजा
खटखटा देती हैं ..और इस डब्बू को तो मैं देखता हूँ ..खिड़की के पास खड़ा मेरे कान
पर ही बजाता रहता है –पीं ..पीं..पीं .......”
“ईशान ,ये सब जल्दी सो जाते हैं .—माँ
ने हंसकर कहा --- तू भी रात में जल्दी सो जाया करो जल्दी सोना जल्दी जागना अच्छी
सेहत के लिये बहुत जरूरी है .सुबह हवा ज्यादा साफ और ठण्डी होती है ...”
“ओहो मम्मी , मुझे पता है लेकिन अच्छी सेहत के
लिये नीद पूरी भी होनी चाहिये ....ईशान चादर ओढ़कर सो जाता है . माँ की बात उसके लिये
वैसी ही है जैसे कोई धूप से कहे कि यहाँ मत आना ..उधर कोने में फैल जाना या कोई से
कहे –-“बादल भैया आ जाओ पेड़-पौधे तुम्हें बहुत याद कर रहे हैं
....”
“मम्मी ..!”
ईशान ने दोबारा पुकारा तो गौरी उसके पास पहुँची . देखा
ईशान आँखें खोलने की कोशिश करता हुआ नाराजी बैठा था . बाहर गली में कालू एक अपरिचित बछड़े
को देख जोर से भौंक रहा था मानो पूछ रहा हो –“क्यों भई कौन हो ? कहाँ के हो ?...इधर कैसे आए ?”
“अब क्या हुआ ईशान ?”
“कुछ नहीं ,मैं किसी दोस्त के घर चला जाता हूँ
.”---ईशान टीशर्ट
पहनते हुए कमरे से बाहर निकला . पर बाहर निकलते ही उसकी नजर नीम की शाखा पर बैठी
गिलहरी पर पड़ी जो लगातार बोले जा रही थी---चुक्क..चुक्क ...जैसे कोई पत्थर तराश
रहा हो .....कितनी ही चिड़ियों की चहचहाहट से पूरा पेड़ गूँज रहा था .
ईशान ने देखा पेड़-पौधों ,गली—चौबारों की आँखें खुल गईं
.ओस में भीगी चादर को धूप ने फुनगियों पर फैला दिया वह उड़कर छत और आँगन में आ
गिरी थी . मुँड़ेर पर सुनहरी धूप फैल गई थी . आसमान में तमाम पक्षी में कल्लोल
करते जा रहे थे . नीम की शाखों पर दो-तीन गिलहरियाँ सरपट दौड़ती हुई छू छुआवल खेल
रही थीं . ...उधर टहनियों में गौरैया फुदक रही थी ,पंडुकी शायद अपने साथी या बच्चे
को पुकार रही थी और बुलबुल अपने बच्चों को चुग्गा लाई थी तो खूब छीना-झपटी और मीठी
मान मनौवल चल रही थी ....
“हद है यार . इतनी सुबह हड़कम्प मचा रखा है
..इन्हें कौनसे ऑफिस जाना है जो .....इस बार ईशान के शब्दों में शिकायत थी पर भावों
में कुछ और ही था . माँ ने उसके कोमल भाव को ताड़ लिया . हँसकर बोली ---
“ अब इन्हें रोक सकते हो तो रोको ...”
“ नहीं माँ इन्हें रोकने का मतलब तो सुबह को
रोकना होगा ,धूप को उतरने से रोकना होगा ..और यह हमारे वश में कहाँ ...”
यह कहते हुए ईशान गिलहरी की तरफ देख मुस्करा उठा .
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