अंगरेजी राज में राष्ट्रगान के रूप में 'गॅाड सेव द क्वीन ' गीत गाना अनिवार्य था . तब श्री बंकिमचन्द्र चटर्जी ने , जो उस समय सरकारी अधिकारी थे , उसके विकल्प-स्वरूप सन् 1876 ई. में 'वन्दे-मातरम्' की रचना की थी .बाद में इसे और बढ़ाकर अपने उपन्यास आनन्दमठ में शामिल किया गया था . यह गीत हर देशभक्त का क्रान्ति गीत था । कांग्रेस के अधिवेशनों में इसे ध्येय गीत रूप में गाते थे . वन्देमातरंम का जयघोष नौजवानों में जोश भर देता था . इसे गाते गाते कितने ही वीरों ने स्वतन्त्रता के महायज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दी थी . नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने इसे राष्ट्रगीत का दर्जा दिया था . 24 जनवरी 1950 को संविधान द्वारा भी 'जन-गण-मन' को राष्ट्रगान तथा इसे राष्ट्रगीत घोषित किया गया . राष्ट्रगीत के रूप में 'जन गण मन...' की तरह इसके पहले अन्तरा को ही मान्य किया गया है . विश्व के दस लोकप्रिय गीतों में वन्देमातरम् का दूसरा स्थान है . हर भारतवासी के मन प्राण में बसा यह गीत सर्वोच्च और सच्चे अर्थ में मातृ-भूमि की वन्दना का गीत है . हमारे स्वातन्त्र्य-आन्दोलन का गान ,वीरों के उत्सर्ग का मान ,और हर भारतवासी का अभिमान है .अपने राष्ट्रध्वज और राष्ट्र्गान की तरह ही राष्ट्रगीत भी हर भारतीय के लिये सम्माननीय है .
राष्ट्रगीत के सम्मान में लिखी यह कविता आप भी पढ़ें .
प्रेरणा विश्वास का वरदान वन्दे-मातरम्
तिमिर से संघर्ष का ऐलान वन्दे-मातरम्
गूँज से जिसकी धरा जागी गगन गुंजित हुआ ,
क्रान्ति का दिनमान गौरवगान वन्दे-मातरम्
गीत यह गाया दिशाओं ने ,क्षितिज के द्वार खोले
रंग सिन्दूरी बिखेरा पंछियों ने पंख तोले
पर्वतों ने सिर झुका कर रोशनी को राह दी ,
हर गली घर द्वार से उत्सर्ग को मन प्राण बोले ।
देशहित बलिदान का सन्धान वन्दे मातरम्
हृदय में जिनके भरा परतन्त्रता का रोष था
क्लान्ति का ही कोश था, मन में समाहित रोष था ।
प्राण रखकर हाथ, निर्भय आगए रण भूमि में,
हुंकार ही जिनकी समूची क्रान्ति का उद्घोष था
उन सपूतों का यही जयगान वन्दे मातरम् ।
गर्व है इतिहास का ,यह तो नहीं हैं गोटियाँ
आग पर इसकी न सेको राजनैतिक रोटियाँ
साम्प्रदायिकता ,अशिक्षा जातिगत दलगत जहर
गहन भ्रष्टाचार का सर्वत्र टूटा है कहर ।
इन सभी से युद्ध का आह्वान वन्देमातरम्
मातृ-वन्दन, मन्त्र पावन ,गा इसे जो मिट गए
जिन शहीदों की प्रभा से मेघ काले छँट गए ।
जाति का या धर्म का उनको कहाँ कब भेद था,
बस उन्हें तो जननि की परतन्त्रता का खेद था ।
एक था उनका धरम-ईमान वन्दे मातरम् ।
अस्तित्त्व का यह मान है ,सम्पूर्णता का भान है
भारती के भाल का यह गर्व है, अभिमान है ।
यह सबेरा है सुनहरा एक लम्बी रात का ,
आत्मगौरव और अपने आपकी की पहचान है ।
जननि का अनुपम अतुल यशगान वन्देमातरम् ।
प्रेरणा विश्वास का वरदान वन्देमातरम्।
राष्ट्रगीत के सम्मान में लिखी यह कविता आप भी पढ़ें .
प्रेरणा विश्वास का वरदान वन्दे-मातरम्
तिमिर से संघर्ष का ऐलान वन्दे-मातरम्
गूँज से जिसकी धरा जागी गगन गुंजित हुआ ,
क्रान्ति का दिनमान गौरवगान वन्दे-मातरम्
गीत यह गाया दिशाओं ने ,क्षितिज के द्वार खोले
रंग सिन्दूरी बिखेरा पंछियों ने पंख तोले
पर्वतों ने सिर झुका कर रोशनी को राह दी ,
हर गली घर द्वार से उत्सर्ग को मन प्राण बोले ।
देशहित बलिदान का सन्धान वन्दे मातरम्
हृदय में जिनके भरा परतन्त्रता का रोष था
क्लान्ति का ही कोश था, मन में समाहित रोष था ।
प्राण रखकर हाथ, निर्भय आगए रण भूमि में,
हुंकार ही जिनकी समूची क्रान्ति का उद्घोष था
उन सपूतों का यही जयगान वन्दे मातरम् ।
गर्व है इतिहास का ,यह तो नहीं हैं गोटियाँ
आग पर इसकी न सेको राजनैतिक रोटियाँ
साम्प्रदायिकता ,अशिक्षा जातिगत दलगत जहर
गहन भ्रष्टाचार का सर्वत्र टूटा है कहर ।
इन सभी से युद्ध का आह्वान वन्देमातरम्
मातृ-वन्दन, मन्त्र पावन ,गा इसे जो मिट गए
जिन शहीदों की प्रभा से मेघ काले छँट गए ।
जाति का या धर्म का उनको कहाँ कब भेद था,
बस उन्हें तो जननि की परतन्त्रता का खेद था ।
एक था उनका धरम-ईमान वन्दे मातरम् ।
अस्तित्त्व का यह मान है ,सम्पूर्णता का भान है
भारती के भाल का यह गर्व है, अभिमान है ।
यह सबेरा है सुनहरा एक लम्बी रात का ,
आत्मगौरव और अपने आपकी की पहचान है ।
जननि का अनुपम अतुल यशगान वन्देमातरम् ।
प्रेरणा विश्वास का वरदान वन्देमातरम्।