नन्नू बहुत ही प्यारा लगभग दो साल का मासूम है । वह नौकरानी रमली के साथ रहता है । उसी के साथ सोता है और उसी के हाथों खाता-पीता है । उसे पता नही कि माँ की छाती की कोमल गर्माहट क्या होती है । इसलिये नही कि वह बिन माँ का बच्चा है बल्कि इसलिये कि नन्नू की माँ जॅाब करती है । किसी विवशता वश नही ,बल्कि इस विचार से कि सिर्फ घर सम्हालने व बच्चे पालने के लिये ही तो उसने शानदार कालेज से डिग्री हासिल नही की ।
शरीर-सौष्ठव के प्रति अति सजगता-वश उसने नन्नू को कभी स्तन-पान नही कराया । शुरु में जब दूध अधिकता से उमडता था तब नन्नू के कोमल होठों की बजाय दूध का दोहन मशीन से किया जाता था और चम्मच से नन्नू के गले में उडेल दिया जाता था । रमली चौबीसों घंटे नन्नू के साथ रहती है । पति-पत्नी के बीच नन्नू पता नही कैसे एक अवरोध मान लिया गया है या कि नौकरी से थके दम्पत्ति नींद-बाधा से आशंकित रहते हैं कि नन्नू को पहले अलग झूले में सुलाते थे और अब रमली के साथ सुलाने लगे हैं । सुबह नन्नू की माँ ऑफिस जाने से पहले रमली को नन्नू के ब्रेकफास्ट विषयक कुछ निर्देश देती है कि दूध की बॅाटल ठीक से साफ करना । चावल गरम कर लेना । नाश्ते में पहले इडली या उपमा बना देना । दरवाजा मत खोलना किसी के लिये ...। वगैरा-वगैरा
समय होता है या कि बहुत प्यार उमडता है तो माँ खुद नन्नू के लिये आमलेट या उपमा बना जाती है । लेकिन उसे क्या पता कि नन्नू को तो रमली की जूठी सब्जी--रोटी ज्यादा पसन्द आती है । वह नही जानती कि रमली एक ग्रास खुद खाती है तो दूसरे को नन्नू छीन लेता है । वह अनजान है कि सारा दिन नन्नू की आँखें टी. वी. से चिपकी रहतीं हैं । रमली घर के कामों के अलावा .टी.वी. पर जीटीवी और स्टार-प्लस के सीरियल देखती रहती है या सोनी मिक्स और 9एक्स एम पर गाने सुन कर झूमती रहती है( वह अकेली और क्या करे ) और नन्नू उन पात्रों के क्रिया-कलापों से परिचय करने में व्यस्त रहता है । माँ को यह भी समझने की जरूरत नही कि उसके अपने बच्चे के लिये माँ से ज्यादा जरूरी रमली हो चुकी है । वह रमली से लिपट कर किलकता है । माँ के ऑफिस जाने पर रोता भी नही । वह आदी होगया है अपनी माँ से दूर रहने का । शाम को ममा नन्नू को गोद में लेकर दो पल प्यार करती है और लव यू बेबी कह कर रमली को सौंप देती है । माँ के लिये प्यार का मतलब है ढेर सारे खिलौने इकट्ठे करना ,इन्टरनेट पर बच्चों की प्रोग्रेस सम्बन्धी बहुत सारी जानकारियाँ इकट्ठी करना और अच्छे से अच्छे स्कूल ढूँढना है । छह माह पहले ही उसने नन्नू के लिये स्कूल भी ढूँढ लिया है ।
नन्नू की माँ घर आने के बाद भी कम्प्यूटर पर काम करती रहती है । उसके पास ऑफिस का बहुत सारा काम है । नन्नू के पाप्पा देर रात तक ऑफिस में काम करते हैं । नन्नू पहले माँ की व्यस्तता पर चिडचिडाता था । उसके साथ जाने के लिये मचलता था । पर अब आदी होगया है । नन्नू राजा बेटा होगया है ।
रात को नन्नू के ममा-पापा मन पसन्द कार्यक्रम देखते हैं या ऑफिस का कोई काम करते हैं और अनपढ रमली कोई लोकगीत गाकर नन्नू को सुलाती है ।
एक उन्मुक्त बचपन की नजर से देखा जाए तो छठवें-सातवें फ्लोर एक किसी फ्लैट में रहने वाले नन्नू और जमीन पर किसी झोपडी में रहने वाले किसी गरीब के बच्चे में क्या फर्क है सिवा इसके कि नन्नू बहुत साफ-सुथरे घर में रहता है । उसके पास ढेरों खिलौने हैं । दिन में तीन बार बदलने के लिये सुन्दर कपडे हैं । या कि छींक आने पर ही डाक्टर की ओर ए.सी. में कार लेजाने की सुविधा है जिसकी समझ अभी नन्नू को है ही नही । बल्कि सच पूछा जाए तो नन्नू के पास वह कुछ भी नही जो नन्नू को ,....एक मासूम को चाहिये । उसके पास खेलने व दौडने के लिये जमीन नही है ,बहुत सारे साथी बच्चे नही हैं । सोने के लिये माँ की दुलार भरी गोद नही है । आसपास के जानवर, चिडियाँ ..खुला आसमान ...कुछ भी नही । वह रमली की गोद में बहुत ऊपर टँगा सा नीचे लडते खेलते बच्चों और कुत्तों को देख हाथ हिलाता है । उन्हें बुलाता है । नीचे उतरने को मचलता है । पर रमली को ऐसा करने का आदेश नही हैं । नन्नू मन मसोस कर रह जाता है । नन्नू और नन्नू जैसे असंख्य बचपन एक कैद से अधिक कुछ नही । नौकरी की व्यस्तता के चलते उनके माता-पिता के पास इतना समय भी नही कि अपने बच्चे को बाँहों का खुला आकाश दें । स्नेह की धरती दें । उसके साथ खेलें ,उसका मन बहलाएं ।
सवाल यह है कि क्या उनके लिये यह जानना -समझना भी जरूरी नही कि पैसे और शान-शौक से अधिक मूल्यवान है उनके लाडले का बचपन जो आज के व्यस्त बाजार की भीड में कहीं खो रहा है ।
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अपनी खिडकी से संग्रह में अधूरी प्रकाशित हुई कहानी 'अपराजिता' को यहाँ http://katha-kahaani.blogspot.in/ पढें । लिंक ऊपर दी हुई है ।
शरीर-सौष्ठव के प्रति अति सजगता-वश उसने नन्नू को कभी स्तन-पान नही कराया । शुरु में जब दूध अधिकता से उमडता था तब नन्नू के कोमल होठों की बजाय दूध का दोहन मशीन से किया जाता था और चम्मच से नन्नू के गले में उडेल दिया जाता था । रमली चौबीसों घंटे नन्नू के साथ रहती है । पति-पत्नी के बीच नन्नू पता नही कैसे एक अवरोध मान लिया गया है या कि नौकरी से थके दम्पत्ति नींद-बाधा से आशंकित रहते हैं कि नन्नू को पहले अलग झूले में सुलाते थे और अब रमली के साथ सुलाने लगे हैं । सुबह नन्नू की माँ ऑफिस जाने से पहले रमली को नन्नू के ब्रेकफास्ट विषयक कुछ निर्देश देती है कि दूध की बॅाटल ठीक से साफ करना । चावल गरम कर लेना । नाश्ते में पहले इडली या उपमा बना देना । दरवाजा मत खोलना किसी के लिये ...। वगैरा-वगैरा
समय होता है या कि बहुत प्यार उमडता है तो माँ खुद नन्नू के लिये आमलेट या उपमा बना जाती है । लेकिन उसे क्या पता कि नन्नू को तो रमली की जूठी सब्जी--रोटी ज्यादा पसन्द आती है । वह नही जानती कि रमली एक ग्रास खुद खाती है तो दूसरे को नन्नू छीन लेता है । वह अनजान है कि सारा दिन नन्नू की आँखें टी. वी. से चिपकी रहतीं हैं । रमली घर के कामों के अलावा .टी.वी. पर जीटीवी और स्टार-प्लस के सीरियल देखती रहती है या सोनी मिक्स और 9एक्स एम पर गाने सुन कर झूमती रहती है( वह अकेली और क्या करे ) और नन्नू उन पात्रों के क्रिया-कलापों से परिचय करने में व्यस्त रहता है । माँ को यह भी समझने की जरूरत नही कि उसके अपने बच्चे के लिये माँ से ज्यादा जरूरी रमली हो चुकी है । वह रमली से लिपट कर किलकता है । माँ के ऑफिस जाने पर रोता भी नही । वह आदी होगया है अपनी माँ से दूर रहने का । शाम को ममा नन्नू को गोद में लेकर दो पल प्यार करती है और लव यू बेबी कह कर रमली को सौंप देती है । माँ के लिये प्यार का मतलब है ढेर सारे खिलौने इकट्ठे करना ,इन्टरनेट पर बच्चों की प्रोग्रेस सम्बन्धी बहुत सारी जानकारियाँ इकट्ठी करना और अच्छे से अच्छे स्कूल ढूँढना है । छह माह पहले ही उसने नन्नू के लिये स्कूल भी ढूँढ लिया है ।
नन्नू की माँ घर आने के बाद भी कम्प्यूटर पर काम करती रहती है । उसके पास ऑफिस का बहुत सारा काम है । नन्नू के पाप्पा देर रात तक ऑफिस में काम करते हैं । नन्नू पहले माँ की व्यस्तता पर चिडचिडाता था । उसके साथ जाने के लिये मचलता था । पर अब आदी होगया है । नन्नू राजा बेटा होगया है ।
रात को नन्नू के ममा-पापा मन पसन्द कार्यक्रम देखते हैं या ऑफिस का कोई काम करते हैं और अनपढ रमली कोई लोकगीत गाकर नन्नू को सुलाती है ।
एक उन्मुक्त बचपन की नजर से देखा जाए तो छठवें-सातवें फ्लोर एक किसी फ्लैट में रहने वाले नन्नू और जमीन पर किसी झोपडी में रहने वाले किसी गरीब के बच्चे में क्या फर्क है सिवा इसके कि नन्नू बहुत साफ-सुथरे घर में रहता है । उसके पास ढेरों खिलौने हैं । दिन में तीन बार बदलने के लिये सुन्दर कपडे हैं । या कि छींक आने पर ही डाक्टर की ओर ए.सी. में कार लेजाने की सुविधा है जिसकी समझ अभी नन्नू को है ही नही । बल्कि सच पूछा जाए तो नन्नू के पास वह कुछ भी नही जो नन्नू को ,....एक मासूम को चाहिये । उसके पास खेलने व दौडने के लिये जमीन नही है ,बहुत सारे साथी बच्चे नही हैं । सोने के लिये माँ की दुलार भरी गोद नही है । आसपास के जानवर, चिडियाँ ..खुला आसमान ...कुछ भी नही । वह रमली की गोद में बहुत ऊपर टँगा सा नीचे लडते खेलते बच्चों और कुत्तों को देख हाथ हिलाता है । उन्हें बुलाता है । नीचे उतरने को मचलता है । पर रमली को ऐसा करने का आदेश नही हैं । नन्नू मन मसोस कर रह जाता है । नन्नू और नन्नू जैसे असंख्य बचपन एक कैद से अधिक कुछ नही । नौकरी की व्यस्तता के चलते उनके माता-पिता के पास इतना समय भी नही कि अपने बच्चे को बाँहों का खुला आकाश दें । स्नेह की धरती दें । उसके साथ खेलें ,उसका मन बहलाएं ।
सवाल यह है कि क्या उनके लिये यह जानना -समझना भी जरूरी नही कि पैसे और शान-शौक से अधिक मूल्यवान है उनके लाडले का बचपन जो आज के व्यस्त बाजार की भीड में कहीं खो रहा है ।
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अपनी खिडकी से संग्रह में अधूरी प्रकाशित हुई कहानी 'अपराजिता' को यहाँ http://katha-kahaani.blogspot.in/ पढें । लिंक ऊपर दी हुई है ।
सच में....
जवाब देंहटाएंमातृत्व भी आधुनिकता की चमक में खो सा गया है...
मन भर आया...
सादर
अनु
नन्नू का जीवन न जाने कितने बच्चों की कहानी है, काश हम बस इतना समझ सकें कि किस समय क्या प्राथमिकतायें हैं..
जवाब देंहटाएंपैसा कमाने और आधुनिकता के इस दौर में आज मात्रत्व खोता जा रहा है,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : बस्तर-बाला,,,
कल इसी विषय पर एक महिला कर्मी से बातचीत हो रही थी... उनका कहना था की खुद की पहचान बनाने के लिए जॉब जरूरी है और फिर यूँ ही चौक चूल्हा करने के लिए थोड़े पढाई की है...
जवाब देंहटाएंमुझे आश्चर्य होता है. जब लोग पढाई का अंतिम और अनिवार्य उद्देश्य जॉब और पैसा कमाना मानते हैं. शिक्षा हमारे मन और दिमाग की खिड़कियाँ खोलने के लिए जरूरी है न कि सिर्फ पैसा कमाने के लिए...
स्वस्थ समाज के निर्माण की जॉब को पता नहीं क्यों भूलते जा रहे हैं. अपनी महत्व आकांक्षाओं के आगे अपने बच्चो का बचपन और जिंदगी का असली आनंद उनके लिए कोई मायने नहीं रखता...
आज के लिए जरूरी सन्देश देती कहानी
ऐसा लगा कि हमारे पुराणों से निकलकर देवकी और यशोदा या कुंती और राधा का चरित्र सामने आ गया.. उस काल में स्वेच्छा से नहीं विवशता के कारण नवजात शिशु का त्याग करना पड़ा माता को. कहते हैं जब राधा ने कर्ण को पाया था तो उसकी छाती में दूध उतर आया था.. और कृष्ण तो आज भी यशोदा मैया के दुलारे कहे जाते हैं..
जवाब देंहटाएंमगर नन्नू और रमली की कहानी आज की हकीकत है.
लेकिन एक अजीब विरोधाभास देखने को मिला है इन दिनों... एक ओर नन्नू की माँ अपने जाए पुत्र के साथ एक औपचारिक रिश्ता निभा रही है और दूसरी ओर इन दिनों समाज में ब्याह न करके बच्चे गोद लेने का भी प्रचलन बढ़ा है.. सिंगल मदर के नाम पर.. समाज में इतनी कोम्प्लेक्सिटी बढ़ गयी है कि हर रिश्ता एक नयी परिभाषा की माँग कर रहा है..
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और आपकी कहानी के बारे में न कहूँ तो बात अधूरी रह जायेगी. दीदी, आपकी "अपनी खिडकी से" की जितनी कहानियाँ हैं वो सब बाल मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है. इस कहानी को पढते हुए भी लगा कि यह मात्र कहानी नहीं एक चिंतन का विषय है. मातृत्व को पुनः परखने का और यह मानने का कि मातृत्व से बढकर कोई सुंदरता नहीं!!
बिहारी बाबू की बात से सहमत-यह मात्र कहानी नहीं एक चिंतन का विषय है.
जवाब देंहटाएंपूरी कहानी पढ़ते हैं आपके ब्लाग पर जाकर!
लालन पालन की चिंता ज़्यादा ज़रूरी है।
जवाब देंहटाएंBahut badhiyaa chitran... ab yhe haal kamobesh sabhee rishton ki hai...
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