एक कविता मान्या के लिये
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निकल घोंसले से सूरज के ,
चुगने आई दाने- दुनके।
फुदक रही टहनी-टहनी ,
गौरैया जैसी धूप ।
रात गुजारी जैसे-तैसे ,
करके पहरेदारी ।
सर्दी सोयी है अब जाकर ,
ठिठुरी थकी बेचारी ।
बिछी हुई आँगन में ,
नरम बिछैया जैसी धूप ।
मौसम के मेले में ,
छाये ज्यों खजूर और पिस्ता ।
धूप हुई है भुनी मूँगफली ,
गजक करारी खस्ता ।
सूरज के बटुआ से गिरी ,
रुपैया जैसी धूप ।
किलक दूधिया दाँत दिखाती ,
है गुडिया सी धूप ।
खट्टी-मीठी चटपट चूरन की ,
पुडिया सी धूप ।
दूर तलैया की लहरों पर ,
नैया जैसी धूप ।
मान्या के किलकारी भरते ,
भैया जैसी धूप ।
दूध पिलाती ,लोरी गाती ,
मैया जैसी धूप ।
दबे पाँव आँगन में चले ,
बिलैया जैसी धूप ।
फुदक रही डाली-डाली ,
गौरैया जैसी धूप ।
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निकल घोंसले से सूरज के ,
चुगने आई दाने- दुनके।
फुदक रही टहनी-टहनी ,
गौरैया जैसी धूप ।
रात गुजारी जैसे-तैसे ,
करके पहरेदारी ।
सर्दी सोयी है अब जाकर ,
ठिठुरी थकी बेचारी ।
बिछी हुई आँगन में ,
नरम बिछैया जैसी धूप ।
मौसम के मेले में ,
छाये ज्यों खजूर और पिस्ता ।
धूप हुई है भुनी मूँगफली ,
गजक करारी खस्ता ।
सूरज के बटुआ से गिरी ,
रुपैया जैसी धूप ।
किलक दूधिया दाँत दिखाती ,
है गुडिया सी धूप ।
खट्टी-मीठी चटपट चूरन की ,
पुडिया सी धूप ।
दूर तलैया की लहरों पर ,
नैया जैसी धूप ।
मान्या के किलकारी भरते ,
भैया जैसी धूप ।
दूध पिलाती ,लोरी गाती ,
मैया जैसी धूप ।
दबे पाँव आँगन में चले ,
बिलैया जैसी धूप ।
फुदक रही डाली-डाली ,
गौरैया जैसी धूप ।
धूप झिलमिली, तरसे दुनिया,
जवाब देंहटाएंगौरया सी फुदके मुनिया।
बहुत शानदार अभिव्यक्ति,,मान्या के लिए ,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: वह सुनयना थी,
bahut hi sundar rachna jo man bhavo ko vyakt karti hai
जवाब देंहटाएंमान्या के लिए कित कित खेलती धूप
जवाब देंहटाएंवाह . बहुत उम्दा, सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह ! धूप के इतने सारे नए नए बिम्ब..याद आ गयी वह कच्ची और गुनगुनी धूप...अच्छी और कुनकुनी धूप !
जवाब देंहटाएंजहाँ पूरा उत्तर भारत सर्दी की चपेट में है और वो भी रिकॉर्ड तोड़ सर्दी, वहाँ आपकी यह खिली हुई धूप इतना गुनगुना एहसास देती है कि क्या कहने.. मान्या की किलकारी और मुस्कुराहट किसी धूप के समान गर्म है और चांदनी के समान शीतल!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत प्यार!!
खूबसूरत एहसास..।
जवाब देंहटाएंवैसे मैने देखी है
अंधेर तंग गलियों में बने
कमरे नुमा घरों में
मरियल कुत्ते सी
सिसकती
जाड़े की धूप।
kitni khoobsurat kavita hai kaise kahen...ekdam jaadon ki gunguni dhoop see :)
जवाब देंहटाएं✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿
निकल घोंसले से सूरज के ,
चुगने आई दाने-दुनके।
फुदक रही टहनी-टहनी ,
गौरैया जैसी धूप ।
रात गुजारी जैसे-तैसे ,
करके पहरेदारी ।
सर्दी सोयी है अब जाकर ,
ठिठुरी थकी बेचारी ।
बिछी हुई आँगन में ,
नरम बिछैया जैसी धूप ।
वाह ! वाऽह !
बहुत सुंदर नव-गीत है ...
आदरणीया गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी
अच्छा लगा ।
आभार !
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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बहुत अच्छे बिम्ब।
जवाब देंहटाएंफ़ुदक रही है टहनी-टहनी,
गौरैया जैसी धूप !
बहुत खूब!