मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

शब्दों से ..

कैसी अजीब बात है कि
शब्द खामोश हैं
और ख़ामोशी बोल रही है .

शब्दों ने बेवजह ही थककर
तलाश लिया है कोई अँधेरा,  
गुमनाम सा कोना ।
इसलिए अब शोर है सन्नाटे का .

जागती हैं खामोशियाँ
तो जाग उठते हैं खंडहर भी .
उड़तीं हैं चमगादड़ें
फडफडाते हैं पुराने दस्तावेज
अनकहे से दर्द .  
दहशत , सन्देह , निराशा
ठोकर खाती हैं अनुभूतियाँ .
अँधेरे में पड़ी शिलाओं से
बेजान सी होजातीं हैं व्यक्त हुए बिना .
शब्दो ! तुम यूँ खामोश न रहो
इस बर्फ से सन्नाटे में .
करो कोई बात .
कटेगा अंधेरा
तुम्हारी ही रोशनी से .

9 टिप्‍पणियां:

  1. सच है खामोशी का अंधेरा ही तो अक्सर शब्द बाँट लेते है। बहुत खूब!

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  2. जागती खामोशियाँ
    तो जाग उठते हैं खंडहर भी .
    उड़तीं हैं चमगादड़ें
    फडफडाते हैं पुराने दस्तावेज
    अनकहे से दर्द .
    दहशत , सन्देह , निराशा
    ठोकर खाती हैं अनुभूतियाँ .
    >>>लाज़वाब अहसास...अंतस को छूती उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9-4-15 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1943 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  4. कैसी अजीब बात है कि
    शब्द खामोश हैं
    और ख़ामोशी बोल रही है .

    waah ! मंगलकामनाएं आपको !

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  5. ख़ामोशी जब बोलती है तो आरम्भ में कचोटती है पर उसका स्वागत करते चलें तो उसी में से उगते हैं नये शब्द..

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  6. सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँ।

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  7. सचाई तो यही ही .. जब जब शब्दों ने मौन धारण किया है अर्थ का अनर्थ हुआ है ... खामोशी से पसर जाता है और घना सन्नाटा जो शब्द ही तोड़ सकते हैं ...

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  8. शब्दो ! तुम यूँ खामोश न रहो
    इस बर्फ से सन्नाटे में .
    करो कोई बात .
    कटेगा अंधेरा
    तुम्हारी ही रोशनी से .

    वाह...!!!!

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