सन्नाटा बढ़ जाए ,
इससे पहले बात करो .
सन्देहों को तोड़ो .
मतभेदों की रात करो .
तुम मेरी सुनो
मैं तुम्हारी सुनूँ
अवरोधों पर घात करो .
आओ मन को पखारें
सोचें विचारें
कि क्या है ,
जो आजाता है हमारे बीच
जूते में फंसे कंकड की तरह
उसे निकाल फेकें तुरंत .
मुश्किल हो जाता है सफर ,
दिल से दिल तक का .
तुम यह न देखो कि
एक कुहासा कभी--कभी
कर देता है अदृश्य
हमें एक दूसरे के लिये ।
देखो और समझो यह कि
बाद में किस तरह साफ चमचमाती है
बरसाती धूप की तरह ,
हमारी परस्पर निर्भरता
तुम इसे और भी अच्छी तरह समझ सकोगे
अगर देख सको कि
तुम्हारी थोडी सी आत्मीयता ही
किस तरह लगा देती है
मेरे पैरों में पंख ।
-----------------------------
तुम्हारी थोडी सी आत्मीयता ही
जवाब देंहटाएंकिस तरह लगा देती है
मेरे पैरों में पंख ।
...वाह...कभी कभी छोटे छोटे मतभेद कितनी बड़ी दीवारें खडी कर देते हैं...बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...
जो आजाता है हमारे बीच
जवाब देंहटाएंजूते में फंसे कंकड की तरह
उसे निकाल फेकें तुरंत .
मुश्किल हो जाता है सफर ,
दिल से दिल तक का ...
सहमत हूँ ...एक फंसा हुआ कंकड़ पूरे सफ़र को खराब कर सकता है ... अंतर्विरोध जल्दी ही सुलझा लेने चाहियें जिंदगी में ... जिंदगी इतनी बड़ी नहीं की उनको ढो सको ...
भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
वाह..इसे कहते हैं सकारात्मकता की पराकाष्ठा..इससे भला कौन अछूता रह सकता है...
जवाब देंहटाएंदीदी, आपकी उपमाएँ इतनी सटॆएक होती हैं कि हमेशा दो बातें दिमाग़ में आती हैं (ईमानदारी से स्वीकार कर रहा हूँ और पढते समय नियंत्रण नहीं होता कि इन्हें मन के दरवाज़े के बाहर ही खड़ा कर दूँ) पहली बात - वाह, क्या बात कही है! और दूसरी बात, ये मेरे दिमाग़ में क्यों नहीं आती!
जवाब देंहटाएंजूते का कंकड़ सारी बात कह देता है.
'मैं' और 'तुम' के माध्यम से जो बात कही है, काश वो "आप" के कानों तक भी पहुँचे.
बहुत सुंदर...भावपूर्ण अभिव्यक्ति ... गिरिजा जी
जवाब देंहटाएंये बेहद बेहद प्यारी कविता है...!!
जवाब देंहटाएंऔर ये पंक्तियाँ तो बहुत सुन्दर -
तुम यह न देखो कि
एक कुहासा कभी--कभी
कर देता है अदृश्य
हमें एक दूसरे के लिये ।
देखो और समझो यह कि
बाद में किस तरह साफ चमचमाती है
बरसाती धूप की तरह ,
हमारी परस्पर निर्भरता
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर गहन भाव अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसन्नाटा बढ़ जाए ,
जवाब देंहटाएंइससे पहले बात करो .
सन्देहों को तोड़ो .
मतभेदों की रात करो .
तुम मेरी सुनो
मैं तुम्हारी सुनूँ
अवरोधों पर घात करो .
विस्मयकारी रचना , आभार आपका !
तुम यह न देखो कि
जवाब देंहटाएंएक कुहासा कभी--कभी
कर देता है अदृश्य
हमें एक दूसरे के लिये ।
बेहतरीन पंक्तियाँ भाव पूर्ण प्रस्तुति