सोमवार, 9 मार्च 2015

जैसा भी है...

महिला-दिवस पर एक लघुकथा
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"बात कुछ समझ में नही आती यार कि सिर पर डलिया का बोझ उठाए ,तो औरत .गली-गली में चक्कर लगाती हुई आवाज लगाए ,तो औरत . तेंदू तौलने का काम करे तो भी यही औरत तो फिर यह बुड्ढा क्यों पीछे लगा रहता है ? कहाँ तो वह नाजुक कबूतरी और कहाँ यह बूढ़ा खूसट गिद्ध !"
" यार गिद्ध भी डरता होगा कि कोई इस सुन्दर कबूतरी को उड़ा-फुसला न ले जाए ।"
"यह बात तो हैबेचारी भाग्य के नाम पर रोती होगी ।"
"बेकार रोती है । छोड़ दे इस गले पड़ी हड्डी को ।  हाथों हाथ लेने कितने ही जवान तैयार हो जाएंगे एक से बढ़कर एक ।"
इस तरह की बातें करते तीन युवक तेंदू बेचने वाले दम्पत्ति के आसपास मँडराने लगे । कपड़ों से सम्पन्न घरानों के लगते थे । शायद धन-बल का मान था । समाज में एकाएक उनसे कोई कुछ कहने का साहस नही कर सकता था । उनमें से एक आगे आया और मुस्करा कर बोला---"ला भौजी ! आज पके-पके तेंदू खिलादे ।"
खा लो भैया । औरत ने भी किंचित मुस्करा कर कहा--"कितने के तौलदूँ ?"
"कितने के क्या !"---दूसरा युवक आगे आकर बोला---"आज तो तेरे हाथ से उधार ही खाएंगे तेरे देवर । दाम कभी ब्याज सहित लौटा देंगे ।"
उधार-बुधार नही है भैया..---औरत इसके आगे कुछ कहती इससे पहले ही उसका आदमी बोल पडा--"गरीब हैं भैया । रोजी रोटी इसी से चलती है । उधार देंगे तो खाएंगे क्या ?"
"ए बुड्ढे !!" तीसरा युवक अकड़कर बोला---"तू क्यों आधी रोटी पर दाल ले रहा है ? और तुझसे माँग कौन रहा है ?" फिर वह औरत की तरफ मुस्करा कर बोला----
"हम तो अपनी भौजी से माँग रहे हैं ।"
"बडे आए भौजी वाले ।"---औरत के पति के अन्दर का पुरुष जागा---"अपना रास्ता देखो बाबूजी । गरीबों को क्यों सताते हो ?"
इस बीच आसपास के लोग भी तमाशा देखने आगए ।
"अच्छा ?? हम गरीबों को सताते हैं ?" तीनों युवक अकड़ उठे---"अभी सताया तो नही पर अब देख..." यह कहकर बूढ़े की बाँह मरोड़ी।
मुँह में दाँत नही हैं और पाँव कब्र में लटके हैं पर मर्दानगी तो देखो इसकी ...
"ए सहाबजादो !"---सहसा औरत बिफर कर खड़ी होगई । आसपास खड़े लोगों के साथ-साथ वे तीनों मनचले स्तब्ध रह गए ।
"बड़े होगे तो अपने घर के लिये होगे । हम गरीब हैं पर तुम्हारा दिया नही खाते । तुम्हारा गाँव है इसीलिये धौंस जमा रहे हो ? कल से नही आएंगे पर खबरदार जो तुमने इसे हाथ भी लगाया । खून से रँग दूँगी । यह बीमार है ,बूढ़ा है जैसा भी है मेरा 'आदमी' है .."

औरत लोहे का बाँट हाथ में लिये चीख रही थी । लोग विस्मित थे और वे लडके लापता .
(१९९२ में लिखित व प्रकाशित)

4 टिप्‍पणियां:

  1. नारी के साहस के आगे किसी का टिकना आसन नहीं होता .. बेलगाम पौरुष बल में तो इतनी ताकत नहीं होती ये अलग बात है की पाशविक बल के मद में पुरुष अंधा हो जाता है कभी कभी और गुस्ताखियाँ करते रहता है और पुरुष समाज कुछ नहीं कहता ...
    सार्थक और दिल को छूने वाली कहानी ....

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  2. दीदी, रसायन शास्त्र का छात्र रहा हूँ इसलिये आज इस कथा को पढ़कर वहीं से एक तुलना सूझ रही है. नाभिकीय ऊर्जा जहाँ एक ओर जीवन में खुशहाली ला सकती है, वहीं आततायी के विरुद्ध भीषण तबाही भी ला सकती है. नाभि से जीवन की ऊर्जा का संचार करने वाली नारी जब देखती है कि कोई उसे कलंकित कर रहा है तो आवश्यक है कि वह इसी तेन्दु बेचने वाली की तरह व्यवहार करे!
    नतमस्तक हूँ उस नारी के समक्ष!

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  3. उसकी मर्यादा को भंग करने का प्रयत्न जब कोई करता है तो विरोध के लिए नारी तत्पर हो जाती है यह उसका सहज स्वभाव है .

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  4. नारी शक्ति और उसके सहज स्वाभिमान को दर्शाती प्रेरक कहानी..

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