उन्नीसवीं शताब्दी का सातवां दशक चल रहा था ।उन दिनों जितनी क्रूरता के साथ अंगरेज अधिकारी दमन कर हे थे उतनी ही प्रखरता के साथ देश के नौजवान विरोध कर रहे थे । इसीलिये जब राष्ट्रगान के रूप में 'गॅाड सेव द क्वीन ' गीत अनिवार्य कर दिया गया था , तब श्री बंकिमचन्द्र चटर्जी ने , जो उस समय सरकारी अधिकारी थे , विकल्प-स्वरूप सन् 1876 ई. में 'वन्दे-मातरम्' गीत की रचना की थी । बाद में इसे और बढ़ाकर अपने उपन्यास आनन्दमठ में शामिल किया गया था । यह गीत हर देशभक्त का क्रान्ति गीत था । कांग्रेस के अधिवेशनों में इसे ध्येय गीत रूप में गाते थे । वन्देमातरंम का जयघोष नौजवानों में जोश भर देता था ।इसे गाते गाते कितने ही वीरों ने स्वतन्त्रता के महायज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दी थी । नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने इसे राष्ट्रगीत का दर्जा दिया था ।24 जनवरी 1950 को संविधान द्वारा भी 'जन-गण-मन' को राष्ट्रगान तथा इसे राष्ट्रगीत घोषित किया गया ।राष्ट्रगान 'जन गण मन...' की तरह ही राष्ट्रगीत के रूप में वन्देमातरम् के पहले अन्तरा को ही मान्य किया गया है । विश्व के दस लोकप्रिय गीतों में वन्देमातरम् का दूसरा स्थान है । हर भारतवासी के मन प्राण में बसा यह गीत सर्वोच्च और सच्चे अर्थ में मातृ-भूमि की वन्दना का गीत है । हमारे स्वातन्त्र्य-आन्दोलन का गान ,वीरों के उत्सर्ग का मान ,और हर भारतवासी का अभिमान है .अपने राष्ट्रध्वज और राष्ट्र्गान की तरह ही राष्ट्रगीत भी हर भारतीय के लिये सम्माननीय है .
राष्ट्रगीत के सम्मान में लिखी यह कविता आप भी पढ़ें ।
चेतना के जागरण का गान‘वन्दे-मातरम्’
तिमिर से संघर्ष का ऐलान
वन्दे-मातरम्
गूँज से जिसकी धरा जागी गगन
गुंजित हुआ ,
एकता और क्रान्ति का आह्वान ‘वन्दे-मातरम्’
गीत यह गाया दिशाओं ने ,क्षितिज के
द्वार खोले
रंग सिन्दूरी बिखेरा पंछियों
ने पंख तोले
पर्वतों ने सिर झुका कर
रोशनी को राह दी ,
हर गली घर द्वार से उत्सर्ग
को मन प्राण बोले ।
जागती उस सुबह का सन्धान ‘वन्दे-मातरम्’
भावनाओं में भरा परतन्त्रता
का रोष था
जोश था ,आक्रोश था ,मन में विकम्पित
रोष था ।
प्राण लेकर हाथ, निर्भय आगए रण
भूमि में,
एक ही हुंकार जिनकी क्रान्ति
का उद्घोष था
उन सपूतों का यही जयगान ‘वन्दे-मातरम्’ ।
गर्व है इतिहास का ,यह तो नहीं हैं गोटियाँ
आग पर इसकी न सेको राजनैतिक रोटियाँ
साम्प्रदायिकता ,अशिक्षा
जातिगत दलगत जहर
गहन भ्रष्टाचार का सर्वत्र टूटा है कहर ।
इन सभी से युद्ध का आह्वान वन्देमातरम्
मातृ-वन्दन, मन्त्र पावन ,गा इसे जो मिट
गए
जिन शहीदों की प्रभा से मेघ
काले छँट गए ।
जाति का या धर्म का उनको
कहाँ कब भेद था,
बस उन्हें तो जननि की
परतन्त्रता का खेद था ।
एक था उनका धरम-ईमान ‘वन्दे-मातरम्’ ।
स्वत्त्व का यह मान है ,सम्पूर्णता का भान है
भारती के भाल का सम्मान है, अभिमान है ।
यह सबेरा है सुनहरा एक लम्बी
रात का ,
आत्मगौरव और अपने आपकी की
पहचान है ।
अतुल अनुपम जननि का यशगान ‘वन्दे-मातरम्’ ।
चेतना के जागरण का गान
वन्देमातरम्।
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