गुरुवार, 13 मार्च 2025

होलिका ने जो किया

 सूखी लकड़ियों की ऊँची वेदिका पर होलिका प्रह्लाद को लेकर बैठ गई । मन में विश्वास था कि सर्वशक्तिमान् दैत्यराज भाई हिरण्यकश्यप के विषाद व क्रोध के कारण को समाप्त कर सकेगी । प्रह्लाद के लिये उसे बड़ा खेद था । छोटी सी उम्र में व्यर्थ हठ करके कितने कष्ट उठा रहा है । कितना डराया धमकाया गया है पर हठधर्मिता में है तो अपने पिता का ही अंश । ज़रा टस से मस नहीं हुआ । तभी तो भाई ने उसे इस विषाद की जड़ को समूल नष्ट करने का दायित्व सौंपा है । अरे जिसे सारी दुनिया पूज रही है उस पिता की बात क्यों नहीं मान लेता । विष्णु से हमारा सम्बन्ध है तो दुश्मनी का । नादान बालक दुश्मन के गुण गा रहा है तो सजा भी वहीं होगी न जो एक देशद्रोही की होती है बालक है तो क्या हुआ एक राज्य से , राजा की आज्ञा से ऊपर तो नहीं हो सकता ।

हाय नन्हा सा सुकुमार बालक अपनी हठधर्मिता के कारण जीवन गँवा देगा । एक पल को होलिका के मन में करुणा भाव जागा लेकिन फिर कठोरता के साथ सोचा --नहीं ,नहीं वह अपने दायित्व से मुँह न मोड़ेगी । उसके लिये इस बालक से बड़ा राज्य था , राजा की आज्ञा थी । भाई का स्नेह था । और अपनी चादर को अच्छी तरह लपेट लिया कि उड़ न जाए और वह भी प्रहलाद के साथ भस्म होजाए । यह चादर उसे कड़ी तपस्या के पश्चात ब्रह्मा जी से वरदानस्वरूप मिली थी । इस पर अग्नि का प्रभाव नही होता । योजना यही तो थी कि होलिका चादर के कारण जलती हुई लपटों में भी सुरक्षित रहेगी और प्रह्लाद भस्म होजाएगा ।   

लकड़ियों में आग लगा दी गई । जल्दी ही चारों ओर से आग की लपटें उठने लगीं । और जैसे जैसे लपटें राक्षसी की तरह मुँह फाड़े होलिका और प्रह्लाद को अपने बाहुपाश में भरने बढ़ती जा रही थी प्रह्लाद शान्त और ध्यान में मग्न था लेकिन  होलिका के मन की उथल पुथल बढ़ती जा रही थी। बराबर प्रह्लाद को कोस रही थी ---हाय अभागे दैत्यवंश के कुलदीपक तूने ऐसी हठ क्यों ठानी? पल भर में जलकर भस्म होजाएगा ..क्या मिलेगा तुझे ?..और अभागी मैं भी तो हूँ कि  तुझे गोद में लेकर प्यार करने की जगह प्राण लेने चली हूँ.. पर मैं क्या करूँ ?..अपना धर्म तो निभाना होगा । राजा की आज्ञा का पालन सबसे पहले है । होना भी चाहिये । प्रह्लाद के भाग्य में यही लिखा है तो मैं क्या कर सकती हूँ ?”

आग की लपटें तेज होगईँ थीं । दोनों कमल की पंखुड़ियों के बीच फँसे भ्रमर की तरह थे । होलिका ने प्रह्लाद की ओर जीभरकर देखा ..अन्दर कुछ घुलता हुआ महसूस हुआ । प्राण प्यारा सुकुमार प्रह्लाद , दैत्यवंश का कुलदीपक ,चेहरे पर निश्छल भोलापन ..उस लगा कि वह हिरण्यकश्यप की बहिन नहीं सिर्फ माँ है केवल एक माँ । माँ बच्चे को कैसे जलता देख सकती है । और इससे पहले कि आग की लपटें प्रह्लाद को अपनी बाँहों में भरतीं होलिका ने झट से अपनी चादर प्रह्लाद को ओढ़ा दी और खुद भस्म होगई ।  

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