सोमवार, 24 मार्च 2025

प्रेम में डूबी स्त्री

क्या तुमने देखी है

एक प्यार में डूबी

एक उम्रदराज स्त्री ?

नहीं ?

तब तुम्हें ज़रूर देखना चाहिये  ,

कि खाली होते दिये में ,

बुझती हुई लौ

कैसे लहक उठती है ,

स्नेह भर जाने पर ,

और नकार देती है 

कोने कोने में फैल गए घुप अँधेरे को .

प्रेम में डूबी एक स्त्री ।

 

जाने कहाँ विलुप्त हो जाता है

अभाव का भाव ।

उम्र का पड़ाव ।

फूटती हैं कलियाँ

लगभग सूख गई,

फिर से हरी होती डाली में ।

घनघोर बादलों और बारिश के

सीले अँधेरे को चीरकर

मुस्कराता है वसन्त

खिल उठती है सुनहरी धूप

गन्धभार से बोझिल जैसे

फागुनी हवा

 

पीड़ा अपमान उपेक्षा

रिश्तों से टपकता खून  

नफरत , द्वेष ,

नैतिक अनैतिक मापदण्ड

गलत पते पर चले आए

पत्र की तरह नकारकर

प्यार में डूबी स्त्री  

देखती हैं जकरेंडा के फूलों में

अपने सपनों के निखरते रंग

रोम रोम बजता जलतरंग .

 

ज़िन्दगी जैसे शुरु हुई है अभी

इन्द्रधनुषी सपनों के साथ ।

नहीं कोई अपेक्षा ।

या भय किसी बन्धन के तिरकने का ।

तिरोहित होजाता भेद का भाव

रंग रूप उम्र और देह से एकदम परे ,

जी उठती है फिर से एक किशोरी

उमड़ती हैं मचलती हैं लहरें

शान्त झील में ।  

 

चहक उठती है सुबह सुबह  

गुलमोहर की टहनियों में

कोई चिड़िया ।

गाती है आत्मा का चरम संगीत

प्रेम तोड़ता नहीं , जोड़ता है परम से    .

मनाती है आनन्द का उत्सव ,

अपने आप में डूबी हुई

एक उम्रदराज स्त्री ,

जब होती है किसी के प्रेम में ,

गाती गुनगुनाती हुई

उम्र की तमाम समस्याओं को

झाड़कर डाल देती है डस्टबिन में ।   

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