बाबुल ने जो बाग लगाया
मैया ने सींचा है ।
उसकी हरियाली ने भैया
सदा हमें खींचा है ।
उसकी रौनक चली न जाए
इतना रखना याद
भैया इतनी सी फरियाद ।
तुम उसकी करना रखवाली
जैसे करता माली
टहनी-टहनी रहे पल्लवित
महके डाली डाली ।
नेह सींचते रहना तुम
मैं दूँगी इसको खाद
भैया इतनी सी फरियाद
एक आँगन में हम-तुम खेले
लडे और रूठे थे ।
खींचतान भी होती थी पर
झगडे वे झूठे थे ।
सच थे ,सच हैं और रहें सच
अन्तर के संवाद ।
भैया इतनी सी फरियाद ।
द्वीपों ने बाँटी है चाहे
नदिया की यह धारा
नही विभाजित हो अपना यह
बन्धन प्यारा-न्यारा ।
भरती रहे उमंगें मन में
हर छोटी सी याद
भैया इतनी है फरियाद ।
तुझ पर वारूँ सारी खुशियाँ
दुनियाभर का नेह ।
कोई भी दीवार न हो
हर दूर रहे सन्देह ।
अटल रहे विश्वास हमारा
उम्मीदें आबाद ।
भैया इतनी सी फरियाद ।
भावमय करती प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंइस स्नेहिल पर्व की अनंत शुभकामनाएं
बहुत ही भाव भरा संवाद..
जवाब देंहटाएंलग रहा है कि एक एक शब्द मेरे लिए ही कहा गया है!! शायद हर बहन के ह्रदय से निकली हुयी बात है यह!! आपको प्रणाम दीदी!!
जवाब देंहटाएंआज का दिन सचमुच बडा शुभ और उल्लासमय है । कितने-कितने बेशकीमती उपहार मिले हैं मुझे । अविसमरणीय...।
हटाएंआज का दिन सचमुच बडा शुभ और उल्लासमय है । कितने-कितने बेशकीमती उपहार मिले हैं मुझे । अविसमरणीय...।
हटाएंबहुत सुन्दर...भावपूर्ण...........
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
कितना मीठा!! :)
जवाब देंहटाएंअविनाश जी,आपकी कविताओं पर टिप्पणी नही हो पाती जिन्हें पढना एक अलग अनुभव देता है ।
हटाएंबहुत बेहतरीन भाव भरी प्रस्तुति,,,,,
जवाब देंहटाएंरक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,
भैया के नाम बहुत सुंदर फरियाद..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका हार्दिक अभिनंदन है। धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत सुंदर!
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