मामूली बात नही है
कि अगन भटुटियों के दहाने पर बैठे हुए हम
तुमसे फूलों और बहारों की बातें कर लेते हैं ।
................................................................
मामूली बात नही है
कि जब जमीन और आसमान पर
मौत धडधडाती हो
एक कोमल सा तार पकडे
अपनी आस्था आबाद रखें
विषाक्त विस्फोटों के बीच
गाँधी और गौतम का नाम याद रक्खें
.....................................................
भूखी साँसों को राष्ट्रीयता के चिथडे पहनाएं
अभावों का शिरस्त्राण बाँधें
चारों ओर फैली विषैली गैस ओढ लें
चाहे तलुए झुलसकर काले पड जाएं
आँखों में सपनों की कीलें गड जाएं
कितनी बडी बात है
कि नजरों को घायल कर देते हैं दृश्य
जिधर पलकें उठाते हैं घृणा व द्वेष मुस्कराता है
आकाश की मुट्ठी से फिसलती हुई
बेवशी फैलती फूटती है
फिर भी हम नही छटपटाते
...........गातें हैं एक ऐसा गीत जिसकी टेक
अहिंसा पर टूटती है ।
मामूली बात नही है दोस्तो
कि आज जब दुनिया शक्ति के मसीहों को पूजती है
हम युद्धस्थल में एक मुर्दे को शान्ति का पैगम्बर समझकर
उठाए चल रहे हैं ।
........................
बार-बार शान्ति के धोखे में
विवेक को पी जाते हैं
संवेदवहीन राष्ट्रों को
...आत्मा पर बने घाव दिखाते हैं
..........................
मामूली बात नही है दोस्तो ,
कि हम न चीखते हैं न कराहते हैं
क्योंकि मान लिया है इसी को अपनी नियति
.....यही तटस्थता है
अहिंसा, शान्ति या सह-अस्तित्त्व है
इसी के लिये तो हमने
सहा है ....।
प्राण गँवाए हैं ।
कच्छ में स्वाभिमान
कश्मीर में फूलों की हँसी
और छम्ब में मातृभूमिका अंग-भंग होजाने दिया है
चाकू और छुरे खाए हैं
( आज भी खारहे हैं )
यह मामूली बात नही है दोस्तो ।
कि अगन भटुटियों के दहाने पर बैठे हुए हम
तुमसे फूलों और बहारों की बातें कर लेते हैं ।
................................................................
मामूली बात नही है
कि जब जमीन और आसमान पर
मौत धडधडाती हो
एक कोमल सा तार पकडे
अपनी आस्था आबाद रखें
विषाक्त विस्फोटों के बीच
गाँधी और गौतम का नाम याद रक्खें
.....................................................
भूखी साँसों को राष्ट्रीयता के चिथडे पहनाएं
अभावों का शिरस्त्राण बाँधें
चारों ओर फैली विषैली गैस ओढ लें
चाहे तलुए झुलसकर काले पड जाएं
आँखों में सपनों की कीलें गड जाएं
कितनी बडी बात है
कि नजरों को घायल कर देते हैं दृश्य
जिधर पलकें उठाते हैं घृणा व द्वेष मुस्कराता है
आकाश की मुट्ठी से फिसलती हुई
बेवशी फैलती फूटती है
फिर भी हम नही छटपटाते
...........गातें हैं एक ऐसा गीत जिसकी टेक
अहिंसा पर टूटती है ।
मामूली बात नही है दोस्तो
कि आज जब दुनिया शक्ति के मसीहों को पूजती है
हम युद्धस्थल में एक मुर्दे को शान्ति का पैगम्बर समझकर
उठाए चल रहे हैं ।
........................
बार-बार शान्ति के धोखे में
विवेक को पी जाते हैं
संवेदवहीन राष्ट्रों को
...आत्मा पर बने घाव दिखाते हैं
..........................
मामूली बात नही है दोस्तो ,
कि हम न चीखते हैं न कराहते हैं
क्योंकि मान लिया है इसी को अपनी नियति
.....यही तटस्थता है
अहिंसा, शान्ति या सह-अस्तित्त्व है
इसी के लिये तो हमने
सहा है ....।
प्राण गँवाए हैं ।
कच्छ में स्वाभिमान
कश्मीर में फूलों की हँसी
और छम्ब में मातृभूमिका अंग-भंग होजाने दिया है
चाकू और छुरे खाए हैं
( आज भी खारहे हैं )
यह मामूली बात नही है दोस्तो ।
आज कुछ भी नहीं है कहने को.. ऐसी कवितायें बस महसूस करने के लिए हैं और इतना गहरा असर करती हैं कि उससे बाहर आकर कुछ कहने की स्थिति में नहीं रह पाता कोई!!
जवाब देंहटाएंदीदी, बहुत बहुत शुक्रिया!!
सच! और कुछ वाकई नहीं कहना
हटाएंआह....
जवाब देंहटाएंकुछ कहूँ अब मुनासिब नहीं.....
बेहतरीन लेखन..
सादर
अनु
भावो को दिल में महसूस कराती लाजबाब अभिव्यक्ति,,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,
RECENT POST मन की फुहार....: प्यार का सपना,,,,
अद्भुत दीदी...
जवाब देंहटाएंमन के तारों को झंकृत करने में सक्षम कविता। बधाई।
जवाब देंहटाएं............
डायन का तिलिस्म!
हर अदा पर निसार हो जाएँ...
बड़ी पीड़ाओं को पचा हमने अपनी पाचन शक्ति बढ़ा ली है।
जवाब देंहटाएंगहन भाव लिए सशक्त अभिव्यक्ति ... आभार
जवाब देंहटाएंलाजवाब..
जवाब देंहटाएंshabdo say pare rachna....
जवाब देंहटाएंसशक्त अभिव्यक्ति ... आभार
जवाब देंहटाएंसच ही मामूली बात नहीं है .... शायद यही सब अपनी नियति मान बैठे हैं .... सशक्त लेखन
जवाब देंहटाएंसच जो आज कई लोगों को मामूली सा लगता है उसके पीछे कितनी कुर्बानियां है काश वे समझ सकते!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति
बेहतरीन लेखन :-)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ....बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं