नीलमणि में जड़ा पन्ना
जब रात ने अपनी चादर समेटनी शुरु की तो कालिमा धीरे-धीरे नीलिमा में बदलने लगी । मैंने विमान की खिड़की से चारों देखा तो आँखें विस्मय से भर उठी । चारों ओर मोहक नीलिमा का असीम विस्तार था । समझ ही नही आ रहा था कि धरती कहाँ ,आसमान कहाँ क्षितिज की कहीं कोई सीमारेखा नहीं । तब क्या हम इतनी ऊँचाई पर हैं कि हमारे आगे पीछे ऊपर नीचे केवल आसमान है ? या किसी ने रात की कालिमा की तर्ज में हर तरफ आसमानी रंग की कूची चला दी है। यह रंग कितना मोहक है ! शायद इसीलिये प्रायः कृष्ण की तस्वीर में यही रंग मिलता है । अगर कोई दूसरा रंग था भी तो कहीं कहीं तैरते छोटे छोटे नटखट बच्चों जैसे बादलों का धवल रंग था । धीरे धीरे जब उजाला और उजला हुआ तो नीचे आसमानी विस्तार में बादलों के बीच कुछ धूमिल सी आकृतियाँ दिखाई दीं । दो महासागरों के बीच उत्ताल लहरों में जैसे हिचकोले खाती नौकाएं हों ,या असीम जलागार में अनेक कछुए सतह पर आकर आराम कर रहे हों । कुछ पलों में नीचे की नीलिमा उर्मिल लगने लगी , छोटी धूमिल आकृतियाँ कुछ गतिशील दिखाई दीं को हृदय पुलक और रोमांच से भर उठा अरे यह तो अगाध विशाल सागर है , अपनी गोद में कितने ही द्वीपों और जहाजों को सहेजे हुए । धरती लाल सुनहरे सूरज का अभिनन्दन कर रही थी । आसमान भी नीचे उतर आया था नन्हे धवल बादलों के साथ , सुनहरी किरणों के साथ । घड़ी में अभी 3.40 हुए थे लेकिन हमारा विमान सुबह की सुनहरी किरणों में चमक रहा था ।
वह 3 अगस्त 2025 की सुबह थी । हमारा विमान
बाली की ओर उड़ानें भर रहा था ।
विमान अब अपने गन्तव्य के निकट था । धरती का सामीप्य पाकर आँखें खिल उठीं । धरती से दूर पाँव ही नहीं हदय भी खुद को कहीँ टँगा हुआ सा महसूस करता है । आश्वस्ति माँ की गोद में ही मिलती है, प्यारी धरती माँ । विमान से उतरकर मन ही मन धरती को प्रणाम किया ।
विदेश की एक और रोमांचक यात्रा ।
जारी......
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