(1)
चिलचिलाती धूप
तमतमाया रूप
मौसम का
दौडते हैं वाहन छाती पर
लगातार,, धुँआधार
खुद को बचाए रखने
बार-बार...बेमन
यूँ बन गया है
कोलतार की सडक जैसा मन
(2)
एक तरफ तो
गर्मी और लू द्वारा
फटकारा गया।
दूसरी तरफ
शानदार ,वातानुकूलित भवनों के
दरवाजों से दुत्कारा गया
सडक के किनारे
किसी गुमठी की छाँव में
हाँफते
'शेरू' सा मन
(3)
शाम ढले
रौंदी जाती है
कितने पैरों तले
पर हौसले ,
कभी नहीं दले
कहीं से भी
जरा सी नमी पाकर
सिर उठाती
मुस्कराती दूब जैसा मन
(4)
किसी सफेदपोश नेता सा सूरज
जाने कितने सब्जबाग दिखाकर
सोखता है
रोज ही आकर
तब, अस्मिता के प्रश्न पर
होती है गमगीन
फिर भी हरियाली के कालीन
बुनने में तल्लीन
क्षीणकाय मजदूरिन सी
नदी जैसा मन
चिलचिलाती धूप
तमतमाया रूप
मौसम का
दौडते हैं वाहन छाती पर
लगातार,, धुँआधार
खुद को बचाए रखने
बार-बार...बेमन
यूँ बन गया है
कोलतार की सडक जैसा मन
(2)
एक तरफ तो
गर्मी और लू द्वारा
फटकारा गया।
दूसरी तरफ
शानदार ,वातानुकूलित भवनों के
दरवाजों से दुत्कारा गया
सडक के किनारे
किसी गुमठी की छाँव में
हाँफते
'शेरू' सा मन
(3)
शाम ढले
रौंदी जाती है
कितने पैरों तले
पर हौसले ,
कभी नहीं दले
कहीं से भी
जरा सी नमी पाकर
सिर उठाती
मुस्कराती दूब जैसा मन
(4)
किसी सफेदपोश नेता सा सूरज
जाने कितने सब्जबाग दिखाकर
सोखता है
रोज ही आकर
तब, अस्मिता के प्रश्न पर
होती है गमगीन
फिर भी हरियाली के कालीन
बुनने में तल्लीन
क्षीणकाय मजदूरिन सी
नदी जैसा मन