गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

मखमली आवाज के साए में

 

उतरती साँझ का उदास सा एकान्त ..पथरीले इलाके का अज़नबीपन ..सन्नाटा ..और तब उस सन्नाटे की सुर्मई परत को तोड़ती थी कहीं दूर से आती मधुर सुरमयी आवाज ," ये जिन्दगी उसी की है... ,छुप गया कोई रे ...बचपन की मुहब्बत को दिल से न भुला देना ..,मोहे भूल गए साँवरिया .." और हम मंत्रमुग्ध सुनते रहते .

यह सन् 1965-66 की बात है .एक साल पहले काकाजी का ट्रांसफर बड़बारी होगया था . बाद में पढ़ाने के लिये मुझे भी साथ लेगये थे .मेरी उम्र छह-सात वर्ष की ही थी . काकाजी  को जब तक कोई अपने जैसा नहीं मिलता था ,वे अकेले रहना ही पसन्द करते थे . बाद में उनके काम से प्रभावित होकर लोग खुद ही उनसे आकर मिलने लगे . सरपंच जी खुद उनके बड़े प्रशंसक होगए थे . खैर ..

काकाजी जब फुरसत में होते तो खूब तल्लीनता के साथ गाते थे .एक शाम काकाजी ने मुझे गाने को कहा .पता नहीं उन्होंने कब मुझे कहीं गुनगुनाते सुन लिया था या ऐसे ही  मेरी रुचि जानने के लिये कहा . पर मैंने बेझिझक गा दिया----" बतादूँ क्या लाना ,तुम लौटके आजाना ये छोटा सा नज़राना पिया याद रखोगे कि भूल जाओगे ..."

शब्दों पर मेरा ध्यान न तब था और न ही अब जबकि उनके अर्थ भी समझती हूँ . मेरे लिये एक ही और सिर्फ एक ही बात मायने रखती है- आवाज और सुरों का माधुर्य.

तब बड़ा बैट्री वाला रेडियो हमारे आँगन में चलता ही रहता था .हमने देखी हैं उन आँखों की .’.,’.पवन दीवानी . तू कितनी अच्छी है . तुम्ही हो माता पिता....चला भी आ आजा’’ ..दिल अपना और प्रीत पराई . मिलती है ज़िन्दगी में मुहब्बत...ये दिल तुम बिन कहीं ..:छुप छुप मीरा रोए.. ओ वसन्ती ..,गोविन्दा गोपाला .. .,.बाबुल प्यारे ..पत्ता पत्ता बूटा बूटा ..बेबी तू छोटी है ..आ जा आ बहार..’ छोड़दे सारी दुनिया ..उड़ती पवन के संग चलूँगी....दिल का खिलौना हाय....ऐसे अनगिन गीत हैं जिन्हें सुनते दोहराते हमारा बचपन गुज़रा . लता मंगेशकर नाम मेरे अन्तर्मन में कब रच बसकर जीवन का हिस्सा बन गया पता नहीं चला . बाद में तो उनके ऐसे गीत आए कि वे अद्वितीय होगयीं है .

लता जी अब नहीं है तो विचार आया है कि उनकी मखमली आवाज़ के बिना मधुर गीत-संगीत की कल्पना नहीं की जासकती . कोई दिन नहीं गुज़रा जिस दिन उनका गीत नहीं सुना हो . गायन कि क्षेत्र में अनगिन मधुर आवाजें हैं लेकिन लता जी की आवाज की कहीं कोई बराबरी नहीं है . किसी ने पूछा कि लता जी के सबसे पसन्दीदा पाँच गीत बताओ . मैंने कहा पाँच क्या पच्चीस-पचास कहेंगे तब भी बिखरे स्वर माधुर्य को समेटना मुश्किल है. फिल्मी गीत , मीरा तुलसी सूर के भजन ..कितने अद्भुत ..मैं पसन्द के गीत गिनती हूँ और गिनती भूल जाती हूँ .

उन्ही दिनों मैंने कहा था –काकाजी मुझे अगर भगवान मिलें तो मैं उनसे अमरफल माँगूँगी .

अमरफल का क्या करेगी बेटी ?”—काकाजी ने कुछ चकित होकर पूछा .

मैं उसे लता मंगेशकर को दूँगी .

काकाजी हँस पड़े पर वह एक बच्ची की सच्ची भावना थी . देखा जाए तो उनका भौतिक शरीर भले ही मिट गया है पर वास्तव में वे अमर हैं . उनके गीत अनन्तकाल तक हवा में संगीत भरते रहेंगे . मन को महकाते रहेंगे .  

एक गीत उनके नाम

मधुर माधुरी ,दिव्य वाणी हो तुम

शुभे शारदे हो कल्याणी हो तुम ।


शिवालय में गुंजरित वन्दन के स्वर

प्रभाती पवन की सुशीतल लहर ।

विहंगों को कलरव तुम्ही से मिला ,

है निर्झर तुम्हारे सुरों में मुखर ।

सान्ध्य--मंगल की ज्योतित कहानी हो तुम

शुभे शारदे हो कल्याणी हो तुम ।

 

कोकिला विश्व-वन की ,तुम्हारी कुहू सुन ,

विहँस खिलखिलाता है सुरभित वसन्त ।

मधुप गुनगुनाते ,विकसते हैं पल्लव

तुम्हारे सुरों से ही जागे दिगन्त

ऋचा सामवेदी सुहानी हो तुम

शुभे शारदे कल्याणी हो तुम ।

 

हिमालय में गूँजे कोई बाँसुरी

कमल--कण्ठ से जो झरे माधुरी

क्षितिज पर ज्यों प्राची की पायल बजी

अलौकिक , दिशाओं में सरगम बजी ।

युगों को धरा की निशानी हो तुम ।

शुभे शारदे हो ,कल्याणी हो तुम ।

 

तुम्हारे सुरों से है करुणा सजल ।

तुम्हारे सुरों से ही लहरें चपल ।

प्रणय-ज्योत्स्ना की सरस स्मिता ,

समर्पणमयी भक्ति पावन अमल ।

हो आराधना शुचि , शिवानी हो तुम ।

शुभे शारदे कल्याणी हो तुम । 

 

बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

चाँदनी वाला मोहल्ला

एक पुरानी पोस्ट फिर से 

Sunday, July 4, 2010

चाँदनी वाला मोहल्ला-----24 जून ग्वालियर
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हम जिस मोहल्ले में रहते हैं ,वह ग्वालियर की पुरानी और पिछड़ी बस्तियों में से एक है ।नाम है  ,'कोटावाला मोहल्ला'। कहते हैं कि सामने खण्डहर सी दिखने वाली हवेली कोटावाले राजा की थी ।मोहल्ले का यह नाम इसीलिये पड़ा ।इससे ज्यादा जानकारी रखने वाले लोग अब नहीं हैं ।न ही जानने की किसी को जरूरत व फुरसत है ।
मेरा भतीजा इसे--'कुत्ता वाला मोहल्ला' कहता है । जो कभी कभी सटीक लगता है ।जब यहाँ आदमियों से ज्यादा कुत्ते नजर आते हैं । काले ,भूरे,बादामी ,चितकबरे छोटे- बड़े, सीधे-लड़ाकू --सभी तरह के बहुत सारे देशी कुत्ते (विदेशियों को ऐसी आजादी कहाँ )। दिन में खूब खिलवाड़ करते है।और रात में खूब मन भर रोते हैं ।भगाओ तो भाग जाते हैं पर कुछ देर के लिये, आपको यह तसल्ली देने ही कि आपकी आज्ञा का पालन होता तो है कम-से-कम ।
पर मेरे दिमाग में इस मोहल्ले का एक नया और प्यारा सा नाम उगा है ----चाँदनी वाला मोहल्ला ।
जी नही , यह चाँदनी चाँद से उतरी किरण नही है ।और ना ही कोई रूपसी युवती ।यह तो सामने रहने वाली पारबती की डेढ-दो साल की बेटी है ,जो घर से ज्यादा गली में रहती है ।गाती, खेलती,गिरती,,रोती....।
सुबह होते ही चाँदनी अपनी कोठरी से बाहर आजाती है। दिखाने भर के लिये दूध डाली गई पतली काली कटोरी भर चाय के साथ बासी रोटी खाकर घंटों तक गली में रमक-झमक सी घूमती रहती है ।कभी वह कुत्ते के गले में बाँहें डालना चाहती है तो कभी बैठी हुई गाय की पीठ पर सवारी करने के मनसूबे बनाती है ।यही नही ,जब उसका रास्ता रोकने की हिमाकत करता कोई सांड़ खड़ा होता है, वह उसके नीचे से निकल कर ऐसे खिलखिलाती है जैसे कोई बाजी जीत गई हो ।माता-पिता काम पर जाते हैं तो क्या हुआ ,जानवर चाँदनी का पूरा खयाल रखते है ।इस मासूम परी को शब्दों में बाँधना आसान नही है ।मैंने तो बस कोशिश की है --

(1)
कुँए की मुडेर पर,
धूप के आते-आते
उतर आती है चाँदनी भी
कोठरी के क्षितिज से।
बिखर जाती है पूरी गली में ।
धूप ,जो---
उसके दूधिया दाँतों से झरती है ।
(2)
चाँदनी सुबह-सुबह,
भर जाती है मन में
नल से फूटती
जलधार की तरह
मन--- जो रातभर लगा रहता है ,
कतार में ।
खाली खडखडाते बर्तनों सा,
भरने कुछ उल्लास,ऊर्जा ।
दिन की अच्छी शुरुआत के लिये ।
(3)
भरी दोपहरी में,
चाँदनी नंगे पाँव ही
टुम्मक-टुम्मक..
चलती है बेपरवाह सी
तपती धरती पर
आखिर ,कौन है वह,
जो बिछा देता है ,
हरी घास या अपनी नरम हथेली,
उसके पाँव तले ।
(4)
दूसरे बच्चों की तरह,
उसके कपडे साफ नही हैं
बाल सुलझे सँवरे नही हैं ।
पीने-खाने को दूध-बिस्किट नही है ।
और दूसरे बच्चों की तरह ,
मचलने पर उसे
टॅाफी या खिलौने नही मिलते है।
पर दूसरे तमाम बच्चों से ज्यादा,
हँसती-खिलखिलाती और खेलती है।
वह नन्ही बच्ची---चाँदनी ।
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और अन्त में ------------
चिडियों की चहकार है चाँदनी।
ताजा अखबार है चाँदनी ।
गजक मूँगफली बेचने वाले के गले की खनक,
दूधवाले की पुकार है चाँदनी ।

पहली फुहार जैसी।
फूलों के हार जैसी ।
भर कर दुलार छूटी ,
दुद्धू की धार जैसी ।