दो साल पहले लिखा गया यह आलेख आज भी प्रासंगिक है
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देशभक्त, देश को अपना और अपने से अधिक महत्त्वपूर्ण मानने वाले लोग . अपने
कार्य को निष्ठा व ईमानदारी से पूरा करने वाले लोग . देश के इतिहास भूगोल और संस्कृति
को जानने ,समझने और उसपर गर्व करने वाले लोग . वैयक्तिक दायरे से बाहर निकल समाज व
राष्ट्र के प्रति अपना दायित्त्व सझने वाले लोग और अपने देश को अपने अपने स्तर पर सर्वोपरि और उन्नत बनाने के प्रयास निरन्तर करते रहने
वाले लोग .
देश का सुनहरा वर्त्तमान और भविष्य ऐसे ही लोग सुनिश्चित किया करते हैं
. हमें आज ऐसे ही देशभक्त नौजवानों की आवश्यकता है जो आगे आएं और भ्रष्टाचार ,
स्वार्थ , बैठे-ठाले नाम दाम पाने की नीयत जैसी हर प्रवृत्ति को निकाल
फेंकें .
देश में ऐसे देशभक्त थे इसलिये वे विदेशियों से टकराए और हमें आजादी नसीब हुई .
असंख्य स्वाभिमानी देशभक्तों ने संघर्ष किया क्यों ? जाने अनजाने बेशुमार क्रान्तिकारी वीरों ने अपने प्राणों निछावर किये क्यों
? भगतसिंह , आजाद ,सुखदेव, अशफाक आदि नौजवानों को क्या पड़ी थी कि हँसती खेलती
जिन्दगी के सुखों को ताक़ पर रख फांसी पर झूल गए . सुभाषचन्द्र बोस जैसे वीरों को
क्या पड़ी थी कि अपना सारा चैन गँवाकर देश के लिये मर मिट गए .विदेश से वकालत पढ़कर आए मोहनदास से क्यों आराम
से नहीं रहा गया . क्या वे पागल थे ? नही , वे सब देशभक्त थे . क्योंकि उनकी रगों में राष्ट्रीयता हिलोरें ले रही थी .अन्यथा
वे भी गद्दारों की तरह मौज-मजे और आराम की जिन्दगी बिताते .आजादी कोई पका हुआ फल नही
थी कि हाथ बढ़ाया और तोड़ लिया .उसके लिये लोगों ने अपना तन मन धन और अपना सर्वस्व
देश को समर्पित किया था .
आज भी देश में देशभक्त और अपने कार्य के प्रति ईमानदार लोग हैं जिनकी बदौलत
उम्मीदें बनी हुई हैं .कार्य सुचारु रूप से चल रहे हैं . प्रगति का मार्ग प्रशस्त
है . लेकिन वे बहुत अधिक नही है और जो हैं वे भी अधिकांशतः ऐसे लोगों के अनुसार कार्य
करने विवश होते हैं जिनके पास अधिकार हैं ,सत्ता है , पद या धनबल के सहारे सबकुछ मनोनुकूल चाहते हैं . इससे ईमानदार और कर्मशील लोगों
का मनोबल टूटता है ,टूट रहा है .
यही कारण है कि आजादी के चौहत्तर साल बाद भी ,जो बात देश
में ,जनजीवन में आनी चाहिये थी वह नही आई है . जो होना चाहिये ,वह नही हो रहा .सरकारी योजनाओं का लाभ जिन्हें मिलना चाहिये उन्हें नहीं मिलता . लोग अपने स्वार्थ के लिये धार्मिक और जातिगत मुद्दों को लेकर समाज में विषमताएं और अशान्ति फैला रहे हैं.आज भी आंचलिक क्षेत्रों में जनजीवन अनेक सुविधाओं से वंचित है .
इसका सबसे बड़ा कारण है राजनीति में और महत्त्वपूर्ण पदों पर देश के लिये समर्पित होजाने वाले लोगों
की कमी . अपराधिक प्रवृत्ति वाले ,स्वार्थी और अपना घर भरने वाले लोगों की अधिकता
.संसद में और टेलीविजन पर बहस करते नेताओं और उनके पक्षधरों की बहसें इसका प्रमाण हैं .राष्ट्र-हित को छोड़ नेता
मंत्री दलीय और व्यक्तिगत छोटे छोटे मुद्दों पर बड़े हंगामे करते हैं जूते-चप्पल
फिकते हैं ,धक्कामुक्की और हाथापाई तक होजाती है .जनता शर्मसार होती है कि कैसे लोगों को वोट दे दिया .
सत्ताधारी पार्टी पर नियंत्रण रखना उसकी त्रुटियों की ओर ध्यानाकर्षण ,विश्लेषण
बहस आलोचना आदि विपक्ष का आवश्यक कर्त्तव्य है लेकिन यहाँ तो एक दूसरे को येन केन
प्रकारेण गिराना और शक्ति-प्रदर्शन करना प्रमुख है .लोग सिर्फ सत्ता के
लिये लड़ते हैं ,मुद्दों के लिये नही .मुद्दे भी चुनाव जीतने के लिये खोद-खोदकर
तलाशे जाते हैं .विरोध के लिये विरोध ,हंगामे . हंगामों के विरोध में भी हंगामे .यह
कैसा देशहित और कहाँ की देशभक्ति . देशभक्ति शब्द को मज़ाक बनाकर रख दिया है .
क्या
आजादी की लड़ाई लड़ने वालों ने देश का ऐसा सपना देखा होगा .कुछ सोचा होगा .क्योंकि सभी संचार साधनों में
अधिकांशतः राजनीति ही छाई रहती है जिसका अच्छा बुरा प्रभाव सीधे जनता पर पड़ता है
.व्यावहारिक तौर पर भी हर व्यक्ति आज राजनीति से प्रभावित है .जैसा जनता देख रही
है वही सीख रही है . तो सत्ता में , संचार माध्यमों में ऐसे लोग क्यों छाए रहें ? यह तभी संभव है जब सत्ता में देशभक्त और निष्ठावान लोग
आएं . आज राजनीति में स्वार्थी भ्रष्ट ,गाल बजाने वाले और सत्ता-लोलुप लोगों की नही
सच्चे और देशभक्त नौजवानों की ही जरूरत है . राजनीति स्वच्छ व निष्पक्ष होगी तो
निश्चित ही देश का स्वरूप बदलेगा . सच्चा देशभक्त न भ्रष्ट हो सकता है न छुद्र स्वार्थी
और न ही अकर्मण्य.
देशभक्त होने के लिये न जान देने की जरूरत है न ही काँटों पर चलने की . आज सच्चा
देशभक्त होना यही है कि छुद्र स्वार्थ छोड़ ,जो भी कार्य और दायित्त्व मिला है उसे
पूरी निष्ठा व ईमानदारी से करें. महसूस करें कि अपने जीवन पर परिवार का ही नही समाज
और देश का भी अधिकार है . जब सभी लोग ऐसा सोचेंगे तभी सही मायनों में इन पर्वों का
सम्मान होगा .तभी राष्ट्रीयता का भाव आएगा जो हर नागरिक में होना चाहिये क्योंकि
सत्ता में पहुँचा व्यक्ति भी पहले हमारे बीच का ही नागरिक है.
इस बात को जब हम मन प्राण में रचा-बसा लेंगे तभी इसका सही मर्म समझ सकेंगे
.
जयहिन्द
.