सिडनी डायरी--10
शीर्षक काफी जिज्ञासा भरा है न ?
जब
मयंक ने बताया कि हम ऑरेंज जा रहे हैं तो मुझे लगा कि यह ‘स्ट्राबेरी पिकिंग’ जैसा ही कुछ रोचक अभियान होगा . ‘फ्रूट-पिकिंग’ यानी पेड़ों से खुद ही पके फल चुनना .इसके
बारे में मैं सिडनी जाने से पहले ही जान चुकी थी ,जब श्वेता ने अपने हाथों स्ट्राबेरी
चुनते हुए फोटो डाले , ‘प्लम-पिकिंग’ के बारे में बताया . यह बात उत्साह से भर
देने वाली थी . अपने हाथों पेड़ से पके फल तोड़ने के आनन्द ही अनौखा होता है . मैं उससे भलीभाँति परिचित हूँ . हमारे घर में अमरूद का पेड़ था जिसके फल खूब बड़े और मीठे होते थे . खुद ही तोड़कर खाए भी खूब औरों बाँटे भी खूब .( अफसोस कि अब वह पेड़ नहीं है ) तिलोंजरी
(गाँव) में भी खेतों से टमाटर ,बैगन ,लौकी आदि खूब तोड़े हैं . स्ट्राबेरी , चैरी , प्लम ( आलूबुखारा) के पेड़ और टहनियों में लगे फल देखना तोड़ना मेरे लिये नया अनुभव होगा यह सोचकर मैं काफी उत्साहित थी . हालाँकि
इस बार सर्दियों भर वर्षा का मौसम रहने के कारण फलों की
पिकिंग का अवसर बन नहीं पाया था लेकिन उम्मीद बनी हुई थी . ऑरेंज जाने की बात से
मुझे लगा कि ऑरेंज-पिकिंग यानी सन्तरे चुनने का सुअवसर आगया है .
यहाँ भी है लखनऊ |
शान्त सुन्दर ऑरेंज |
मिनी एप्पल
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किया गया था . मूल रूप से यह ‘विराजुरी’ आदिवासियों की भूमि है .बाद में ऑरेंज से मात्र 30 किमी दूर 'ओफियर' (Ophir) टाउन में सोने की खदानों , और उपजाऊ भूमि में उन्नत कृषि के कारण ऑरेंज में उल्लेखनीय प्रगति हुई . 1877 में ऑरेंज को रेलमार्ग द्वारा सिडनी से जोड़ दिया गया . 1946 तक ऑरेंज एक छोटे शहर के रूप में उन्नत होगया था . आज यह बड़े पार्कों और 'वाइनरीज' के कारण न्यू साउथ वेल्स के सुन्दर सुव्यवस्थित शहरों में गिना जाता है ,जहाँ सुकून से कुछ समय गुजारने लोग जाते रहते हैं .ऑरेंज पहुँचने के लिये अपने साधन के अलावा बस और रेल सेवा भी बहुत सुनदर और सुविधाजनक है .23 दिसम्बर 2022 को सुबह ऑरेंज के लिये मयंक ने कार की स्टेयरिंग सम्हाली और हमने अपनी सीट .
चैरी के बगीचे में |
अन्ततः बाथर्स्ट टाउन के बाद एक जगह 'चैरी-पिकिंग' खोजने में सफल हो ही गए .वहाँ चैरी के अलावा ,मिनी एप्पल, प्लम ,अंजीर के भी बगीचे हैं . लेकिन पिकिंग के लिये चैरी के बगीचे ही तैयार थे . मिनी एप्पल और प्लम अभी पके नहीं थे . 17 डॉलर प्रति व्यक्ति के हिसाब से चैरी गार्डन में जाने का टिकिट था .हम चैरी के बगाचे में पहुँचे तो मैं वहाँ का दृश्य देख रोमांचित हुए बिना न रह सकी . गहरे लाल , मैरून हुए पके फलों से सजी चैरी की टहनियाँ पास आने का निमंत्रण दे रही थीं . चैरी चुनते खाते हुए और भी परिवार थे . मुझे खाने की बजाय तोड़ने का चाव अधिक था . "मम्मी सत्रह डॉलर हमने फल खुद तोड़कर खाने के लिये अदा किये हैं इसलिये पहले खाओ जितना चाहो .खाने के बाद बीज यहीँ डालने हैं .साथ ले जाने के लिये अलग कीमत देनी होगी ."--मयंक ने कहा .पर केवल खाना ही क्यों , टहनियों से पके फल तोड़ना क्या कम आनन्दप्रद था ? मीठे मीठे लाल जामुनी चैरी फल जीभर कर तोड़े , पूर्ण त़प्ति तक खाए . पास ही सेव के बगीचे थे .
घर, जहाँ हम चार दिन रहे |
"माँ ये मिनी एप्पल हैं . छोटे हैं पर मीठे होते हैं . " –श्वेता ने बताया -"एप्पल पिकिंग में उतना आनन्द नहीं . आखिर कितने सेव खाओगे , दो , चार .." खैर चैरी-पिकिंग एक प्यारा अनुभव रहा .
ऑरेंज में मयंक ने चार दिन के लिये एक घर लिया था .गृहस्वामी सिडनी या अमेरिका ,इंगलैंड जैसे दूसरे देशों में चले जाते हैं . तब ये मकान इस तरह आय का साधन भी बने रहते हैं . दो बेडरूम , हॉल सुविधायुक्त किचन पीछे बड़ा गार्डन . यहाँ सभी मकान उतने बड़े तो नहीं होते लेकिन उनमें गार्डन के लिये काफी जगह छोड़ी जाती है .सड़कें काफी चौड़ी और सुन्दर हैं पर लोग बहुत ही कम ..पड़ोस में बसी एक अंग्रेज महिला से श्वेता की बात हुई . पता चला कि इतने बड़े घर में केवल पति-पत्नी है ,एक कुत्ता और कुछ पक्षी हैं . उनका बेटा सिडनी में रहता है .यहाँ रहना उसे पसन्द नहीं .
हमने 'वूलवर्थ' से दूध ,दही मक्खन ब्रेड सलाद की सब्जियाँ खरीदी .पहली शाम तो घर से बनाकर लाया खाना पर्याप्त
था . हमने तारों भरे आसमान के नीचे बैठकर चाय पी और बातें करते रहे कि हमारे यहाँ लोग गाँवों से शहरों को पलायन रोजगार और शिक्षा आदि सुविधाओं के लिये करते हैं . लेकिन यहाँ
इतने शानदार घर और सुन्दर शहर को इसलिये छोड़ देते हैं कि वहाँ बड़े शहर जैसी
रंगीनियाँ और सुविधाएं नहीं हैं . सचमुच पैसा सुविधाएं और पसन्द बदल देता है .
छाँव में आराम करते छोटे कंगारू |
गेंडा |
हाँ रास्ते में सड़क पर कुचले पड़े निरीह से कंगारू अपने राष्ट्रीय पशु होने पर कड़े सवाल करते हुए से कई बार दिखे पर मुझे तो उनकी उछाल वाली चाल देखनी थी . किसी ने बताया था कि ऑरेंज जा रहे हो तो डब्बो ज़रूर जाना . ‘ टॉरंगो जू ‘डब्बो’ में कंगारू यकीनन मिलेंगे . इसलिये दूसरा दिन हमारा डब्बो के नाम रहा .
शुतुरमुर्ग ( ऑस्ट्रिच) |
भीमकाय कछुआ |
आस्ट्रेलिया की अनमोल स्मृतियाँ संजो कर लायी हैं आप, रोचक यात्रा वृतांत!
जवाब देंहटाएंआप हर वृत्तान्त पढ़ रही हैं , मैं लिखना सार्थक मान रही हूं अनीता जी. बहुत आभार मुझे प्रोत्साहित करने के लिए.
हटाएंBahut sundar chitran Kiya hai, mom!!
जवाब देंहटाएंअनमोल स्मृतियाँ
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