मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

मन-उन्मन

 यहाँ होता है ,

तो याद करता है बातें  

वहाँकी .

और वहाँ से निकलकर भटकता है

यहाँ..जाने कहाँ कहाँ...

व्यथा को परे झटककर

कोशिशें होती हैं .

बहलने की , उबरने की

और आनन्द में आशंकाएं

उसके समापन की .

कोई क्षण जब सामने होता है ,

देखता है उससे परे ..उस पार सुदूर..

पर गुज़र जाता है वह .

मलता है हाथ ,

चला गया वह पल ,

बिना बताए ,दूर से ही

मिल नहीं पाया उसे ,

जी नहीं पाया जीभर .  

हाय ,क्यों है यह मन ,

ऐसा उन्मन ?

जीते हुए सोचता है

अक्सर मृत्यु के बारे में ,

और देखना ,

मृत्यु के समय चाहेगा

मोहलत कुछ और जीने की .

9 टिप्‍पणियां:

  1. मनुष्य मन का सत्य उकेरती सुंदर अभिव्यक्ति दी।
    सादर।

    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ मार्च २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. आदरणीया मैम, सादर प्रणाम। मानव मन का बहुत ही भावपूर्ण गहरा और सटीक चित्रण। यदि मनुष्य बिना अपने मन को भूत या भविष्य की चिंताओं में भटकाए, वर्तमान में जीना सीख ले तो वह जग जीत लेगा पर ऐसा कहाँ हो पाता है म बहुत ही सुंदर लगी आपकी रचना।पुनः प्रणाम।

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  3. आदरणीया मैम, सादर प्रणाम। मानव मन का चित्रण करती बहुत ही गहरी और भावपूर्ण रचना है आपकी। यदि मनुष्य भूत और भविष्य की चिंता छोड़ कर वर्तमान में रहना सीख ले तो जग जीत ले। पुनः प्रणाम आपको और इस सुंदर रचना के लिए आभार।

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  4. मन की फितरत ऐसी ही है, इसीलिए तो बुद्ध पुरुष मन के पार जाने की बात कहते हैं

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  5. खुद से ही संवाद और जीवन का लेखा जोखा प्रस्तुत करती रचना गिरिजा जी।सच में मुट्ठी से रेत की भान्ति फिसलते जीवन से इन प्रश्नों के उत्तर कौन माँगे।भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार।होली मुबारक हो।सपरिवार सानंद रहें यही कामना है ❤❤💖💖🎉🎉🎁🎁🌹🌹🙏

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  6. सही कहा मन उन्मन...
    जो नहीं उसी पर लगे रहता
    बहुत सुंदर चिंतनपूर्ण
    लाजवाब सृजन ।

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  7. सुंदर रचना l होली की हार्दिक शुभकामनायें l

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  8. सुंदर रचना l होली की हार्दिक शुभकामनायें

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