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25 दिसम्बर
क्रिसमस प्रभु यीशु का जन्मदिन .यह दुनिया के बड़े स्तर पर मनाए जाने वाले त्यौहारों में से एक है . ईसाई धर्मावलम्बी-बहुल राष्ट्र होने के कारण ऑरेंज में भी क्रिसमस पर बड़े आयोजन ,रोशनी और धूमधाम की कल्पना सहज थी . वैसे भी सिडनी डार्लिंग हार्बर में शानदार आतिशबाजी होती है फिर आज तो .....
इसलिये तय किया गया कि आज खाना बाहर ही खाएंगे और क्रिसमस की रौनक भी देखेंगे लेकिन जब श्वेता ने गूगल पर कोई अच्छा सा रेस्टोरेंट बुक करना चाहा तो सफलता नहीं मिली . पता चला कि रेस्टोरेंट ही नहीं पूरा बाजार बन्द है . हमें बड़ी हैरानी हुई . हमारे यहाँ त्यौहारों पर कितनी रौनक और धूमधाम होती है .
“चलो बाहर निकल कर देखते हैं .कहीं कुछ तो होगा .” मयंक ने कहा . शाम पाँच बजे हम लोग बाहर निकले .पर सब कुछ मेरी कल्पना के विपरीत था .
जन-शून्य चौड़ी सड़कें , शटर पड़ी दुकानें , नीरव
वातावरण .चारों और सन्नाटा था मानो किसी आतंक से डरे लोग शहर को लगभग खाली कर गए
हों . हम जैसे भूले भटके से इक्का दुक्का लोग और हवा में पत्ते झुलाते पेड़ शहर के
जीवित होने की निशानियाँ थे . श्वेता का शॉपिंग करने का विचार तो टीवी चैनलों से गायब
गाँव जैसा होगया पर अदम्य और मयंक का किसी रेस्टोरेंट में एक अच्छा डिनर लेने का
विचार भी ( उपमाएं)
अपने
इष्ट के जन्मदिन पर ऐसी उदासीनता –मुझे आश्चर्य हुआ . पर्व त्यौहार सांस्कृतिक परम्पराओं
के निर्वाह के साथ साथ जीवन में नयापन और और मन में ताजगी लाते हैं .समय को बोझिल
नहीं होने देते .
"मेरे विचार से यहाँ अधिकतर वयोवृद्ध लोग रहते हैं .युवा बाहर चले गए हैं . इतनी शान्ति और उदासीनता यही कारण होगा . इनका उत्सव इतना ही है कि ब्रेड बटर चीज़ आदि के साथ वाइन ले ली .कोई 'रिलेटिव्स' मिलने आ गए .बस."--मयंक की यह बात मुझे सही लगी .
"अभी
थोड़ी देर गार्डन में बैठते हैं . सात बजे तक होसकता है कुछ दुकानें व रेस्टोरेंट
खुलें..,"- यह सोचकर हम एक गार्डन में चले गए . वहाँ कुछ लोग चहलकदमी कर रहे थे . वे
भारत और भारत से जुड़े देशों के ही लगते थे . दूर एक बैंच पर एक युवती चुपचाप बैठी
कभी गार्डन में बैठे लोगों को देख रही थी तो कभी मोबाइल फोन में कुछ देखने लगती थी
. काफी देर उसे देखती रही . वह भारतीय लग रही थी . आदत के अनुसार अन्ततः मुझसे रहा
नहीं गया . उसके पास पहुँची . मुझे देख वह हल्का सा मुस्कराई . पूछने पर बताया कि
वह चंडीगढ़ के पास एक गाँव से है . यहाँ हॉस्पिटल में काम करती है , किसी के साथ 'रूम शेयर' करती है . परिवार के सभी
लोग पंजाब में ही हैं .
"परिवार
की कमी तो खलती होगी ."
"हाँ खलती तो है आंटी पर यहाँ जॉब के अवसर काफी हैं . भागदौड़ नहीं करनी पड़ती ..जिन्दगी कूल है ."
मैं देखती हूँ कि अब 'कूल' रहना सबसे अहम् होगया है चाहे इसके लिये अपनी ज़मीन ,अपने लोग छोड़कर किसी होटल में प्लेट ही क्यों न उठानी पड़ें या हॉस्पिटल में बिस्तर चादर . सुविधा और पैसा पैरों से अपनी ज़मीन खींच रहा है .
इतनी देर में शाम गार्डन के ऊँचे और घने पेड़ों से होती हुई नीचे उतर आई थी . लोग क्रिसमस की धूम मचाएं न मचाएं पर ऊँचे घने पेड़ों में बैठे हजारों पक्षी ईश्वर के गुणगान से पूरे वातावरण को गुंजित कर रहे थे . स्ट्रीट लाइट तो जगमगाने लगी पर बाज़ार या कोई शॉप और रेस्टोरेंट वैसे ही बन्द थे जैसे कोई थका हारा या नशे की खुमारी में डूबा व्यक्ति नींद न होने पर भी आँखें बन्द किये पड़ा रहता है .
उस उदास शाम में एक सेंटाक्लॉज बने व्यक्ति ने हम सबके मन में उल्लास भर दिया . वह चहकता हुआ हमारी तरफ आया . मैरी क्रिसमस कहा ..हमने भी ुत्तर में वही कहा . फिर उसने अदम्य से हाथ मिलाया और कुछ गाते हुए झूमने लगा . पता चला कि वह एक चाइनीज़ होटल का कर्मचारी है और वैन से घर घऱ जाकर फूड-डिलेवरी कर रहा है . इसका मतलब था कि कम से कम एक जगह तो है जहाँ कुछ खाया जा सकता है . मयंक श्वेता और अदम्य की बाहर खाना खाने की योजना सफल हुई . मुझे चाइनीज़ खाना पसन्द नहीं है . वैसे भी मेरी कुछ भी खाने की इच्छा नहीं थी .मैंने केवल ऑरेंज जूस लिया , जो बहुत बढ़िया ,एकदम ताजे सन्तरों का था . सेंटा क्लॉज से मिलकर अदम्य के साथ हमें भी बड़ा अच्छा लगा . हताशा के बीच उल्लास भरने वाले लोग सचमुच वन्दनीय होते हैं .चाइनीज़ होटल में सबने खूब ‘इनजॉय’ किया . वैसी फीलिंग्स (अनुभूतियों) के लिये आनन्द या खुशी शब्द फिट नहीं होते .उस समय समझ आया कि दुनिया में चीन का प्रभाव और बाज़ार विस्तार ऐसे ही नहीं हो रहा है . घर लौटते हुए चर्च के पीछे चमकते तिर्यक चन्द्रमा ने इस बात पर ध्यान नहीं जाने दिया कि सड़कों पर सन्नाटा ही नहीं , कई जगह अँधेरा भी था . क्रिसमस के दिन यह सब बड़ा अजीब लगा .
26
दिसम्बर
घर
से दूर बाहर कहीं होमस्टे में रुकना मयंक के लिये सिर्फ आराम करना होता है . 25-26
दोनों दिन ऑरेंज बन्द होने की बात ने श्वेता को ( मुझे भी) जहाँ निराश किया वहीं
मयंक को फुरसत से बैठने , या लेटने का अच्छा अवसर मिला . खाने पीने का सामान था ही .. पीछे बने गार्डन में पिता-पुत्र क्रिकेट खेले , शाम को गार्डन में गए
वहाँ मन सचमुच ‘गार्डन
गार्डन’
होगया . ऊँचे
मनोहर अनेक किस्म के घने पेड़ नरम हरे घास की कालीन से सजी धरती , सुन्दर फव्वारे ,
कल्लोल करते अनगिन पक्षी और सबसे मनोहर गुलाब-गार्डन ..छह सात रंगों के बड़े बड़े
मनमोहक गुलाब के फूल ..कि देखते मन ही न भरे .. एक नेपाली परिवार गुलाबों के बीच
अपने फोटो खींचने में व्यस्त था . मुझे देखते ही उत्साहित होकर उन्होंने मुझसे फोटो
खींचने का आग्रह किया . मैंने कई कोणों से उनके फोटो लिये . वह शाम बहुत ही खूबसूरत
रही .
27 दिसम्बर की सुबह जब तक मयंक श्वेता जागते मैंने रात के बचे चावल प्याज टमाटर के साथ फ्राइ कर लिये . खाने पीने का सामान समेट लिया . चाय ब्रेड का नाश्ता करके हम लोग सिडनी की ओर चल पड़े .लौटते हुए रास्ता भी कम खूबसूरत नहीं था . कहीं घने जंगल के बीच तो कहीं लम्बे चौड़े हरे भरे मैदान के बीच बढ़िया सड़क पर कार जैसे बह रही थी .
"सबने वहाँ खूब ‘इनजॉय’ किया . वैसी फीलिंग्स (अनुभूतियों) के लिये आनन्द या खुशी शब्द फिट नहीं होते ! "
जवाब देंहटाएंवाह ! कितनी गहराई से आप घटनाओं को परखती हैं, क्रिसमस के दिन ऐसी उदासीनता, वाक़ई उत्सव मनाने का ढंग भी दुनिया को भारत से ही सीखना पड़ेगा। एक और रोचक यात्रा संस्मरण !
बहुत बहुत आभार आपका . चित्र रहित पोस्ट ही आपकी टिप्पणी से सुसज्जित होगई . यह सच है कि भाषा पर ध्यान देने वालों के लिये फोटो बहुत मायने नहीं रखते
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब, वाह वाह।
जवाब देंहटाएंवाह!!! सुन्दर
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