"आप कहाँ
से हैं ?"
परिचय के
बिना पास बैठा व्यक्ति भी कितना दूर होता है ,पार्क
में बैठी उस अधेड़ उम्र की महिला ने उस दिन यही महसूस किया जब पास ही बेंच पर बैठी
युवती ने उसकी ओर एक बार भी नही देखा जबकि कस्बाई परिवेश से आई वह महिला युवती से
परिचय के लिये काफी उत्सुक थी। एक तो उसके लिये यह शहर नया ही था । फिर साथ बैठे दो
व्यक्ति एक दूसरे से बात न करें ,खासतौर पर जबकि वे महिलाएं हों , यह स्वीकार कर
लेने वाली बात नही है ।
लेकिन युवती का ध्यान सिर्फ अपने मोबाइल फोन
पर था और आधुनिक शिष्टाचार की दृष्टि से
उस अपरिचित महिला का इस तरह बात करना अनावश्यक ही नही अशिष्ट भी कहा जासकता
था । जींस-टाप पहने वह युवती जो 'वॉक' के बाद कुछ देर के लिये बेंच पर बैठ गई थी, काफी खूबसूरत थी। उतनी ही
निरपेक्ष भी । लेकिन महिला का मन नही माना और पूछ ही लिया –
“आप यहीँ की
हैं या फिर ...। वैसे कहाँ से हैं ?”
"यूपी से
।"--युवती ने संक्षिप्त उत्तर देते हुए कन्धों
पर झूलते बालों को समेटकर जूड़ा बनाया और अगले ही पल उँगलियाँ मोबाइल पर सरकने
लगीं । वह एक अनजान और पुराने विचारों की लगने वाली महिला से बात करने जरा भी
उत्सुक नही थी । लेकिन उस सवाल का कारण जानने की इच्छावश पूछा----" क्यों ?"
"नही ऐसे
ही पूछा है ।--महिला एक
पल के लिये झिझकी । यूपी भर कह देने से क्या पता चलता है । परिचय हो तो फिर इतना
अधूरा सा क्यों हो?
"यूपी में कौनसी जगह...?"
"आगरा "---युवती ने बेमन ही झटके के साथ जबाब दिया
जैसे वह उसका आखिरी संवाद हो।
महिला को लगा जैसे यह सूचना कोई बहुत दूर से दे रहा हो लेकिन कुछ देर बाद जब युवती ने पलट कर पूछा--"और आप ?" तो महिला को वह आवाज पास आती हुई प्रतीत हुई । उत्साहित होकर बोली-
महिला को लगा जैसे यह सूचना कोई बहुत दूर से दे रहा हो लेकिन कुछ देर बाद जब युवती ने पलट कर पूछा--"और आप ?" तो महिला को वह आवाज पास आती हुई प्रतीत हुई ।
"मैं
शिवपुरी से यहाँ बेटी के पास आई हूँ।" और फिर विस्तार से बताने लगी--"बेटी इंजीनियर है । अभी तीन-चार महीने पहले
ही नौकरी लगी है ।यही एक बेटी है । बडे शहर में पहली बार आई है । चिन्ता तो होती है न । आप भी सर्विस करती होंगी ?"
"नही मेरे
हसबैंड । वे भी इंजीनियर हैं ।"
"हसबैंड ? यानी यह शादीशुदा है?"---महिला चकित हुई---"आजकल पहनावे और रंग-ढंग से पता ही
नही चलता कि कोई महिला लड़की है या औरत । विवाहिता है या कुँवारी । न बिन्दी न चूड़ी
। न बिछुआ । बहुत हुआ तो माथे के ऊपर बालों में लाल लकीर खींचली बस । सब समय का
असर है ।"
" कौनसी
कम्पनी में हैं आपके मिस्टर ?"
"विप्रो
में ।"
"अरे ,विप्रो में तो मेरी ममेरी बहिन का बेटा भी है।
"होगा..। यहाँ बाहर से ज्यादातर इंजीनियर ही आते हैं।"
"बहुत बड़ा
शहर है ।"--महिला अपने आप से कहने लगी---"पता नही कहाँ रहता होगा । जीजी से पता ले
आती तो उससे भी मिल लेती ।"
युवती ने
बात को जैसे सुना ही नही । पर महिला ने बोलना जारी रखा।
"आप यहाँ
कहाँ रहती हैं ?"
"आज़ाद
नगर में ।"
"अरे मेरी
बेटी भी तो आज़ाद नगर में ही है । आप यहीं रहतीं हैं तो आपने अल्पना अपार्टमेंट तो
देखा होगा ।"
"हाँ ?"--अब युवती कुछ जाग्रत हुई ।---"मैं भी वहीं रहती हूँ ?"
"अर्..रे
वाह , फिर तो हम पडोसनें हुईं ।"--महिला एकदम चमत्कृत सी होगई--
" पर आपको
वहाँ कभी देखा नही ।"
"हाँ वो...एक तो दूसरी लिफ्ट से आना-जाना होता है
फिर....।" युवती अब भी बातों में विशेष रुचि लेती नही
लग रही थी ।
"फिर ! दरवाजे भी हमेशा बन्द रहते हैं। "--महिला ने हँसकर बात पूरी की। इसके बाद दोनों साथ-साथ आईं । युवती ने महिला को शिष्टाचारवश एक कप चाय पीने का निमन्त्रण दिया
तो महिला बिना किसी औपचारिकता के सम्मोहित सी उसके पीछे चली गई । कालबेल दबाने के
बाद दरवाजा खोलकर जो युवक सामने आया तो सचमुच एक चमत्कार सा हुआ । वह कुछ पहचानने की कोशिश करने के बाद चकित हुआ
बोला--
"अरे ,मौसी आप यहाँ कैसे ?"
" ये लो ..बगल
में छोरा ,नगर में ढिंढोरा ..।---उस महिला ने युवती की ओर आश्चर्य और खुशी के
अतिरेक के साथ देखा और चहककर कहा---बेटी ,यही तो अभिषेक है। कुसमजीजी का बेटा ।"-- ।
अगले पल
वह महिला के पैरों में झुक गया । युवती भी ।
"यहाँ
रीतिका आगई है न । कुसमजीजी से तेरा पता और नम्बर लेना भूल गई बेटा । पर तू इतने
पास होगा यह तो कमाल होगया । बडी आसानी से मुझे बहू भी मिल गई ।"
महिला खुशी से विह्वल होकर कहती रही---" लेकिन अगर पार्क में मैं बातचीत की कोशिश न करती
तो इतने पास रहकर भी शायद तुम लोग दूर ही रहते । नही ?"
गज़ब !! बहुत बढ़िया कहानी...भागती दौड़ती दुनिया में यूहीं सब अपने आप में सिमटे रहते हैं....यही तो सच है!
जवाब देंहटाएंरोचक कहानी ... कई बार अपने जानने वालों को खुश्बू खींच लेती है अपनी तरफ ...
जवाब देंहटाएंआधुनिक वेश में ख्ाुद को खपाने के लिए मरी जा रही पीढ़ी को दर्पण दिखाती प्रेरणादायी कहानी। बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक और भाव प्रधान कहानी..कितने पास होते हैं हम और कितने दूर लगते हैं..
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन चाहे कहीं भी तुम रहो; तुम को न भूल पाएंगे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंवो महिला तो बहुत खुश हुईं, लेकिन मैं उस युवती के विषय में सोच रहा हूँ कि उसकी क्या स्थिति हुई होगी.. क्या उसके मन में कोई ग्लानि (अपने रूखे व्यवहार के कारण) उत्पन्न हुई होगी??
जवाब देंहटाएंकथा/ घटना बहुत ही प्यारी है लेकिन इसने मुझे मेरी पसन्दीदी फ़िल्मों में से एक "36 चौरंगी लेन" की याद दिला दी!!
सलिल भैया ,
हटाएं"कथा बहुत प्यारी है लेकिन..इसने मुझे 36 चौरंगी लेन की याद दिलादी "--आपके इस कथन से लगता है कि यह प्रसंग कहीं न कहीं उस फिल्म की कहानी से मिलता-जुलता है ।इससे मुझे याद आया कि यह फिल्म शायद राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित है और शायद अपर्णा सेन द्वारा निर्देशित है । और यह सब इसलिये याद कर रही हूँ कि जब भी मैं किसी फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने की बात सुनती थी उसे देखने की इच्छा जाग उठती थी लेकिन हमें बताया गया कि यह तो अँग्रेजी में है तो हम निराश होकर उपहार देखने चले गए थे और उसे देखकर सारी निराशा खत्म होगई ।
पसन्दीदी को पसन्दीदा पढें दीदी!! :)
जवाब देंहटाएंयुवती को थोsडी शर्म आई होगी ज्यादा नही क्यूं कि बाद में चाय पर जो बुला लिया। कहानी बहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंउसने बेमन से सही, बात तो की, चाय पीने का निमंत्रण तो दिया.. वरना आजकल लोग सवाल पूछने पर उठ कर चल देते हैं। एक सकारात्मक कहानी..
जवाब देंहटाएंकहानी का ओर और छोर दोनों कितने यथार्थ हैं, खूबसूरत भी... ये बड़ा कड़वा सच है, तकनीकी और तथाकथित आधुनिकता ने पास होते हुए भी हम लोगों को कितना दूर कर दिया है.. हम सोशल मीडिया और मोबाइल के जरिये अपने से मीलों दूर बैठे व्यक्ति से तो बात कर रहे हैं लेकिन अपने नज़दीक के आदमी का नाम-धाम-काम तक नहीं पता... अजीब दुनिया हम बनाते जा रहे हैं
जवाब देंहटाएंरोचक !!
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं आपको !
जीवन इतना झंझटोंवाला हो गया है सब कुछ जैसे लाद दिया गया हो उस पर , जो अपने आप चलता जा रहा है उसका दोष किसी को कैसे दे कोई !
जवाब देंहटाएं