कैसी ये मजबूरियाँ , कैसा यह अवरोध !
घर में कारावास का ही होता है बोध .
'लॉक-डाउन' में 'लॉक' हैं , गली ,सड़क ,बाजार .
आभासी जग ही बना रिश्तों का आधार .
गली गली सहमी हुई ,मौन पड़े घर द्वार
केवल एक विषाणु से ,आतंकित संसार .
दबे पाँव वह कर रहा ,साँसों पर अधिकार
'अगम' 'अगोचर' हो रहा , कैसे हो प्रतिकार !
नहीं बुलाते अब हमें, सड़क, पार्क ,बाजार
सुबक रहे सन्दूक में ,नए सूट सलवार .
आँगन में ही रोज अब ,उगता है दिनमान .
आँगन में ही दिवस का होजाता अवसान .
दिल-दिमाग की खिड़कियाँ भी होगईं हैं 'लॉक'
दरवाजे पर ना सुनी कबसे कोई 'नॉक' .
बना रखी हैं दूरियाँ ,अपने हों या गैर .
बस मन ही मन कर रहे उनके 'घर' तक सैर .
बहुत सुन्दर और सार्थक दोहे।
जवाब देंहटाएंपत्रकारिता दिवस की बधाई हो।
आभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया लिखा है आपने ,सारे दोहे आज के हालात को दर्शाते हुए ,बधाई हो गिरजा जी ,नमस्कार
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन पर यही तकाजा है आज जीवन का, यदि जिंदगी चाहिए तो इसी जीवन शैली को सामान्य मानकर जीना होगा, इसी में कुछ नवीनता को ग्रहण करने की कला सीखकर आने वाले वक्त के लिए स्वयं को तैयार करना होगा
जवाब देंहटाएंसच में बिल्कुल यही हालत है।
जवाब देंहटाएंपड़कुली का क्या अर्थ है दीदी ?
जवाब देंहटाएंमीना बहिन ,पड़कुली पंडुकी का क्षेत्रीय नाम है . यह पर्पल-गुलाबी मिश्रित रंग का कबूतर से छोटा पक्षी है जिसकी गर्दन में काले रंग की लकीर होती है . अक्सर घरों में घोंसला बना लेता है पर घरेलू नहीं बन पाता कभी .वैसे मैं थोड़ा बदल रही हूँ पंक्ति को क्योंकि करावास और पिंजर दोनों शब्द एक ही भाव को व्यक्त कर रहे हैं .
हटाएं