27 अप्रैल 2023 की सुबह जब मैंने उर्मिला के साथ हरिद्वार के लिये प्रस्थान किया तो मन में उल्लास जिज्ञासा और इस संयोग पर कुछ विस्मय भी था .उल्लास व जिज्ञासा नए स्थान के प्रति तथा विस्मय इस बात का कि पूर्व नियोजित कार्यक्रम कई बार असफल होते देखे गए हैं ,जबकि यह अचानक बना कार्यक्रम था जो किस तरह पूरा होगया था .
उर्मिला मेरी स्कूल की मित्र है . सन् 1972-73 में उससे मेरा परिचय तब
हुआ जब मैंने हायर सेकेण्डरी स्कूल पहाड़गढ़ में नौवीं कक्षा में प्रवेश लिया था .हमारा
केवल दो साल साथ रहा लेकिन बचपन की मित्रता तो जीवनभर की होती है . वर्षों तक हम
नहीं मिलीं पर जब मिली तो साथ संवाद का सिलसिला चल पड़ा और उसने अपने श्रीमद्भागवत
साप्ताह कथा में शामिल होने का आग्रह किया जो वह बद्रीनाथ धाम में करवाने जा रही थी
. उसका अधिकांश समय पूजा भजन और हरिद्वार, वृन्दावन में बीतता है . अब तक वह तीन
बार श्री मद्भागवत् कथा पाठ करवा चुकी थी .चौथा आयोजन बद्रीनाथ धाम में था .
इस दृष्टि से हमारे मेल का प्रमुख आधार प्रेम है .वरना कई कारणों से मैं
तो घर में अखण्ड-रामायण का सार्वजनिक पाठ तक नहीं करवा सकी हूँ . पूजा भी बस नियम
पूर्त्ति जैसी होती है . मित्र मानती हूँ . इसी के आधार पर जिस भाव से उसने मुझे
बद्रीनाथ धाम चलने का प्रस्ताव रखा , और मैं 27 अप्रैल 2023 को मैं उर्मिला के साथ
उसकी वैगन आर में सवार हो चुकी थी .
बद्रीनाथ केदारनाथ गंगोत्री यमुनोत्री ये उत्तराखण्ड के चार धाम हैं
जिनके प्रति बचपन से ही बड़ा आकर्षण था .चाहा तो था कि चारों ही तीर्थ होजाते पर सोचा
कि एक बद्रीनाथ धाम होजाना भी बड़ी उपलब्धि होगा . इस बार मैंने अलकनन्दा के तट पर बसे इस पावन धाम
के बारे में कुछ जानकारियाँ भी हासिल कीं
.ऋषिकेश से लगभग 294 किमी दूर बद्रीनाथधाम चमोली जनपद में लगभग 3133 मीटर
ऊँचाई पर स्थित है .अक्टूबर नवम्बर में मन्दिर के कपाट बन्द होजाते हैं .अखण्ड
ज्योति प्रज्ज्वलित होती रहे इसके लिये छह माह के घी की व्यवस्था की जाती है .उस
दिन विशेष पूजा के साथ बदरीनारायण भगवान नीचे चालीस किमी दूर जोशीमठ (ज्योतिर्मठ) के
नरसिंहभगवान के मन्दिर में विराजमान होते हैं .जो अक्षय तृतीया तक वहीं निवास करते
हैं .यह सब पढ़कर बड़ा आश्चर्य व रोमांच हुआ . एक और बड़ी प्रेरक और सुखद आश्चर्य
की बात कि देश की उत्तरी सीमा पर स्थित इस मन्दिर में
विष्णु भगवान के तीर्थ का नाम बद्रीनाथ धाम क्यों पड़ा इसके पीछे कई
कथाएं है यहाँ एक देना ठीक रहेगा कि किसी युग में वहाँ बदरिका (बेर) के पेड़ो की
बहुतायत थी .
हरिद्वार पहुँचते पहुँचते अँधेरा होगया था . हमारा रात्रि विश्राम
वेदान्त आश्रम में था .गंगा जी के परमार्थ घाट के निकट स्थित वेदान्त आश्रम सुन्दर
स्वच्छ और सर्वसुविधायुक्त और धार्मिक वातावरण वाला आश्रम है .हरिद्वार में प्रवास
के इच्छुक लोगों के लिये तो व्यवस्था है ही ,निराश्रित गरीब बच्चों के पालन व
शिक्षा की व्यवस्था भी है उर्मिला यहाँ आती रहती है . वहाँ श्रीमद्भागवत् का साप्ताहिक
पाठ तो करवा ही चुकी है ..इसलिये वातावरण परिवार जैसा ही है . शाम को उर्मिला के
भाई किसन (कृष्णकुमार) भाभी ऊषा, नोइडा से चचेरी बहिन सुनीता ,उसके पति प्रशान्त और बेटी भी हरिद्वार पहुँच
गए .क्योंकि धाम के लिये 29 अप्रैल का प्रस्थान था इसलिये 28 को ऋषिकेश दर्शन का
लाभ लिया . रवि त्यागी कहने को कार चालक की भूमिका में था लेकिन वह परिवार का
सदस्य ही माना जाता है उसी तरह हर कार्य में हाथ बँटाता है . मैं , भाभी ऊषा और
उर्मिला की छोटी बहिन रेखा तीनों रवि के साथ ऋषिकेश चले गए .वहाँ मैं पहले जा चुकी
हूँ लेकिन इस बार हमारे पास काफी समय था . गंगा जी का विशाल अतुलित प्रवाह, सौन्दर्य
और वैभव देखकर मन आनन्दमय और कृतकृत्य होगया . लक्ष्मण झूला अब बन्द कर दिया गया
है .उसकी जगह सुन्दर अपेक्षाकृत चौड़ा जानकी झूला बन गया है .राम झूला अधिक व्यस्त
था .बाइक साइकिल पैदल ..सब मिलकर काफी भीड़ थी . मेरे विचार से रामझूला का उपयोग
गाड़ियों के लिये नहीं होना चाहिये .
29 अप्रैल की सुबह हम लोग तीन गाड़ियों में ढेर सारे सामान घी ,आटा तेल
मसाले सब्जियाँ आदि के साथ बद्रीधाम की ओर चल पड़े . वहाँ लगभग पन्द्रह लोग आठ दिन
रुकने वाले थे .
बद्रीनाथ धाम का रास्ता बहुत सुन्दर और आसान बना दिया गया है . छोटी सी
वैगनआर दुर्गम पहाड़ों के बीच मानो सर्राटे भरती जा रही थी .मुझे याद है जब मेरी
नानी चार धाम के लिये गईँ थीं , उन्हें भजन कीर्त्तन के साथ भरी आँखों विदा किया था .मां तो लिपटकर रोने लगीं थीं .
सीधा मतलब था कि उस महीनों की दुर्गम यात्रा के बाद लौटने की उम्मीद बहुत कम रहती
थी .
बीच में देवप्रयाग जैसे मनोरम स्थानों पर मेरा मन फोटो लेने के लिये कसमसाता रहा लेकिन उस दिन तो समय से धाम पहुँचने की जल्दी थी . केवल एक जगह चाय नाश्ते के लिये रुके . धाम से कुछ ही दूर पहले बारिश शुरु होगई इसलिये गन्तव्य तक पहुँचने में कुछ देर लगी . रुकावट भी आई . यातायात सुलभ होजाने के कारण हर तीर्थस्थल की तरह बद्रीनाथ धाम में भी कारों और बसों का कफिला कई बार महानगर जैसा ट्रैफिक जाम कर देता है . उस समय भी ऐसा ही था . लेकिन सद्गुरु आश्रम पहुँचकर सबने राहत की साँस ली . अनुभवी और अच्छा साथ हो ,कुशल ड्राइवर हो तो बाधाएं चिन्तित नहीं करतीं सद्गुरु आश्रम में पाँच--छह कमरे और कथा वाचन के लिये हॉल ,रसोई सब पहले ह ही ही बुक कर लिये गए थे . मुझे सुबह की प्रतीक्षा थी जब मैं उजाले में सब देख सकूँगी .
आगे जारी.....
बद्रीनाथ की यात्रा का अति सुंदर और सजीव वर्णन पढ़कर अच्छा लग रहा है,
जवाब देंहटाएंकई वर्ष पूर्व मैंने गंगोत्री की यात्रा की थी, शेष धामों की यात्रा की चाह मन में बनी हुई है, कभी अवश्य अवसर मिलेगा। आपकी सखी को प्रणाम !
अनीता जी आपका बहुत आभार। मुझे भी केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री जाना है। केवल सही साथ की तलाश है।
हटाएंसुन्दर
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