आँखों पर पट्टी बाँध लेना
यानी सच को अनदेखा
करना
नहीं है केवल बाहरी
दृश्यों को
अनदेखा करना
बल्कि अक्षम होजाना है
ज्ञान-चक्षुओं का भी ।
मुँह मोड़ लेना भी है यथार्थ से,
बचकर निकलजाना है ।
जड़ है बहुत से
अनर्थों , विवादों की
कलह -क्लेश और अपवादों
की ।
सच से मुँह मोड़ना 'कछुआ-धर्म' है
पलायन है ।
कुरुक्षेत्र में इसका मर्म
है ।
आँखों पर पट्टी बाँधकर
गांधारी ने मुँह मोड़
लिया था
अन्याय और दुराचार से
।
महल में होरहे
षड़यंत्रों
और अत्याचार से
झोंक दिया था पूरे
कुटुम्ब को
एक भीषण संग्राम में ।
आँखों पर पट्टी बाँधना
मुँह मोड़ना है समय से
समय की गंभीरता
और जीवन में अपनी
भूमिका से ।
अपने दायित्त्व से
मुँह मोड़ना भयानक है सभी का
किन्तु स्त्री का सबसे
अधिक ।
वह धुरी है परिवार की
,समाज की ,
जब जब जहाँ भी आँखों
पर पट्टी बाँधी है स्त्री ने
ठोकर खाई है
न केवल स्त्री ने बल्कि
पूरे परिवार समाज
परिवेश
और जीवन मूल्यों ने भी
।
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