हर सुबह करती हूँ एक प्रण
फेंककर आवरण
आलस्य का ,
करनी ही है पूरी
आज कोई कहानी
नई या पुरानी ..
या कुछ नहीं तो लिख ही डालूँ
एक सार्थक कविता
कबसे नहीं लिखी गई !
बहुत हुआ भटकाव
यहाँ वहाँ अटकाव
पर सवाल ,
कि पहले करूँ किस विधा का चुनाव ?
कहानी, गीत, संस्मरण ,यात्रा-वृत्तान्त
उपन्यास कोई दुखान्त या सुखान्त
प्लॉट तो पड़े हैं कितने ही
भवन खड़ा करना है .
उसी में जीना मरना है
कितनी कहानियाँ अधूरी हैं
देखना उनको को भी जरूरी है .
लेकिन ,
अभी एक ताजा संस्मरण भी कुलबुला रहा है
मुझे देर से बुला रहा है .
अरे हाँ ,आत्मकथा भी तो
छोड़ रखी है शुरु कर
पर इनके पारावार में उतरकर
संभव नहीं कुछ और भी लिखना
कुछ भी दिखना ..
इससे तो अच्छा है
फिलहाल लिखलूँ एक गीत ,
दिल-दिमाग में उगा है अभी अभी
पर...लिखूँ कैसे !
कितना कुछ तो बिखरा पड़ा है
मुद्दों का अम्बार अड़ा है रास्ते में
किसे उठाऊँ किसे छोड़ूँ !
उफ् ....एक बीमारी ही है
जुनून लिखने का
सबके बीच कुछ दिखने का.
अनुभवों को पीसते छानते
रबर सा तानते
बीत गया कितना समय !
कहाँ लिख पाई वह ,
जो शेष है अभी तक
तल में जमे रेत सा
बारिश का इन्तज़ार करते खेत सा
कितना थकान भरा होता है
सूखे बंजर खेत को सोचना
सोचे हुए को लिखना .
लिखकर छपने की चाह
आह या वाह
अरे छोड़ो अभी सोच--विचार ,कुतर्क,फितूर
आज जरूरी है रहना तनाव से दूर
कल करूँगी पूरी कोई कहानी
मनमानी .
बीत रही हैं सुबह शाम ,
दिन अनगिन...इसी तरह
कुछ किये बिन,
सिर्फ सोचते हुए .
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 24 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह ! यही भी खूब रही, मानसिक उधेड़बुन से एक रचना का जन्म हो गया
जवाब देंहटाएं'यह भी'पढ़ें
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और जीवन से जुड़ी रचना।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 26 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह!बहुत खूबसूरत सृजन । सही है इसी उधेडबुन में आधा जीवन व्यर्थ ही निकल जाता है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्रण मनोभावों का ।
जवाब देंहटाएंहमारी भी अक्सर यही हालत होती है दी, कारण कुछ आलस्य और कुछ व्यस्तता !!!
जवाब देंहटाएंपता नहीं यह आपकी मनोदशा का कित्रण है या मेरे मस्तिष्क की उलझनों का शब्दचित्र... कितने विचार जन्मे और अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गये... गंगा की तरह उन्हें डुबा दिया जन्मते ही... कितनी कविताओं की भ्रूण हत्या हुई... आज आपकी इस रचना ने अपराध बोध से भर दिया मेरे मन को! कभी अवसर मिला तो माफ़ी माँग लूँगा उनसे!
जवाब देंहटाएं