क्या कभी
सोचा है तुमने कि
गन्दी
नाली साफ करते हुए
वह कीचड़
में लिथड़ा आदमी
क्या सोचता होगा ,
क्या सोचता होगा ,
जब कोई
गुजर जाता होगा
एकदम साफ दमकता
महकता
चमचमाती
कार में या बाइक पर
सर्राटे
भरता हुआ उसके बगल से
उसे एकदम
नज़रअन्दाज़ करके .
सोचो और
सोचकर देखो
मैं सोचती हूँ और पाती हूँ खुद को विनत
कीचड में लिथड़े
आदमी के सामने जो
निष्काम भाव से
करता रहता है अपना काम .
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 14 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंविचारणीय अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय शास्त्री जी .
हटाएंमार्मिक
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