सफेद रेगिस्तान
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सब कुछ स्वप्नलोक जैसा . दूर दूर तक केवल बर्फ ही बर्फ .. विस्फारित से
नयन हिम का निस्सीम सा वैभव विस्तार देखने आतुर ..मिट्टी पत्थर मैदान पहाड़ पौधे
झाड़ियाँ ...सब हिमाच्छादित.. शुभ्रवसना माँ जैसे धवल चादर ओढ़कर आराम कर रही हो .
कहीं कहीं उगे पौधे और झाड़ियाँ चंचल शिशु जैसे माँ के लाख ढँकने के बावज़ूद चादर
से मुँह निकालकर देख रहे हों ..
यह विवरण आस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स में स्थित ‘स्नोई
माउंटेन’ (snowy mountain) की ‘पेरिशर वैली’ का
है .आस्ट्रेलिया की यह उच्चतम पर्वत श्रंखला 'ग्रेट डिवाइडिंग रेंज ' की एक श्रंखला है ) जहाँ हम पिछले सप्ताह गए थे . इन दिनों अदम्य के स्कूल की छुट्टियाँ चल रही है
. स्नोई माउंटेन जाने का उसका आग्रह बहुत समय से लम्बित था . हालाँकि मयंक श्वेता
का स्वास्थ्य इसकी अनुमति नहीं दे रहा था पर पहले की बुकिंग थी ,जिसे स्थगित करने
का कोई विकल्प नहीं था उधर अदम्य जिस उल्लास से अपने कपड़े खिलौने सूटकेस में जमा
रहा था योजना को रद्द करना मुश्किल था इसलिये 7 जुलाई 2022 को मयंक ने कार की
स्टेयरिंग सम्हाली और हम लोगों ने अपनी-अपनी सीट .सिडनी से पेरिशर वैली तक का यह लगभग 500 किमी का है . लेकिन सफर है काफी सुन्दर और सुविधाजनक . सपाट निर्बाध सड़क , दोनों तरफ पेड़ ; पेड़ हरे भरे भी और वसन्त का इन्तज़ार करते सूने उजड़े से पत्रविहीन भी . लगभग 150 किमी चलने के बाद हम लोग कॉफी के
लिये (चाय नहीं मिलती ) ‘ओलिव व्यू कैफे’ में रुके .
जैसा कि नाम से स्पष्ट है यहाँ ओलिव यानी जैतून का बड़ा फार्म है . यह जगह बहुत ही खूबसूरत है . कॉफी और घर से बनाकर लाई गईं मूँगदाल
की कचौड़ियाँ खाकर
ताजगी मिली तो मयंक ने दुगने उत्साह के साथ कार स्टार्ट कर दी .
जैतून का फार्म |
जैतून की कतारें |
'कुमा' और 'केनबरा' को पार करते हुए , स्थान के साथ ही धीरे धीरे रंगरूप बदलते जा रहे पेड़ों को निहारते हुए हम तीन बजे ‘जिन्दबाइन’ पहुँच गए . एक बड़ी और खूबसूरत झील के किनारे बसा हुआ यह शहर पेरिशर वैली तक के लम्बे सफर के बीच एक आरामदेह पड़ाव है . यहाँ हमें रात्रि विश्राम के अलावा बर्फीले मौसम के अनुकूल कपड़े जूते कार की चेन आदि सामान लेना था . 'मॉन्स्टर्स-डिपो'( monster depot) में गोरी, तन्वंगी ,अल्पवय और सुदर्शना युवतियाँ जिस तत्परता और सस्मित संवाद के साथ सबको सामान दे रही थीं , सामान के लिये दो घंटे की प्रतीक्षा मुझे बिल्कुल नहीं अखरी . यहाँ अठारह साल के बाद बच्चे ,लड़के हों या लड़कियाँ , अपना खर्च खुद उठाते हैं . सबसे बड़ी बात कि माता पिता को बेटियों की सुरक्षा की चिन्ता नहीं करनी पड़ती .
जिन्दबाइन झील |
जिन्दबाइन टाउन |
सामान लेने के बाद तय हुआ कि किसी रेस्टोरेंट में बैठकर पेट-पूजा की जाय लेकिन पर्यटकों की इतनी अधिकता कि जहाँ भी गए कोई सीट खाली नहीं थी . वेटिंग भी डेढ़ से दो घंटे ..पूरा एक घंटा तलाश करने पर एक जगह स्वीकृति मिली वह भी एक घंटे बाद की . हालाँकि घर से बनाकर लाया खाना ,फल, ब्रेड ,सब रखा था पर बाहर ताजा गरम पिज्ज़ा ( यहां शाकाहारियों के लिये एकमात्र यही भोज्य है ) खाने की इच्छा ने खूब भटकाया ..खैर
8 जुलाई को सुबह नौ बजे हम लोग पेरिशर वैली को चल पड़े . जिन्दबाइन
से पेरिशर वैली तक का सफर 30-35 मिनट का है . कुछ किमी चलने पर जंगल शुरु होगया .
असल में यह पूरा क्षेत्र कॉजियस्को नेशनल पार्क (kosciuzko national park) का ही हिस्सा है . आस्ट्रेलिया का यह
कठोर और वीरान क्षेत्र जून से अक्टूबर तक बर्फ और हिमपात के कारण पर्यटकों के लिये
बेहद आकर्षक और रोमांचक रहता है .अक्टूबर से गर्मियाँ प्रारम्भ होजाती हैं .
हम लोग जैसे जैसे बढ़ते गए , पेड़ों के बीच बर्फ का विस्तार भी बढ़ता
गया साथ ही हमारा उत्साह व रोमांच भी . और ..अन्ततः हम बहुप्रतीक्षित सर्वत्र हिमाच्छादित विशाल पेरिशर
वैली में थे . हमने जिन्दबाइन से लिये कोट ,बूट ,ग्लब्ज पहने ,जो बर्फ के लिये
खासतौर पर तैयार किये गए होते हैं .हमारे उत्साह का कोई ठिकाना न था . सब बच्चों
की तरह किलक रहे थे . बर्फ का ऐसा वैभव पहली बार सामने था . दूर तक केवल प्रकृति
का धवल हास ..मानो किसी ने सफेद नरम कालीन बिछा दिया हो . उजला कालीन जिस पर कठोर बूट रखते संकोच होता था . उसी समय और.. हिमपात (स्नो
फॉलिंग) भी शुरु होगया .. अहा.. धवल फुहारों में खड़े हम... ,चेहरे पर , कपडों पर, हिमकणों स्पर्श ...वह सचमुच एक
अपूर्व अनुभव था .ऐसी फुहारें जो भिगो नहीं रहीं थीं . जैसे किसी ने रेशा रेशा कपास
बिखराकर उड़ा दिया हो . पैरो के नीचे बर्फ का ढेर था ..शिलाखण्ड जैसी कठोर नहीं ,
रेत जैसी भुरभुरी और गीली बर्फ जिसके गोले बनाकर लोग एक दूसरे पर फेंक रहे थे .हवा में हिमकण रेत की तरह उड़ रहे थे, ..जैसे हम बर्फ के
रेगिस्तान में खड़े हों ..दूर दूर तक ठंडा सफेद रेगिस्तान जिसे पार करना दुष्कर हो . पाँव मन मन भारी होरहे
थे पर उत्साह ऐसा कि रोम रोम ऊर्जा से भरा जा रहा था . हम जी भरकर फिसले , दौड़े , बर्फ के गोले
बनाकर एक दूसरे पर फेंके ..लोग स्कीइंग कर रहे थे . जो अभ्यस्त थे वे दूसरे हिस्से में रोप वे से ऊपर जाकर स्कीइंग का आनन्द ले रहे थे
बर्फ में बहुत देर तक रहना व चलना निश्चित ही हमारी क्षमता से ऊपर था . पास ही बने कैफे में कॉफी पीते हुए मैं उन लोगों के बारे में सोच रही थी जिन्हें महीनों बर्फ में ही रहना पड़ता है . हमारे जवानों को भी देश की सीमाओं पर दुश्मन से ही नहीं बर्फीले तूफानों से भी दो दो हाथ करने होते हैं . कितना कठिनाई भरा जीवन होता है उनका ! सोचकर मन कृतज्ञता से भर गया .
जिन्दबाइन लौटते शाम होगई . पिछली शाम भूख मिटाने जिस तरह हमें जगह जगह भटकना पड़ा , तय हुआ कि स्टोव मिल जाए तो दाल चावल खुद ही बनालें . श्वेता सारा सामान साथ लाई थी . वह इंजीनियर होने के साथ साथ एक अच्छी गृहणी भी है .काफी प्रयास के बाद बीस डॉलर किराए पर एक घंटे के लिये स्टोव मिल गया . मैंने कहा एक घंटे के लिये बीस डालर ? (लगभग1150 रुपए मेरे दिमाग में हमेशा रुपया रहता है ) श्वेता हँसकर बोली –"माँ कल खाना तो सौ डालर का था .”
9 जुलाई को हम जैसे ही जिन्दबाइन से चलने लगे अदम्य महाशय का रोना शुरु होगया . काफी पूछने पर बोले—"मुझे घर नहीं जाना ."
"तो फिर ?"
"मुझे स्नोई माउंटेन ही और जाना है .”
वहाँ उसने खूब मस्ती की थी .पर यह संभव नहीं था . उसे किसी तरह मनाया और केनबरा रुकने और बहुत सारी चीजें दिखाने का वादा करके चुप काराया .
पार्लियामेंट ऑफ ऑस्ट्रेलिया का अग्रभाग |
पत्रविहीन पेड़ जो वसन्त में फूलों से लद जाएंगे . |
केनबरा में पहले से बुकिंग नहीं थी इसलिये कोई होटल नहीं मिला . हमें पार्लियामेंट हाउस देखकर ही सन्तोष करना पड़ा . लेकिन केनबरा एकबार फिर आना होगा जब वसन्त होगा और पत्रहीन खड़े बेशुमार पेड़ लाल गुलाबी फूलों से भर जाएंगे ..केनबरा से चलते पाँच बज गए . इन दिनों सूर्यास्त होते ही अँधेरा होने लगता है . घर लौटने तक धूमिल आसमान के नीचे सारा शहर जगमगा रहा था .
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
धन्यवाद श्वेता .
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-07-2022) को चर्चा मंच "दिल बहकने लगा आज ज़ज़्बात में" (चर्चा अंक-4492) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी
हटाएंपेरिशर वैली की यादगार यात्रा का अपने अति सुंदर विवरण लिखा है, पढ़ते समय लग रहा था, हम स्वयं बर्फ़ की वादियों में पहुँच गए हैं। ऐसे ही पौत्र के कहने पर आस्ट्रेलिया के अन्य खूबसूरत स्थानों की यात्रा करते रहिए और हमें भी उसका आनंद घर बैठ मिल जाएगा।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनीता जी . आप मेरा उत्साह बनाए रखतीं हैं ब्लाग पर आकर और अपने विचार लिखकर .
हटाएंआपका संस्मरण बहुत रोचक व जीवन्त लगा ।पढ़ते समय अहसास हुआ कि आपके साथ यात्रा में शामिल है । आपकी सशक्त लेखनी को नमन।
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे ।
अत्यंत सुन्दर और सजीव शैली में लिखा आपका यात्रा वृतान्त बहुत रोचक लगा ।सादर नमन आपकी सशक्त लेखनी व आपको ।
जवाब देंहटाएंआभार
जवाब देंहटाएंसिडनी घुमा दिया आपने
सादर नमन
आपका यह यात्रा संस्मरण रोचकता लिए हुए है । आपके यादों के साथ हम भी सैर कर आये ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संस्मरण
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संस्मरण
जवाब देंहटाएंमनमोहक तस्वीरों के साथ बहुत ही रोचक यात्रावृत्तांत ।
जवाब देंहटाएंवाह वाह! अच्छी सैर कराई आपने ऑस्ट्रेलिया की, आभार आपका।
जवाब देंहटाएंअरे वाह! बहुत सुंदर यात्रावृत्तांत, ऑस्ट्रेलिया घूमा दिया आपने दी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर।
सादर
सुरम्य स्थान का सुरम्य वर्णन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रोचकता से भरपूर मात्रा वर्णन।
शानदार लेखनी ।गद्य में पद्य का लुत्फ।।
धन्यवाद कुसुम जी
हटाएंबहुत सुंदर ढंग से लिखा आपने यात्रा वृतांत ,लगा साथ ही घूम रहे हैं। स्टोव किराए पर ले कर खाना बनाना ,बहुत ही रोमांचक लगा । हर देश अपनी तरह से अलग ही खूबसूरती लिए हुए हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद रंजू जी . आपका स्वागत . प्रसन्नता हुई आपके आने और अपनी प्रतिक्रिया देने का .
हटाएंआदरणीया आपने आप के साथ साथ हमें भी यात्रा करवा दी आप ने इतना सुंदर वर्णन किया है,बहुत सारी शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंआदरणीया आपका बहुत बहुत शुक्रिया,आपकी लेखनी ने मुझे सजीव यात्रा करवा दी,बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद मधूलिका जी
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है कि यात्रा से अधिक रोमांचक तो उसके वृत्तांत हैं जो आप हमारे समक्ष प्रस्तुत कर रही हैं और उसपर आपका छोटी से छोटी सी बात का ब्यौरा इतना सहज और सरल है कि अनायास ही हम उसका हिस्सा बन जाते हैं. आपकी इस यात्रा में हम भी आपके हमसफ़र हो गए हैं. बहुत बहुत धन्यवाद इस संस्मरण श्रृंखला के लिए.
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया से यह पोस्ट आज परिपूर्ण हुई ।
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