शनिवार, 24 अगस्त 2024

मैं खुश हूँ



 प्यारे नीम के पेड़

मैं खुश हूँ कि

देख पा रही हूँ तुम्हें

फिर से हरा भरा .

बीत गया बुरे सपने जैसा

वह समय

जब निर्दयता से

चला दी गयी कुल्हाड़ी तुम्हारी हरी भरी शाखों पर .

सारी टहनियाँ ,सारे पत्ते उतार दिये गये

तुम्हारे तने से ,कपड़ों की तरह .

तुम खड़े रह गए निरीह निरुपाय कबन्ध मात्र

सिसक उठीं थीं चिड़ियाँ ,गिलहरियाँ

मेरे हृदय की तरह .

जैसे उजड़ गया मेरा भी

आश्रय पिता के साये जैसा .

 

लेकिन खुश हूँ ,

कि तुम पहले से अधिक

सघन हरीतिमा के साथ लिये फैल रहे हो,

मेरे रोम रोम में उल्लास बनकर .

जैसे हँस रहे हों

कुल्हाड़ी वाले हाथों की नीयत पर

खुश हूँ कि तुम्हारे कोमल

अरुणाभ पल्लव ऊर्जा की चमक लिये

मुस्करा रहे हैं ,

एक उम्मीद जैसे .

कि ठूँठ होजाने पर भी

ज़मीन से जुड़ा एक पेड़

नहीं छोड़ता पल्लवित होना ,

सीख रही हूँ तुमसे मैं भी ऐसा ही कुछ .

खुश हूँ कि ,

आत्मविश्वास से भरी हुई

तुम्हारी घनी टहनियाँ और पत्ते .

रोकने में समर्थ हैं ,

चिलचिलाती कण कण झुलसाती

धूप का आतंक ,

निश्शंक  हवाओं का ज़हर

और कहर साँसों पर .

बहुत खुश हूँ

मेरे नीम के पेड़

कि तुम हो मेरे आँगन में ,

मेरे पिता की तरह

एक गुरु की तरह

और एक माँ की तरह भी .