(सुश्री महादेवी वर्मा का प्रयाण-दिवस)
देवि तुम्हारे लिये
हृदय
के सारे गीत
समर्पित
हैं ।
भारत
की भारती
काव्य-पथ
युग-युग
तुमसे तुमसे सुरभित है ।
तुमने करुणा--जल पूरित
विगलित
भावों से जैसे
मरु
में हरीतिमा मुस्काई
छू लेता
है मर्म
व्यथा
से अक्षर-अक्षर गुम्फित है
आज तुम्हारे
लिये...।
ममता
की प्रतिमा
पीयूष
बरसातीं रहीं सदा अविरल
'घीसा', 'रामा' 'गिल्लू' 'सोना'
अमर
बनाए प्रिय निश्छल
मानव
ही क्यों ,
पशु-पक्षी
भी कहाँ नेह से वंचित हैं
आज तुम्हारे
लिये...।
व्यथा--वेदना
विष पीकर भी
सदा
सुधा बरसाया
नारी
की गरिमा--ममता को
शुचि, ,साकार बनाया ।
राह
बनाई जो तुमने
शुभ-संकल्पों
से सज्जित है
आज तुम्हारे
लिये...।
चली
गई हो देवि
अलौकिक
राहों को तुम महकाने
जीवनभर
पीडा में जिसको ढूँढा
उस प्रिय
को पाने ।
नीर-भरी
दुःख की बदली का
जल कण-कण
से अर्जित है
आज तुम्हारे
लिये..।
करुणा
जब तक होगी
और हदय
में संवेदन होगा
शोभित
सम्मानित तुमसे
हिन्दी-साहित्य
गगन होगा
श्रद्धा
के ये सुमन सजल
हे विमले
,तुमको अर्पित हैं
आज तुम्हारे
लिये हदय के
सारे
गीत समर्पित हैं ।