कौन कहाँ ठहरा है बाबा !
राज़ बडा गहरा है ।
पूरब-पश्चिम , उत्तर दक्षिण
बाहर दिखे न कोई लक्षण ।
लेकिन अन्दर झाँकोगे तो,
नस-नस भेद भरा है बाबा !
राज़ बडा गहरा है ।
साथी कबके वाम होगए !
छल के किस्से आम होगए ।
बैठे--ठाले कामयाब हैं ,
मेहनतकश नाकाम होगए ।
रूखे--सूखे पेडों का,
यह कैसे रंग हरा है बाबा !
राज़ बडा गहरा है ।
कितनी दीवारों के अन्दर !
कितने दरवाजों को तय कर !
तालों और तालों के भीतर ,
छुपा रखा सोने का तीतर ।
कैसे बाहर लाओगे तुम ?
देखो मुँह की खाओगे ।
और किसे समझाओगे तुम
हर कोई बहरा है बाबा !
राज़ बडा गहरा है ।
सत्ता के जो गलियारे हैं
लगें बडे उजियारे हैं ।
छिपा सके जो अँधियारे को
उनके वारे--न्यारे हैं ।
कैसे क्या कुछ अर्जित है !
इसे खोजना वर्जित है ।
केवल उसका ही डर है
चौराहा जिसका घर है ।
अपनी उसे चलाने से
सच की दाल गलाने से
बरबस रोका जाएगा
हर शय टोका जाएगा ।
देखो भाले तने हुए
मक्कड--जाले बुने हुए
जो आवाज उठाते हैं
मुफ्त सताए जाते हैं ।
कैसे व्यूह तोड पाओगे
बडा कठिन पहरा है बाबा !
राज़ बडा गहरा है ।
फिर भी आगे आना है ?
तन कर शीश उठाना है ?
सिर पर एक कफन कसलो
जान हथेली पर रखलो
संभव है ओले बरसें
बारूदी गोले बरसें
कीचड सिर तक आएगी
धूल नज़र भर जाएगी ।
कण्टक पग में अखरेंगे
रोडे पथ में बिखरेंगे ।
तूफां से लडना होगा ।
पर्वत सा अडना होगा ।
अपनी राह बना कर चलना
काँटों का सेहरा है बाबा,
राज़ बडा गहरा है ।
राज़ बडा गहरा है ।
पूरब-पश्चिम , उत्तर दक्षिण
बाहर दिखे न कोई लक्षण ।
लेकिन अन्दर झाँकोगे तो,
नस-नस भेद भरा है बाबा !
राज़ बडा गहरा है ।
साथी कबके वाम होगए !
छल के किस्से आम होगए ।
बैठे--ठाले कामयाब हैं ,
मेहनतकश नाकाम होगए ।
रूखे--सूखे पेडों का,
यह कैसे रंग हरा है बाबा !
राज़ बडा गहरा है ।
कितनी दीवारों के अन्दर !
कितने दरवाजों को तय कर !
तालों और तालों के भीतर ,
छुपा रखा सोने का तीतर ।
कैसे बाहर लाओगे तुम ?
देखो मुँह की खाओगे ।
और किसे समझाओगे तुम
हर कोई बहरा है बाबा !
राज़ बडा गहरा है ।
सत्ता के जो गलियारे हैं
लगें बडे उजियारे हैं ।
छिपा सके जो अँधियारे को
उनके वारे--न्यारे हैं ।
कैसे क्या कुछ अर्जित है !
इसे खोजना वर्जित है ।
केवल उसका ही डर है
चौराहा जिसका घर है ।
अपनी उसे चलाने से
सच की दाल गलाने से
बरबस रोका जाएगा
हर शय टोका जाएगा ।
देखो भाले तने हुए
मक्कड--जाले बुने हुए
जो आवाज उठाते हैं
मुफ्त सताए जाते हैं ।
कैसे व्यूह तोड पाओगे
बडा कठिन पहरा है बाबा !
राज़ बडा गहरा है ।
फिर भी आगे आना है ?
तन कर शीश उठाना है ?
सिर पर एक कफन कसलो
जान हथेली पर रखलो
संभव है ओले बरसें
बारूदी गोले बरसें
कीचड सिर तक आएगी
धूल नज़र भर जाएगी ।
कण्टक पग में अखरेंगे
रोडे पथ में बिखरेंगे ।
तूफां से लडना होगा ।
पर्वत सा अडना होगा ।
अपनी राह बना कर चलना
काँटों का सेहरा है बाबा,
राज़ बडा गहरा है ।
लेकिन जो हैं अड़े हुए .
राह रोककर खड़े हुए
साहस और सत्य की घुट्टी
पी पीकर जो बड़े हुए .
वे ही आगे आएंगे .
वे ही कुछ कर पाएंगे .
उनसे झाड़ू लगवाएंगे
जो फैलाते कचरा है बाबा.
राज़ बड़ा गहरा है .
आपने बिल्कुल सही कहा है काँटों का सेहरा है बाबा, राज बड़ा गहरा है, लेकिन लड़ाई जारी रहेगी, शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंसटीक समसामयिक रचना ... बहुत गहरे राज़ छिपे हैं ...कैसे पार पायेंगे ?
जवाब देंहटाएंजान हथेली पर रखलो
जवाब देंहटाएंसंभव है ओले बरसें
बारूदी गोले बरसें
कीचड सिर तक आएगी
धूल नज़र भर जाएगी ।
कण्टक पग में अखरेंगे
रोडे पथ में बिखरेंगे ।
तूफां से लडना होगा ।
पर्वत सा अडना होगा ।
अपनी राह बना कर चलना
काँटों का सेहरा है बाबा,
राज़ बडा गहरा है ।... sach me
सटीक समसामयिक रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंवाकई ये राज़ बड़ा गहरा है ...
जवाब देंहटाएंसत्य ही कहा !
राज बड़ा गहरा है बाबा ... प्रगतिशील ,साहस भरी रचना को सलाम ..
जवाब देंहटाएंलेखन सतत चिरायु होता है ,जिसको आप साबित कर रही हैं .सुंदर रचना
शुक्रिया जी /
कितनी दीवारों के अन्दर !
जवाब देंहटाएंकितने दरवाजों को तय कर !
तालों और तालों के भीतर ,
छुपा रखा सोने का तीतर ।
कैसे बाहर लाओगे तुम ?
देखो मुँह की खाओगे ।
और किसे समझाओगे तुम
हर कोई बहरा है बाबा !
वाकई बड़ी गहरी बात...उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई
तूफां से लडना होगा ।
जवाब देंहटाएंपर्वत सा अडना होगा ।
अपनी राह बना कर चलना
काँटों का सेहरा है बाबा,
राज़ बडा गहरा है ।....
बहुत सही कहा है...संघर्ष का रास्ता आसान नहीं होगा, लेकिन फिर भी इसे जारी तो रखना ही होगा..बहुत समसामयिक और सटीक प्रस्तुति..
"साथी कबके वाम होगए !
जवाब देंहटाएंछल के किस्से आम होगए ।
बैठे--ठाले कामयाब हैं ,
मेहनतकश नाकाम होगए ।
रूखे--सूखे पेडों का,
यह कैसे रंग हरा है बाबा !
राज़ बडा गहरा है ।"
क्या बात है !
बिल्कुल सटीक और सार्थक ।
बहुत ही बढिया लगी कविता ।बैठे ठाले कामयाब है और मेहनतकरने वाले नाकाम है। सूखे पेड हरे होगये।
जवाब देंहटाएं""यहां तक आते आते सूख जाती है सभी नदिया
हमे मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा।""
जो अधिंयारे को छुपा सकते है उनके ही बारे न्यारे होते है। शब्दों का चयन भाव के अनुरुप । इस कविता में करुण रस भी है और बीर रस भी।शिक्षा भी है और संदेश भी। निडर होने की बात भी और हौसला अफजाई भी । बहुत ही सुन्दर रचना ।
Bahut Gahari Kavitaa hai, Andar aur Baahar dono ke liye.
जवाब देंहटाएंकण्टक पग में अखरेंगे
जवाब देंहटाएंरोडे पथ में बिखरेंगे ।
तूफां से लडना होगा ।
पर्वत सा अडना होगा ।
अपनी राह बना कर चलना
काँटों का सेहरा है बाबा,
राज़ बडा गहरा है ।
बहुत बढ़िया...