कब तक बाट निहारते भटकेगा अविराम !
रे मनवा अब लौट चल, घिर आयी है शाम ।
क्यों लहरों को कोसता ,यह तूफानी मौन !
नाम लिखा कर रेत पर अमिट हुआ है कौन !
अनजाने भेजा गया बिना पते का पत्र
अनबूझा यों उड रहा यत्र-तत्र-सर्वत्र ।
सीखा कभी न तैरना गहरा पारावार
दो अक्षर की नाव पर हम उतरे मँझधार ।
बुला रहा कोई कहीं ,था कोरा अन्दाज
पर्वत लौटाते रहे ,मेरी ही आवाज ।
अनजाना यह शहर है भीड भरा बाजार
कोई अपना सा हमें मिल जाता एक बार ।
टहनी-टहनी फूटती है पल्लव सी पीर
रोम-रोम चुभने लगा बनकर शूल समीर ।
पर्वत रहते बेअसर क्या वर्षा तूफान
क्या धरती की वेदना , क्या सागर का मान ।
रटीरटायी सी कोई एक उबाऊ सीख
रहे कैलेन्डर में सदा हम गुजरी तारीख ।
बूटे-बूटे में लिखा है यह किसका नाम
चप्पे-चप्पे में घुला रंग वही अभिराम ।
रे मनवा अब लौट चल, घिर आयी है शाम ।
क्यों लहरों को कोसता ,यह तूफानी मौन !
नाम लिखा कर रेत पर अमिट हुआ है कौन !
अनजाने भेजा गया बिना पते का पत्र
अनबूझा यों उड रहा यत्र-तत्र-सर्वत्र ।
सीखा कभी न तैरना गहरा पारावार
दो अक्षर की नाव पर हम उतरे मँझधार ।
बुला रहा कोई कहीं ,था कोरा अन्दाज
पर्वत लौटाते रहे ,मेरी ही आवाज ।
अनजाना यह शहर है भीड भरा बाजार
कोई अपना सा हमें मिल जाता एक बार ।
टहनी-टहनी फूटती है पल्लव सी पीर
रोम-रोम चुभने लगा बनकर शूल समीर ।
पर्वत रहते बेअसर क्या वर्षा तूफान
क्या धरती की वेदना , क्या सागर का मान ।
रटीरटायी सी कोई एक उबाऊ सीख
रहे कैलेन्डर में सदा हम गुजरी तारीख ।
बूटे-बूटे में लिखा है यह किसका नाम
चप्पे-चप्पे में घुला रंग वही अभिराम ।
vah ...kya baat hai, sabhi ek se ek.
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जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ट्विटर और फेसबुक पर चुनावी प्रचार - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंबुला रहा कोई कहीं ,था कोरा अन्दाज
जवाब देंहटाएंपर्वत लौटाते रहे ,मेरी ही आवाज ..
हर छंद भाव प्रधान है ... इसने खास प्रभावित किया ... इस उलट फेर में कहन कि अभिव्यक्ति का भरपूर आनद है ...
आज तो आपने दर्शन शास्त्र की क्लास लगा दी है दीदी! किस दोहे के बारे में कहूँ और क्या कहूँ..
जवाब देंहटाएंजहाँ स्वयम का पता पाया वो दोहा है:
अनजाने भेजा गया बिना पते का पत्र
अनबूझा यों उड रहा यत्र-तत्र-सर्वत्र ।
बस कब पते पर पहुँचूँगा या पहुँचूँगा भी या नहीं, क्या पता! एक पंक्ति में कहूँ तो मन को शांति पहुँचाते और चिंतन को उकसाते हुए दोहे!!
यथार्थ का प्रतिचित्र। समुचित-सुन्दर-आकर्षक भावाभिव्यक्ति के साथ।
जवाब देंहटाएंवरिष्ठ कथाकार बल्लभ डोभाल जी को आपका गीत पढ़ाया। कह रहे थे बहुत अच्छा है। मैंने सोचा आपको अवगत करा दूं।
हटाएंशुक्रिया विकेश । आपका अपनत्व है यह और मेरी रचनाओं के प्रति विश्वास ।
हटाएंअनुपम .....
जवाब देंहटाएंकिसकी तारीफ़ करूँ और कौन सा छोड़ूँ -तय करना मुश्किल .पर यो दोहा तो
जवाब देंहटाएंमन में प्रतिध्वनित हो रहा है -
बुला रहा कोई कहीं ,था कोरा अन्दाज
पर्वत लौटाते रहे ,मेरी ही आवाज ।
आभार आदरणीया दीदी
जवाब देंहटाएंबुला रहा कोई कहीं ,था कोरा अन्दाज
जवाब देंहटाएंपर्वत लौटाते रहे ,मेरी ही आवाज ।
laazwaab ,man ko bha gayi ,barbar padhne ko jee kar raha hai .
बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति !!
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