नव-संवत्सर आप सबके लिये मंगलमय हो ।
जाग गया मौसम जैसे
सर्दी की फेंक रजाई ।
टहनी-टहनी पल्ल्व पीके,
महकी उठीअमराई ।
जैसे जागे जल्दी भोर
सजाए रंगोली ।
द्वार क्षितिज के सबसे पहले
बिखराए रोली ।
वैसे ही जागें,विचार अब
जाग गया मौसम जैसे
सर्दी की फेंक रजाई ।
टहनी-टहनी पल्ल्व पीके,
महकी उठीअमराई ।
जैसे जागे जल्दी भोर
सजाए रंगोली ।
द्वार क्षितिज के सबसे पहले
बिखराए रोली ।
वैसे ही जागें,विचार अब
वैसे ही महकें व्यवहार अब
पलकों में एक अम्बर हो
ऐसा नव संवत्सर हो
औरों के पीछे ना भागें
खुद को ही पहचानें
अपनी क्षमताओं को समझें
भूलों को भी जानें ।
जहाँ कही हो अनाचार
विद्रोह वहाँ तो खुल कर हो
ऐसा नव-संवत्सर हो ।
रिश्वत का व्यापार रुके
व्यापक भ्रष्टाचार रुके
बैठे--ठाले नाम कमाने का
यह कारोबार रुके ।
अपना हर दायित्त्व निभाने को
हर कोई तत्पर हो
ऐसा नव--संवत्सर हो ।
अँग्रेजी की आदत क्यूँ हो ?
इण्डिया माने भारत क्यूँ हो ?
ह्रदय न समझे मतलब जिसका
ऐसी जटिल इबारत क्यूँ हो ?
सरल भाव हों , सरल छन्द हों
अपनी लय अपना स्वर हो
ऐसा नव--संवत्सर हो ।
चमक-दमक के पीछे
घना तिमिर है , ध्यान रहे
पथ में दीप जलाने वालों का
सम्मान रहे ।
ईंट फेंकने वालों को
देने फौलादी उत्तर हो ।
ऐसा नव--संवत्सर हो
ऐसा नव-संवत्सर हो ।
पलकों में एक अम्बर हो
ऐसा नव संवत्सर हो
औरों के पीछे ना भागें
खुद को ही पहचानें
अपनी क्षमताओं को समझें
भूलों को भी जानें ।
जहाँ कही हो अनाचार
विद्रोह वहाँ तो खुल कर हो
ऐसा नव-संवत्सर हो ।
रिश्वत का व्यापार रुके
व्यापक भ्रष्टाचार रुके
बैठे--ठाले नाम कमाने का
यह कारोबार रुके ।
अपना हर दायित्त्व निभाने को
हर कोई तत्पर हो
ऐसा नव--संवत्सर हो ।
अँग्रेजी की आदत क्यूँ हो ?
इण्डिया माने भारत क्यूँ हो ?
ह्रदय न समझे मतलब जिसका
ऐसी जटिल इबारत क्यूँ हो ?
सरल भाव हों , सरल छन्द हों
अपनी लय अपना स्वर हो
ऐसा नव--संवत्सर हो ।
चमक-दमक के पीछे
घना तिमिर है , ध्यान रहे
पथ में दीप जलाने वालों का
सम्मान रहे ।
ईंट फेंकने वालों को
देने फौलादी उत्तर हो ।
ऐसा नव--संवत्सर हो
ऐसा नव-संवत्सर हो ।
(संवत्सर 2060 गुडीपडवा के उपलक्ष्य में रचित )
आपकी लिखी रचना मंगलवार 01 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
यह सुन्दर कामना सुन कर ही चित्त प्रफुल्ल हो गया - ऐसा ही हो,ऐसा ही हो ,ऐसा ही हो !!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST - माँ, ( 200 वीं पोस्ट, )
अँग्रेजी की आदत क्यूँ हो ?
जवाब देंहटाएंइण्डिया माने भारत क्यूँ हो ?
ह्रदय न समझे मतलब जिसका
ऐसी जटिल इबारत क्यूँ हो ? ...
सच कहा है ... पर आज इसे मानने और जीवन में उतारने वाले कितने हैं ... शायद यही कारण है कि बहुत से लोगों को नव-संवत का पता भी नहीं चल पाता ...
दिल्ली के एक प्रोफेसर ने ये पंक्तियाँ सुनकर कहा कि ऐसा मत कहिये अँग्रेजी की आज बहुत जरूरत है उसके बिना विकास संभव नही । मैंने विनम्रता से कहा कि सच तो यह है कि विकास वाली बात भी पूरी तरह सही नही है । पर सही है भी तो यही कि आज अँग्रेजी हमारी जरूरत है । अनिवार्य आवश्यकता है साहित्य की दृष्टि से भी अँग्रेजी का ज्ञान बहुत उपयोगी है । मैंने केवल आदत पर सवाल उठाया है । और आदत से कितना क्या प्रभावित होता है उसके सुदूर कितने परिणाम सामने आएंगे यह एक गहन चिन्तन का विषय है ।
हटाएंअपनी क्षमताओं को समझें
जवाब देंहटाएंभूलों को भी जानें ।
जहाँ कही हो अनाचार
विद्रोह वहाँ तो खुल कर हो
ऐसा नव-संवत्सर हो ।
बहुत सुंदर रचना.
ऐसे ही जागें,विचार भी
जवाब देंहटाएंऐसे ही महकें व्यवहार भी
आँखों में एक अम्बर हो
पुलक पखेरू अन्तर हो ।
ऐसा नव संवत्सर हो
बहुत सुन्दर कामना आदरणीया
बढ़िया सुंदर रचना व प्रस्तुति , आदरणीय धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंनवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ त्याग में आनंद ~ ) - { Inspiring stories part - 4 }
दीदी! वर्ष 2060 में रचित कविता 2071 में आप अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करती हैं और आपकी अपेक्षाएँ इस नये वर्ष से वही हैं जो आज से लगभग ग्यारह वर्ष पूर्व थीं. अगर ये सारी आशाएँ पूर्ण हो गईं होतीं, तो शायद हम इस रचना को पढने से वंचित रह जाते. लेकिन भला हो "भारत भाग्य विधाताओं' का कि उन्होंने आपकी रचना को कालजयी बना दिया है!
जवाब देंहटाएंचलिये उनकी कृपा ना भी हो तो मेरे लिये अपनी बड़ी दीदी की हर रचना कालजयी ही है!! बहुत सुन्दर!!
सलिल भैया , तब भी आप वंचित न होते क्योंकि रचना पोस्ट करते समय मैं इतना कहाँ सोचती हूँ । बस नववर्ष के अवसर पर ही लिखी गयी यह कविता नववर्ष के दिन यहाँ देनी थी सो दे दी । यह तो आप हैं कि रचना को हर कोण से देखते हैं । और राय देते हैं । यही कारण है कि मुझे आपकी टिप्पणी का बेसब्री से इन्तज़ार रहता है । प्रशंसा के प्रलेभन वश नही यह जानने कि जो मैंने सोचते हुए लिखा क्या पाठक को वही महसूस हुआ । बेशक आप कुछ और आगे जाकर विस्तार से देखते हैं । मेरे लिये यह बहुत खास बात है ।
हटाएंकाश ईंट फेंकने वालों को फौलादी उत्तर शीघ्र दिए जाएं। संवत्सर रूपक कवितांक विचारणीय है।
जवाब देंहटाएंह्रदय न समझे मतलब जिसका
जवाब देंहटाएंऐसी जटिल इबारत क्यूँ हो ?
सरल भाव हों , सरल छन्द हों
अपनी लय अपना स्वर हो
ऐसा नव--संवत्सर हो ।
कमाल की कालजयी रचना , आपके शब्दों का जवाब नहीं , आभार आपका !!