वक्त को काटना--
उस तरह नही जिस तरह
किसान काटता है पकी फसल
या दर्जी काटता है कपडा
बल्कि ,जिस तरह काटता है चूहा
कागज या लकडी को--
यकीनन ,जीना नही
बस जीने का निर्वाह करना है
व्यर्थ सा ।
जाने क्यों
अपने लिये ,मुझे लगता है
कुछ ऐसा ही ।
व्यर्थ सा ।
जाने क्यों
अपने लिये ,मुझे लगता है
कुछ ऐसा ही ।
मिलती हूँ जिन्दगी से ,
उस तरह नही ,
जिस तरह मिलती है
ससुराल से आई बेटी ,
अपनी माँ से
बहुत दिनों बाद ।
बल्कि ,जिस तरह
अपरिचित चौराहे की भीड से
निकल भागने के लिये
रास्ता पूछता है कोई
किसी दुकानदार से ।
मैं जल की गहराई पर
लिखना चाहती हूँ
एक गहरी कविता
लिखना चाहती हूँ
एक गहरी कविता
नदी में उतरे बिना ही
डरती हूँ डूबने से ।
देखती हूँ लहरों को
उजाडते हुए अपना ही घर
गैरों की तरह
उजाडते हुए अपना ही घर
गैरों की तरह
दूर पुल से गुजरते हुए
।
यों अपने आप से
बचकर निकलना तो
बचकर निकलना तो
जीना है झूठ के साथ
सिर्फ हवाओं में ।
सिर्फ हवाओं में ।
आज तो दार्शनिक हो गईं आप! साक्षी भाव की तरह स्वयम को देखना... मैं भी सोचता हूँ बीतते समय के साथ कि मैंने जीवन जिया है या घुन की तरह वक़्त काटा है... गुलज़ार साहब की तरह उस मोड़ पे बैठा हूँ और हर आते जाते मुसाफिर से पूछ रहा हूँ ज़िन्दगी का पता... कितना कुछ रह गया अनकहा. एक और मौका मिलता तो कितना कुछ बदल पाते हम.. क्या सचमुच बदल पाते??
जवाब देंहटाएंआज आपकी कविता ने मुझे ख़ुद से मिला दिया. विश्वास कीजिये, अभी-अभी मित्र चैतन्य से फ़ोन पर इसी तरह के ख्याल साझा किया और आपकी यह कविता मिली!! आभार आपका!
यकीनन बदल पाते भाई ।
हटाएंहालाँकि कुछ तो अब भी कर ही सकते हैं क्यों कि कुछ तो अभी शेष है । जो छूट गया ( बहुत कुछ) सो गया । उसका विचार करना बेकार ही है । आजकल यही कुछ सोच में है ।
प्रतीकों के माध्यम से बेहद प्रभावी अंदाज़ में लिखी लाजवाब रचना ...
जवाब देंहटाएंसलिल जी से पूरा इत्तेफाक रखता हुआ ... बधाई इस उम्दा काव्य के लिए ...
प्रतीकों का बहुत सुंदर इस्तेमाल.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : मिथकों में प्रकृति और पृथ्वी
गहरा लिखने के लिये तो गहरे उतरना ही पड़ता है।
जवाब देंहटाएंजीवन को उसकी गहराइयों में जीना ही संतोष देता है...
जवाब देंहटाएंवाह... उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@भजन-जय जय जय हे दुर्गे देवी
हर किसी के लिए सच्चाई है यह.. बिंब बहुत सुंदर हैं, मन में उतर जाने वाले। शुक्रिया..
जवाब देंहटाएंगहरे उतर कर मोती निकाल रही हैं आप तो ,शब्दों में दमक है उसी आभा की !
जवाब देंहटाएंवाह...! बेहद ख़ूबसूरत...!!
जवाब देंहटाएंआपकी कविता या पोस्ट को पढने के बाद उसपर सलिल चचा के कमेन्ट को पढ़ने का अपना अलग ही एक आनंद है..!