मैं विश्वास करना चाहती हूँ
कि तुम्हारी मुस्कान के पीछे
नही है कोई दुरभि-सन्धि ।
कि तुम बातोंबात
बैठे साथ-साथ
निर्वासित कर मुझे रातोंरात
नही मनाओगे विजय का उत्सव
मुझे सन्देह या अनुमान में
रहने की आदत नही है
असहज होजाती हूँ झूठ से ।
इसलिये..
मैं पूरी तरह आश्वस्त होना चाहती हूँ
थामकर सच का हाथ
निभाना चाहती हूँ रिश्तों को
सहजता और निश्चिन्तता के साथ ।
मुझे आश्वस्त करो ,
कि तुमने जो मुझमें विश्वास दिखाया
अपनत्त्व जताया
एक पूरा सच है ।
अधूरा सच गले नही उतरता
रूखी-सूखी रोटी की तरह ।
मैं जीना चाहती हूँ ,
विश्वास में---पूरे सच के साथ ।
विश्वास कि ,
'मैं तुम पर विश्वास कर सकती हूँ
आँखें बन्द करके भी ।
या...विश्वास कि ,
मुझे तुम पर विश्वास नही करना चाहिये ,
खुली आँखों से भी..।
कि तुम्हारी मुस्कान के पीछे
नही है कोई दुरभि-सन्धि ।
कि तुम बातोंबात
बैठे साथ-साथ
निर्वासित कर मुझे रातोंरात
नही मनाओगे विजय का उत्सव
मुझे सन्देह या अनुमान में
रहने की आदत नही है
असहज होजाती हूँ झूठ से ।
इसलिये..
मैं पूरी तरह आश्वस्त होना चाहती हूँ
थामकर सच का हाथ
निभाना चाहती हूँ रिश्तों को
सहजता और निश्चिन्तता के साथ ।
मुझे आश्वस्त करो ,
कि तुमने जो मुझमें विश्वास दिखाया
अपनत्त्व जताया
एक पूरा सच है ।
अधूरा सच गले नही उतरता
रूखी-सूखी रोटी की तरह ।
मैं जीना चाहती हूँ ,
विश्वास में---पूरे सच के साथ ।
विश्वास कि ,
'मैं तुम पर विश्वास कर सकती हूँ
आँखें बन्द करके भी ।
या...विश्वास कि ,
मुझे तुम पर विश्वास नही करना चाहिये ,
खुली आँखों से भी..।
सीमों द बुवाँ ने कहा है कि नारी चुँकि अपने पुरुष को सम्पूर्णता से प्यार करती है, इसलिये उसकी नज़र, पुरुष की हर उस एक नज़र में समाई रहती है जो वह किसी दूसरी की तरफ उठाता है. कहीं न कहीं वही एक सन्देह, एक प्रश्न, एक आशंका, एक भय, एक उपेक्षा का भाव इस कविता की पंक्तियों से आरम्भ से अंत तक पसरा हुआ है.
जवाब देंहटाएंएक नट की तरह विश्वास और अविश्वास के बीच एक रस्सी पर चलती हुई, हृदय और मस्तिष्क से जूझती हुई. जानती है कि अगर संतुलन साधा तो प्रेम का स्वर्ग उसकी प्रतीक्षा कर रहा होगा और कहीं सन्देह सत्य सिद्ध हुआ तो...! उपेक्षिता???
पता नहीं कैसे विश्वास दिलाएगा वो जो उसे निर्वासिर कर मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाया या कैसे बता पाएगा अपने हिस्से का सच जो उसे परित्यक्त कर बुद्ध होकर लौटा.
/
दीदी! पता नहीं सीधी और सरल दिखने वाली कविता के जो अर्थ मैंने लगाए वो कहाँ तक इस कविता की भावनाओं के समीप हैं. किंतु जहाँ तक इस कविता का प्रश्न है, मन को छूती है, अपनी सहजता, सरलता और भोलेपन के बावजूद अपनी स्पष्टता से!
भाई, आपकी टिप्पणियाँ रचना से कहीं ज्यादा व्यापक और अर्थपूर्ण होतीं हैं ।
जवाब देंहटाएंहाँ आपकी टिप्पणी का जो सार्वभौमिक सत्य है उसके अतिरिक्त यह रचना उन सभी लोगों के सन्दर्भ में भी है ( स्त्री सहित ) जो हमारे परिवेश का अनिवार्य हिस्सा हैं । हम जिनसे विलग नही होसकते लेकिन उनके व्यवहार से कहीं न कहीं आहत होते हैं । मैंने कल फेसबुक पर ऐसा ही कुछ लिखा था । खैर...मैं इसे बार बार कहना चाहूँगी कि आप जैसे बहुत ध्यान से पढने वाले अपनों के सहारे ही यह ब्लाग आबाद है ।
जवाब देंहटाएंइतना पूर्ण विश्वास जहाँ मिल जाए वहाँ मन पूरा समाधान पा लेता है ,कुछ पूछना-बताना शेष नहीं रहता .पर सिर्फ़ अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए ,तर्कों का सहारा लेकर ,दूसरे को नकार देना ही, दुनिया की रीति है.नारी-पुरुष के परिप्रेक्ष्य में नारी केवल एक साधन है - धर्म, अर्थ और काम की साधना तक उसका उपयोग है ,आगे मोक्षादि उच्चतर सोपानो के लिए बाधा समझ कर उसका परित्याग पुरुष अपने लिए विहित मान लेता है. .
जवाब देंहटाएंसही कह रही हैं माँ! मैंने पढा है कि जैन मुनियों में स्त्री संत का कोई स्थान नहीं. किंतु मल्ली बाई एक महान संत हुईं जैन परम्परा में, जिसे उन्होंने तीर्थंकर के रूप में स्वीकार तो किया, किंतु मल्ली नाथ के रूप में, मल्ली बाई के रूप में नहीं.
हटाएंऔर अभी वर्त्तमान में देश में जो प्रकरण चल रहा है वह भी कम रोचक नहीं. पत्नी का त्याग कर देश सेवा करना!!
नारी के लिये तो मस्तिष्क से इतर हृदय में जन्म लेता यही प्रश्न बर्छी की तरह चुभता रह जाता है:
मैं तुम पर विश्वास कर सकती हूँ
आँखें बन्द करके भी ।
या...
मुझे तुम पर विश्वास नही करना चाहिये ,
खुली आँखों से भी..।
कविता के माध्यम से कही गई विश्वासमय वातावरण बनाने की बात बहुत ऊंची एवं महान है। आपकी कविताई महत्वाकांक्षा यदि पूर्ण हो तो कितना सुखद हो सब कुछ! कितना अच्छा हो यदि समस्त मानवों के मध्य परस्पर विश्वास का वातावरण तैयार हो सके तो! साथ ही प्रेमियों का परस्पर विश्वास भी तभी सम्पूर्ण रूप से स्थापित हो सकता है।
जवाब देंहटाएंबहुत गहराई से निकली पंक्तियाँ...सत्य का पथिक कभी भी अकेला नहीं रहता, सत्य सदा मशाल बनकर उसके आगे रहता है...
जवाब देंहटाएंनमस्कार गिरिजा जी..आज पहली बार आप के ब्लांग में आने का सुअवसर मिला.आप की सुन्दर सशक्त रचना पढ़कर आनंद आगया..आभार..
जवाब देंहटाएं