तंगहाली में ,
ख़्वाहिशों की कमी हूँ 
मैं आम आदमी हूँ । 
मैं भीड का एक हिस्सा हूँ
खून से लिखा किस्सा हूँ ।
फुटपाथ पर चलता हूँ 
पर कारों तले दलता हूँ ।
दुर्घटना होती है तब 
आँकडों में गिना जाता हूँ 
मैं केवल   
आदमी के नाम जाना जाता हूँ.
व्यक्तिवाचक नहीं सिर्फ जातिवाचक
हूँ
जरूरतों के नाम पर मैं
सिर्फ याचक हूँ ।
अपरिचित हूँ इसलिये 
कतराता हूँ उजाले से 
दूसरों के मुँह के निवाले से
।
हिसाब में कमजोर हूँ 
संतप्त मन का शोर हूँ 
नक्कारखाने में जैसे
तूती की आवाज
मेरे हिस्से में 
आता नही कभी ताज ।
आगे रहता हूँ नारे लगाने 
पर कतार में 
सदा पीछे जगह पाता हूँ
अपराधी नही हूँ पर
सजा पाता हूँ । 
निस्संगता के साथ हमेशा
नींव में खपा दिया जाता हूँ 
उठती हैँ ऊँची इमारतें मेरी ही पीठ पर 
अधिकार नही है मेरा किसी जीत पर ।
मैं शामिल नही हूँ घोटालों में 
रिश्वत, दलाली या व्यभिचार के परनालों में 
फिर भी परोसा जाता है मेरी थाली में 
साम्प्रदायिक जहर ।
कुदरत के कहर
सहने मजबूर हूँ ।
षडयन्त्रों से दूर हूँ ।
पर पीसा जाता हूँ मैं ही 
अवरोधों की चक्की में । 
फरेब मक्कार ,दुर्घटना बलात्कार
सबका शिकार ,
सिर्फ मैं । 
किताबें कहतीं हैं 
कि सरकार मेरी है 
किताबें झूठ कहतीं हैं 
हरे भरे पेड को ठूँठ कहतीं हैं ।
आखिरी बस भी छोडकर जाती है 
सिर्फ धूल का गुबार 
मेरे लिये है सिर्फ इन्तज़ार ।
गर्द से भरा है सपनों का गाँव 
धीरज के पाँव 
उखड जाते हैं अक्सर  
मयस्सर नही
दो गज जमीन भी  
कही जमने के लिये .
फिर भी कहीं बची हुई नमी हूँ 
मैं आम आदमी हूँ ।
( शीघ्र प्रकाश्य 'अजनबी शहर में' काव्य-संग्रह से )