22 दिसम्बर वर्ष का सबसे छोटा दिन माना जाता है । यानी दस घंटे का दिन और चौदह घंटे की रात ।यों खान-पान पहनावा,स्वाद व स्वास्थ्य ,सभी तरह से अच्छी होने के बावजूद मुझे शीतऋतु जरा कम ही अच्छी लगती है । इसके पीछे कई कारणों में से एक यह भी है कि इस ऋतु में दिनों का वही हाल हुआ लगता है जो हाल सस्ते डिटर्जेन्ट की धुलाई से शिफॅान की साडी का हो जाता है । दिन की चादर को खींच कर रात आराम से पाँव पसार कर सोती है । सूरज जैसे अपनी जेब से बडी कंजूसी से एक-एक पल गिन-गिन कर देता है । यहाँ छोटे दिनों पर दो कविताएं हैं । दोनों ही कविताएं दस-बारह वर्ष पहले लिखी गईं । दूसरी कविता बाल--पाठकों के लिये लिखी गई है ।
(1)
-------------------------
मँहगाई सी रातें
सीमित खातों जैसे दिन ।
हुए कुपोषण से ,
ये जर्जर गातों जैसे दिन ।
पहले चिट्ठी आती थीं
पढते थे हफ्तों तक
हुईं फोन पर अब तो
सीमित बातों जैसे दिन ।
वो भी दिन थे ,
जब हम मिल घंटों बतियाते थे
अब चलते--चलते होतीं
मुलाकातों जैसे दिन ।
अफसर बेटे के सपनों में
भूली भटकी सी ,क्षणिक जगी
बूढी माँ की
कुछ यादों जैसे दिन ।
भाभी के चौके में
जाने गए नही कबसे
ड्राइंगरूम तक सिमटे
रिश्ते--नातों जैसे दिन ।
बातों--बातों में ही
हाय गुजर जाते हैं क्यों
नई-नवेली दुल्हन की
मधु-रातों जैसे दिन ।
(2)
(बाल कविता)
----------------
दादाजी की पगडी जैसी लम्बी रातें हैं
चुन्नू जी के चुनमुन चड्डी ,झबलों जैसे दिन
लम्बी और उबाऊ,
जटिल सवालों सी रातें
उछल-कूद और मौज-मजे की
छुट्टी जैसे दिन
जाने कब अखबार धूप का
सरकाते आँगन
जाने कब ओझल होजाते
हॅाकर जैसे दिन
जल्दी-जल्दी आउट होती
सुस्त टीम जैसे
या मुँह में रखते ही घुलती
आइसक्रीम से दिन
ढालानों से नीचे पाँव उतरते हैं जैसे
छोटे स्टेशन पर ट्रेन गुजरते जैसे दिन।
कहीं ठहर कर रहना
इनको रास नहीं आता
हाथ न आयें उड-उड जायें
तितली जैसे दिन ।
पूरब की डाली से
जैसे-तैसे उतरें भी
सन्ध्या की आहट से उडते
चिडिया जैसे दिन ।
(1)
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मँहगाई सी रातें
सीमित खातों जैसे दिन ।
हुए कुपोषण से ,
ये जर्जर गातों जैसे दिन ।
पहले चिट्ठी आती थीं
पढते थे हफ्तों तक
हुईं फोन पर अब तो
सीमित बातों जैसे दिन ।
वो भी दिन थे ,
जब हम मिल घंटों बतियाते थे
अब चलते--चलते होतीं
मुलाकातों जैसे दिन ।
अफसर बेटे के सपनों में
भूली भटकी सी ,क्षणिक जगी
बूढी माँ की
कुछ यादों जैसे दिन ।
भाभी के चौके में
जाने गए नही कबसे
ड्राइंगरूम तक सिमटे
रिश्ते--नातों जैसे दिन ।
बातों--बातों में ही
हाय गुजर जाते हैं क्यों
नई-नवेली दुल्हन की
मधु-रातों जैसे दिन ।
(2)
(बाल कविता)
----------------
दादाजी की पगडी जैसी लम्बी रातें हैं
चुन्नू जी के चुनमुन चड्डी ,झबलों जैसे दिन
लम्बी और उबाऊ,
जटिल सवालों सी रातें
उछल-कूद और मौज-मजे की
छुट्टी जैसे दिन
जाने कब अखबार धूप का
सरकाते आँगन
जाने कब ओझल होजाते
हॅाकर जैसे दिन
जल्दी-जल्दी आउट होती
सुस्त टीम जैसे
या मुँह में रखते ही घुलती
आइसक्रीम से दिन
ढालानों से नीचे पाँव उतरते हैं जैसे
छोटे स्टेशन पर ट्रेन गुजरते जैसे दिन।
कहीं ठहर कर रहना
इनको रास नहीं आता
हाथ न आयें उड-उड जायें
तितली जैसे दिन ।
पूरब की डाली से
जैसे-तैसे उतरें भी
सन्ध्या की आहट से उडते
चिडिया जैसे दिन ।
भाभी के चौके में
जवाब देंहटाएंजाने गए नही कबसे
ड्राइंगरूम तक सिमटे
रिश्ते--नातों जैसे दिन ..
So realistic !
.
इसके पीछे कई कारणों में से एक यह भी है कि इस ऋतु में दिनों का वही हाल हुआ लगता है जो हाल सस्ते डिटर्जेन्ट की धुलाई से शिफॅान की साडी का हो जाता है । दिन की चादर को खींच कर रात आराम से पाँव पसार कर सोती है । सूरज जैसे अपनी जेब से बडी कंजूसी से एक-एक पल गिन-गिन कर देता है ।
जवाब देंहटाएंक्या बात है...क्या बात...मजा आ गया :)
और कविता तो दोनों शानदार हैं..बेहतरीन
गिरिजा जी,
जवाब देंहटाएंकविता तो आपने सर्दी के छोटे दिनोंकी अभिव्यक्ति के लिए लिखी है मगर आपकी पहली कविता विषय की गरिमा के साथ साथ बदलते परिवेश में संकुचित होतीं रिश्तों की अकुलाहट को प्रतिविम्बित करती हुई मन को उद्वेलित करती है !
पहले चिट्ठी आती थीं
पढते थे हफ्तों तक
हुईं फोन पर अब तो
सीमित बातों जैसे दिन ।
दूसरी कविता में बाल सुलभ भावनाओं द्वारा सर्दी के छोटे दिनों के चित्र बड़े ही प्रभावशाली ढंग से उकेरने मैं आप सफल हुईं हैं !
अच्छी अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
भाभी के चौके में
जवाब देंहटाएंजाने गए नही कबसे
ड्राइंगरूम तक सिमटे
रिश्ते--नातों जैसे दिन
रिश्ते नाते तो अब निभाए जा रहे है आत्मीयता ना जाने कहाँ खो गयी , अच्छी रचना
गिरिजा जी!
जवाब देंहटाएंपहली कविता तो सचमुच सारे छोटे छोटे बिम्बो को समेटकर फैली हुयी है हर लाइन में... और दूसरी सो स्वीट..
बहुत खूब. एक उम्दा रचनाकार की यही पहचान है कि जितनी सहजता से परिपक्व पाठक के लिए लिख जाए, उतना ही सहज बाल साहित्य में भी.. जो यहाँ देखने को मिल रहा है!!
क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
जवाब देंहटाएंआशीषमय उजास से
आलोकित हो जीवन की हर दिशा
क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
जीवन का हर पथ.
आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं
सादर
डोरोथी
kya kahane girija ji,dono rachnaon me umra ke antar anusar sundar shabd sanyojan. badhai.
जवाब देंहटाएंमाफ़ कीजियेगा लेखिका जी,
जवाब देंहटाएंपहले तो उम्र के इतने बड़े फर्क के कारण मुझे आप के लिए उपयुक्त संबोधन नहीं सूझ रहा है !!!!!!
आप कि पहली कविता इतनी अच्छी लगी कि ऐसा लगा मानो गागर में सागर भरने के बावजूत भी में
कविता कि तार तम्यता में इतना खो गया कि लगा कि कविता और होनी चाहिए !!!!
पर अनभूतियों का इतना सार्थक प्रयोग आज तक नहीं देखा आपको हार्दिक बधाई !!!!
दीपेन्द्र कुलश्रेष्ठ
गिरिजा जी ,आज आपका ब्लॉग देखा .लाजवाब .कितना अच्छा लिखतीं हैं आप.मैं आपके लेखन का प्रशंसक तो पहले भी था परन्तु ब्लॉग पढ़ने के बाद मेरी विचारधारा की पुष्टि हुई है.आप जिस शांति से श्रजन कर रहीं है वह हम जैसे लोगों के लिए प्रेरणादाई है .मेरी कोटिशः बधाइयां
जवाब देंहटाएंआदरणीय राजेश जी , ब्लॉग पर आपका आना ही मेरी एक उपलब्धि है .धन्यवाद
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