दस्तक फिर देने लगी है शिरीष की गन्ध।
जीर्ण पत्र से झर रहे अन्तर के अनुबन्ध
पवन वसन्ती डाकिया बाँट रहा अविराम
लिखे सुरभि के पत्र ये किसने किसके नाम।
व्यापक पीर पलाश सी तिनका-तिनका गात
गम कचनारी हो रहे धीरज पतझर-पात।
ठूँठ हुए उद्गार सब मुखर हुए अहसास ।
आँगन-आँगन धूप की चमक उठी है प्यास।
दसों दिशाओं फिर रहा कुछ कहता मधुमास
बौरा गया रसाल लो जोगी हुआ पलाश।
जला ह्रदय की होलिका ,तन को कर प्रह्लाद ।
गुलमोहर के रंग सी ,आए कोई याद ।
पोर-पोर पकने लगी है गेहूँ सी पीर ।
महका नीबू नेह सा महुआ होगया 'मीर'।
बाग-बाग ,वन-वन बना ब्यूटी-पार्लर आज
सबकी सज्जा कर रही स्रष्टि हुई 'शहनाज'।
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रंगों के रंग में झूम रही है प्रकृति निराली..
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना....
जवाब देंहटाएंबसन्ती मौसम के लाजबाब मनमोहक दोहे,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: रंग,
सुंदर वसंत की तरह
जवाब देंहटाएंआज की ब्लॉग बुलेटिन ज्ञान + पोस्ट लिंक्स = आज का ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंkhoobshurat basanti rang me rangi manmohak prastuti
जवाब देंहटाएंवाह,आपने तो शहनाज़ का प्रक़ति से रिश्ता जोड़ दिया!
जवाब देंहटाएंsunder rangon se bhari rachna....
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
क्या बात है, शहनाज जी तो बहुत खुश हो जायेंगी ।
जवाब देंहटाएंपर बसंत के रस, रंग, गंध, रूप खूब जम रहे हैं ।
आ हा हा वाह बहुत सुंदर बसंती बयार और फगुनी रंग क्या सुंदर रीति से बिखेरा है गिरिजा जी. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंलाजवाब दोहे... बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सार्धक लाजबाब अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ ! सादर
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
कृपया मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे
वाह .....आनंद आ गया .....आखिरी पंक्तियाँ पढ़कर लगा जैसे आप लिखते-लिखते शरारत से मुस्कुरा रही हैं
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग आपके स्वागत के इंतज़ार में
स्याही के बूटे