उम्रभर शूल पथ के हटाते रहे ।
खाइयाँ पूरते और पटाते रहे ।
जीत लेंगे भरोसा कभी ना कभी
इस भरोसे में खुद को मिटाते रहे ।.
था ये मालूम ,तूफां उजाड़ेगा घर ,
फिर भी जीने का सामां जुटाते रहे ।
आज देंगे वही कल मिलेगा हमें ,
बस यही मान सब कुछ लुटाते रहे ।
उनको लहरों का अन्दाज़ होगा नही ।
नाम तट पर तभी तो लिखाते रहे ।
एक उत्तर भी आता तो कैसे भला ,
जोड़ते हम रहे , वो घटाते रहे ।
चाँद सा जगमगाने की चाहत तो थी,
पर अँधेरों से ही मात खाते रहे ।
(सन् 2002में रचित )
खाइयाँ पूरते और पटाते रहे ।
जीत लेंगे भरोसा कभी ना कभी
इस भरोसे में खुद को मिटाते रहे ।.
था ये मालूम ,तूफां उजाड़ेगा घर ,
फिर भी जीने का सामां जुटाते रहे ।
आज देंगे वही कल मिलेगा हमें ,
बस यही मान सब कुछ लुटाते रहे ।
उनको लहरों का अन्दाज़ होगा नही ।
नाम तट पर तभी तो लिखाते रहे ।
एक उत्तर भी आता तो कैसे भला ,
जोड़ते हम रहे , वो घटाते रहे ।
चाँद सा जगमगाने की चाहत तो थी,
पर अँधेरों से ही मात खाते रहे ।
(सन् 2002में रचित )
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंएक उत्तर भी आता तो कैसे भला ,
जवाब देंहटाएंजोड़ते हम रहे , वो घटाते रहे ।
जीवन ऐसा ही अप्रत्याशित है..हर मोड़ पर कुछ ऐसा मिल जाता है जिसकी चाहत नहीं थी..बहुत भावपूर्ण और प्रभावशाली रचना...
दीदी,
जवाब देंहटाएंदेख नहीं पाया था आपकी ये ग़ज़ल... और आज जब देखा तो बस "शायरी आ गई"..! माफ़ी पहले से ही माँग लेता हूँ कान पकड़कर, अपनी इस पैरोडी के लिये!! :)
ज़िन्दगी के तजुर्बात दिल में लिये,
सीखते भी रहे, हम सिखाते रहे!
रास्ता जिसका देखा किये उम्र भर
वो न आया मगर लोग आते रहे!
हमने म हफ़ूज़ रखा था दिल में जिन्हें
वो ही सीने में नश्तर चुभाते रहे.
फूल रखकर गया कब्र पर वो मेरी
बोझ ये भी तेरा हम उठाते रहे!
वाह , आपकी शायरी तो जैसे जेब में रखे सिक्के हैं , बस निकालने का बहाना चाहिये । यह बहाना ( मेरी रचना ) अब ज्यादा खूबसूरत लग रहा है ।
जवाब देंहटाएंअनुपम प्रस्तुति....आपको और समस्त ब्लॉगर मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं