प्यारी और निराली मेरी माँ .
निश्छल भोली-भाली मेरी माँ .
उम्मीदों की लहर समेटे ,
बहती आई है .
जहां-तहां धारा का शोषण
सहती आई है .
फिर भी है हरियाली मेरी माँ
निश्छल भोलीभाली मेरी माँ .
सहनशीलता की सीमा
संदेह-रहित विश्वास .
कोई काम नहीं है तम का
मन में सिर्फ उजास.
लगे क्षितिज की लाली मेरी माँ .
निश्छल भोलीभाली मेरी माँ .
नहीं जानती झूठ कपट
माँ स्नेहिल निस्पृह .
थककर हारे पाँव ,
ठहर जाने की एक वजह .
भूखे मन को थाली मेरी माँ .
निश्छल भोलीभाली मेरी माँ .
तन को खाना कपड़ा
मीठे बोल मिलें बस मन को
सालों पार किये माँ ने ,
कुछ शेष नहीं चिंतन को.
रिश्तों की रखवाली मेरी माँ .
निश्छल भोलीभाली मेरी माँ .
पलकों पर रखलूँ .
जो अहसास जिए हैं उसने ,
मैं उनको चखलूँ .
रहे कभी ना खाली मेरी माँ .
निश्छल भोलीभाली मेरी माँ .
मां के बारे में कुछ भी कहना कम है। मां जी को प्रणाम एवं शुभकामनाएं। आपने अपनी भावनाओं के माध्यम से उन्हें कविता में पिरोया, जो उनके प्रति आपका प्रेम व सम्मान है। और जो बहुत कुछ है एक मां के लिए।
जवाब देंहटाएंमाँ को समर्पित यह कविता कितना कुछ समेटे हैं अपने भीतर...माँ होना कितना कुछ दे जाता है एक नारी के मन को समृद्ध कर जाता है..
जवाब देंहटाएंमाँ को समर्पित शब्द जैसे सुजाग हो कर माँ का दर्शन करा रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंमाँ जैसा शायद दुनिया में कोई होता भी नहीं ...
Maa bs maa hr ek ehsaas me maa.......
जवाब देंहटाएंAksharshah jivant abhivykti.....
भाव प्रवण कविता...कल कल बहती धारा सी अभिव्यक्ति! सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंप्रणाम मॉं को...सुंदर भावपूर्ण कविता 🙏💐
जवाब देंहटाएंमेरा सादर प्रणाम उन्हें...। ये पंक्तियाँ तो बस रूह से महसूस की जा सकतीं हैं ।
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