रविवार, 7 अगस्त 2022

और कितनी आजादी ?

 

अभी एक बाल पत्रिका के सम्पादकीय में एक प्रसंग है कि किसी स्कूल में आजादी के अमृतमहोत्सव में अध्यक्ष बच्चों को बताते हैं कि हमारे देश को आज़ाद हुए 75 वर्ष हो चुके हैं लेकिन आजादी अधूरी है . असली आजादी मिलनी अभी बाकी है . इस तरह के रटे रटाए भाषण मंचों पर अक्सर सुनने मिल जाते हैं .वे तो केवल रटा हुआ भाषण पढ़ते हैं ,लेकिन हमारे देश में कुछ बहुत ज्यादा पढ़े लिखे लोगों का भी यही मानना है कि हम पूरी तरह आजाद नहीं हैं . मैं चकित हूँ . और कितनी आजादी चाहिये ? 

देश में आप जहाँ चाहे आ जा सकते हैं , रह सकते हैं .जाति धर्म के आधार पर कोई भेद या दबाब नहीं . आप किसी भी अव्यवस्था या परेशानी के लिये शिकायत कर सकते हैं . आपको अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता मिली हुई है . सच कहूँ तो कुछ अधिक मिली है . कई बार तो अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता नौसिखिया के हाथ में पिस्तौल थमा देने जैसी सिद्ध होती है . 

लेकिन हमारे देश में तो आजादी इससे कहीँ बहुत आगे ले रखी है लोगों ने .संसद से लेकर सड़क तक और नेताओं से लेकर गली मोहल्लों के लोग तक किसी भी ज़रूरी/गैरज़रूरी मुद्दे ले सड़क घेर कर बैठ जाते हैं ,चाहे यातायात बाधित होता रहे . अपनी सुविधा के लिये सरेआम नियम तोड़ते हैं .ज़रा सी व्यक्तिगत असुविधा पर पूरे देश को ही कोसना शुरु कर देते हैं . कानून का गलत लाभ उठाते हैं . धर्म और जाति के नाम पर अफवाहें व विध्वंस फैलाते हैं . विरोधप्रदर्शन के लिये गाड़ियाँ व ट्रेन रोक ही नहीं लेते उन्हें जला भी देते हैं , देश विरोधी बातें ही नहीं करते ,खुले आम देश के टुकड़े होने का ऐलान भी करते हैं , दूसरे देश का झण्डा लेकर जिन्दाबाद के नारे लगा लेते हैं , धर्म विषयक आपत्तिजनक बातें करके , निराधार अफवाहें फैलाकर  समाज में अशान्ति फैलाते हैं . डाक्टर ,पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों तक को पीट लेते हैं , फेसबुक ट्विटर पर अपनी चाहे जैसी भड़ास निकालते रहते हैं . अपना काम छोड़कर महीनों तक आन्दोलन करने का समय और अधिकार है आपके पास , चर्चित होने के लिये मर्यादा विरुद्ध लिखने बोलने, यहाँ तक कि निर्लज्जता के साथ निर्वस्त्र प्रदर्शन की आजादी तक आपके पास है भला और कितनी आजादी चाहिये ? 

आजादी को अधूरी कहने वाले लोगों ने कभी बैठकर सोचा है कि जिसे वे अधूरी आजादी कहते हैं वह आजादी मंच पर रटे रटाए भाषण देकर कोरे कागज काले करके नहीं मिली थी . आजादी कोई पेड़ में पका फल नहीं थी कि टहनी हिलाई और टप्प से झोली में आ गिरी . उसे पाने के लिये लगभग दो सौ साल देश के लाखों लोगों का खून बहा था . हजारों ने हँसते हँसते प्राणों की बलि दी थी . असंख्य वीरों ने जीवन के सारे सुख त्याग दिये थे और काँटों की राह पर चल पड़े थे . और महीनों ,सालों तक आजादी की आग सीने में धधकाए झुलसते रहे थे . पर उन्हें परवाह थी केवल आजादी की क्योंकि वे अपने लिये नहीं , देश के लिये लड़े थे क्योंकि वे देशभक्त थे . खुद से ज्यादा देश के लिये सोचते थे .प्राणपण से लड़े थे ताकि देश को विदेशी शिकंजे से मुक्ति मिले . ऐसी आजादी को अधूरी आजादी कहना , क्रान्तिकारी वीरों का इससे अधिक अपमान और क्या होगा . वास्तव में अधूरे तो वे सपने हैं जो क्रान्तिकारियों ने आजाद देश के लिये देखे थे .   

वास्तव में आजादी की कीमत वह कभी नहीं समझ सकता जो आजादी के इतिहास को , देशभक्त वीरों की विकलता ,अंगरेजों के अत्याचारों के विरोध और देश के लिये उनकी चिन्ता को अनुभव करते हुए नहीं पढ़ता . आजादी का पर्व अव्यवस्थाओं को गाने का नहीं ,देश के वीरों ,जाँबाज़ों को याद करने का है, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का और उनके देखे सपनों को पूरा करने का संकल्प लेने का है . स्वतन्त्रता संग्राम का इतिहास पढ़ना सुनना, वीरों के शौर्य व शहादत को याद करना ,समाज और देश के प्रति अपने दायित्त्व समझना ..ये ही बातें हैं जो हमारे राष्ट्रीय पर्व हमें याद दिलाते हैं . और इसे याद रखने पर ही हम आजादी का महत्त्व न केवल समझ सकते हैं बल्कि उसे बनाए व बचाए भी रख सकते हैं . इसके लिये आज देश में और खासतौर पर राजनीति में देशभक्त नौजवानों की ज़रूरत है . कुछ लोग देशभक्ति शब्द का मज़ाक उड़ाते हैं उसे आडम्बर कहते हैं .पर देशभक्ति की वह उत्कट भावना ही थी जिसके कारण वीरों ने त्याग और बलिदान किया , हमें आजादी मिली . अपने देश के प्रति प्रेम और कर्त्तव्य-निष्ठा के कारण ही हमारे सेना के जवान दुर्गम पहाड़ों में साहस के साथ डँटे रहते हैं . सच्ची देशभक्ति ही हमें ईमानदारी से देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन करने प्रेरित करती है .

इसलिये आजादी के पर्व पर हम शहीदों को याद करते हुए , उनके द्वारा सौंपी आजादी को एक अनमोल उपहार समझें  कीमत समझते हुए उसे बचाए रखने का प्रण करते हुए पर्व मनाएं . वरना आजादी को अधूरी कहते कहते यह होगा कि आधी छोड़ पूरी को धावे , वह भी आधी हाथ से जावे .” जय हिन्द ,जय हिन्द की सेना .

31 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (०८-०८ -२०२२ ) को 'इतना सितम अच्छा नहीं अपने सरूर पे'( चर्चा अंक -४५१५) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बहुत सटीक विश्लेषण, आपने सभी बातों को स्पष्टता से रखा है, हमें आज़ादी की क़ीमत को कम नहीं आंकना चाहिए, यदि कोई स्वयं को ग़ुलाम महसूस करता है तो वह अपनी ही बनाई सीमाओं में क़ैद हो सकता है।

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  3. गिरिजा जी, प्रणाम, सही कहा आपने कि और कितनी आज़ादी चाहिए...बहुत खूब सही प्रश्‍न और उनके सटीक उत्‍तर...अति सुंदर

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  4. बहुत ही स्पष्ट शब्दों में आपने अपनी बात रखी है, लेकिन जिस बात को लेकर आपने यह आलेख लिखा है, वह बात शायद उस सन्दर्भ में न कही गयी हो, जिस सन्दर्भ में आपने उसे समझा है. उनके कहने का तात्पर्य यह हो सकता है कि स्वतन्त्रता के ७५ वर्षों के पश्चात भी हमें गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, नारी के प्रति समाज का रवैया (आज ही नोयडा में घटी एक घटना इसका ज्वलंत प्रमाण है), बेरोजगारी, मँहगाई जैसे दानवों से आज़ादी नहीं मिली है. सरकारें तो एक दूसरे पर दोषारोपण करती रहेंगी, किन्तु इससे यह सचाई तो नहीं बदल सकती कि आज भी एक विशाल जनसमूह फुटपाथ पर सोने को मजबूर है, दिल्ली में ऐसे कितने ही लोग नशे का सेवन करते दिखाई देते हैं जिन्हें दिन में देख लें तो डर जाएँगे, नशा इसलिए कि भूख न लगे. एक विशाल युवा वर्ग अफवाहों की फैक्ट्री में काम कर रहा है. तो हम इसे कैसे कह लें कि हमने पूर्ण स्वराज या सच्ची आज़ादी हासिल कर ली है.

    उन अध्यक्ष महोदय ने तो केवल इतना कहा कि असली आज़ादी मिलनी अभी बाक़ी है, एक पद्मश्री प्राप्त प्रतिष्ठित नायिका ने तो यहाँ तक कह डाला कि असली आज़ादी तो केवल ८ वर्ष पूर्व प्राप्त हुई है, उसके पहले के ६७ वर्ष तो भीख में मिली आज़ादी के थे. यह एक गुरुत्वपूर्ण घटना है, जिसका आपने बिलकुल ज़िक्र नहीं किया. मैं तो उनके कथन को उचित और अनुचित भी नहीं ठहरा रहा, देशभक्त नायिका हैं, वीरांगना हैं और इतिहास की नयी रचनाकार हैं तो ठीक ही कहा होगा.

    आपके आलेख के पहले अनुच्छेद को निकाल दिया जाए तो आपकी बात सोलह आने सच है. लेकिन मेरी व्यक्तिगत सोच यह है कि उन अध्यक्ष महोदय की मंशा वही रही होगी जो मेरी है और उनका उद्देश्य कतई हमारी बहुमूल्य स्वतन्त्रता और वीरों के कीमती बलिदान को छोटा दिखाना नहीं होगा.

    आज अपनी इस विस्तृत टिप्पणी के लिए करबद्ध क्षमा चाहता हूँ दीदी, मेरा उद्देश्य भी आपकी भावनाओं को आहत करने का कतई नहीं है.

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    1. जिस नायिका की टिप्पणी का आपने उल्लेख किया है दलगत पक्षपात का अतिरेक है , अभिव्यक्ति की आज़ादी का दुरुपयोग .
      आज ऐसे ही लोग सामने आ रहे हैं जो विवादित बयान देते हैं या बयानों को तोड़ मरोड़कर अफवाह फैलाते हैं . राष्ट्रप्रेम को पाखण्ड कहते हैं . राष्ट्रध्वज ,राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत के लिये कोई निष्ठाभाव नहीं है . परिहास है . क्योंकि वहीं बात है ..आजादी का अवमूल्यन ..

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  5. आपकी यह प्रतिक्रिया आहत करने वाली नहीं हैं बल्कि एक दूसरी दिशा की ओर डाली गई रोशनी है . शायद मैं अपनी बात को क्रमबद्ध और समुचित रूप से कह नहीं पाई हूँ , कहूँगी कुछ और विचार करके . पर मेरा यह विचार दृढ़ है कि स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर ही आजादी को अधूरी कहना , स्वातन्तत्र्य-वीरों का अपमान है . कम से कम एक दिन तो उन्हें कृतज्ञता के साथ याद करलें . यह तो मनन और अमल करने की बात है कि हाथों में बिना कुछ किये मिल गई आजादी का हम समुचित लाभ क्यों नहीं ले पाए हैं . कहीँ उसके पीछे मिली आजादी का अवमूल्यन तो नही .केवल आलोचनाओं और कमियाँ तलाशते रहने से असली आजादी नहीँ आएगी . कुछ पाने के लिये कुछ खोना पड़ता है .
    . आज हम इस तरह की धारणाओं से उनकी शहादत को व्यर्थ करते हैं असली आजादी आनी शेष है .. आज लोग घरों में , सडक और बाजार में बैठकर आलोचनाएं तो करते हैं पर सुधार के लिये कुछ नहीं करते . मेरे मोहल्ले में लोग घरों का कचरा सड़क पर डालते हैं कुछ कहो तो लड़ने तैयार ..यह गुलामी है या अराजकता का अतिरेक .

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  6. ऐसी आजादी को अधूरी आजादी कहना , क्रान्तिकारी वीरों का इससे अधिक अपमान और क्या होगा .आपके विचार से पूर्णत: सहमत हूँ । यदि और समस्याओं की बात करनी है तो उसको आजादी शब्द से नहीं जोड़ना चाहिए।पर भेड़चाल में कुछ भी कहते हैं लोग , इस पर सही आपत्ति दर्ज की आपने ।मैं समर्थन करती हूँ ।

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  7. आजादी कोई पेड़ में पका फल नहीं थी कि टहनी हिलाई और टप्प से झोली में आ गिरी . उसे पाने के लिये लगभग दो सौ साल देश के लाखों लोगों का खून बहा था . हजारों ने हँसते हँसते प्राणों की बलि दी थी . असंख्य वीरों ने जीवन के सारे सुख त्याग दिये थे और काँटों की राह पर चल पड़े थे . और महीनों ,सालों तक आजादी की आग सीने में धधकाए झुलसते रहे थे . पर उन्हें परवाह थी केवल आजादी की क्योंकि वे अपने लिये नहीं , देश के लिये लड़े थे . ऐसी आजादी को अधूरी आजादी कहना , क्रान्तिकारी वीरों का इससे अधिक अपमान और क्या होगा . .... सच में यह गहन विचार का विषय है ...

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  8. आज़ादी तो पूरी मिली थी लेकिन हमारे राजनीतिज्ञों ने उस स्तर पर देश को नहीं पहुँचाया जहाँ आज होना चाहिए था । गरीबों के लिए जो नेता करना चाहते हैं उनका मजाक बनाया जाता है । हर नागरिक अपना स्वार्थ साधना चाहता है । बस सारी ताकत दोषारोपण पर लगाने लगे हैं । लोग कांग्रेस के समय भी कहते थे अभव्यक्ति की आज़ादी नहीं और आज भी कहते हैं । अब वो चाहते क्या हैं नहीं पता ।
    तुष्टिकरण और आरक्षण दोनों ही देश को डुबोने के लिए काफी हैं । बाकी तो सब समझदार हैं ही ।।

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  9. आज़ादी तो पूरी मिली थी लेकिन देश के राजनीतिज्ञों ने आज़ादी को उस स्तर पर नहीं पहुँचाया जिससे हर नागरिक को ज़रूरी सुख सुविधाएं मिल सकें । असल में हम सब पहले अपना स्वार्थ देखते हैं । देश के लिए हमार क्या कर्तव्य हैं इसका कोई एहसास नहीं क्यों कि नेता गण केवल अपने बारे में सोचते हैं ।
    योजनाएं बनाती हैं और कुछ नहीं होता गरीबों के लिए । सब स्वार्थ के दल दल में धँसे हैं । बाकी तुष्टिकरण और आरक्षण ने खत्म कर रखा है ।
    बेबाक लिखा है आपने ।

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  10. आपकी लिखी   रचना   सोमवार    15  अगस्त   2022  को 
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है 
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप 

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  11. इसलिये आजादी के पर्व पर हम शहीदों को याद करते हुए , उनके द्वारा सौंपी आजादी को एक अनमोल उपहार समझें कीमत समझते हुए उसे बचाए रखने का प्रण करते हुए पर्व मनाएं…बहुत सार्थक पोस्ट🇮🇳🇮🇳🇮🇳

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  12. हुतात्माओ के बलिदान से मिली आजादी पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं होना चाहिए।
    दूसरी समस्याओं को आजादी से दूर ही रखें तो अच्छा है।
    कोई पक्षी को पिंजरे से आजादी मिल जाए पर वह बाहर निकल कर कैसे अपनी जीवन शुरू करें ये दोनों अलग तथ्य है।
    बहुत सुंदर चिंतन देता लेख।

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  13. आजादी को अधूरी कहने वाले लोगों ने कभी बैठकर सोचा है कि जिसे वे अधूरी आजादी कहते हैं वह आजादी मंच पर रटे रटाए भाषण देकर कोरे कागज काले करके नहीं मिली थी . आजादी कोई पेड़ में पका फल नहीं थी कि टहनी हिलाई और टप्प से झोली में आ गिरी . उसे पाने के लिये लगभग दो सौ साल देश के लाखों लोगों का खून बहा था . …बहुत सटीक लिख् आपने, बिल्कुल मेरे दिल की सी बात…👌👌

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  14. "आपको अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता मिली हुई है . सच कहूँ तो कुछ अधिक मिली है ."
    गिरीजा जी,जब बिना संघर्ष आवश्यकता से अधिक मिल जाएगा तो उसकी कद्र नहीं होती उसमें कमी निकाली जाती है।आज की स्थिति यही है।
    आप का लेख बिल्कुल सटीक है। अपने विचारों को साझा करने के लिए बहुत बहुत बधाई आपको, आजादी की अमृत महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏

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    1. मेरे विचार आपका मत पाकर और सशक्त हुए । धन्यवाद कामिनी जी

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  15. ...नेताओ के अधूरी आज़ादी वाले रटे रटाए भाषणों का सटीक विश्लेषण किया है आपने ।
    पूरे आलेख का सुंदर मंतव्य..स्वतंत्रता दिवस पर हमें अपने देश के प्रति प्रेम और कर्त्तव्य-निष्ठा के कारण ही हमारे सेना के जवान दुर्गम पहाड़ों में साहस के साथ डँटे रहते हैं . सच्ची देशभक्ति ही हमें ईमानदारी से देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन करने प्रेरित करती है ... पूरे आलेख का सुंदर मंतव्य.. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 🇮🇳🇮🇳💐💐
    ..

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  16. आजादी का पर्व अव्यवस्थाओं को गाने का नहीं ,देश के वीरों ,जाँबाज़ों को याद करने का है, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का और उनके देखे सपनों को पूरा करने का संकल्प लेने का है .
    बहुत सटीक चिंतनपरक लाजवाब लेख ।

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