मेरे पड़ौस में
एक लड़की ,
बड़ी हो रही है ।
बड़ी हो रही है वह,
वसन्त में अँखुआती टहनी की तरह ।
गुलमोहर और कचनार,
खिलतीं हैं उसकी आँखों में ।
बालों में महकते हैं ,शिरीष , मोगरा ,चम्पक ।
सतरंगी तितली सी नजरें ,
उडतीं फिरतीं है --यहां-वहाँ...
न जाने कहाँ ।
पीपल की कोंपलों से होंठ,
काँप उठते हैं
हल्के से झकोरे की छुअन से ही...।
मेरे पड़ौस में एक लड़की ,
बड़ी हो रही है ---
टी.वी. पर धारावाहिक और फिल्में देखते -देखते,
अब उसे मामूली और घटिया से लगते हैं ,
अपने कपड़े ।
छोटा और बेकार सा अपना घर ।
उसके सपने नीचे नहीं उतरते ,
गाड़ी और बँगला से ।
उसकी आँखें...
अपना खोया सिक्का तलाशते
बेचैन बच्चे जैसी,
अक्सर आतीं जातीं रहतीं हैं
गली के नुक्कड़ तक ।
मेरे पड़ौस में एक लड़की ,
बड़ी हो रही है ,
बिना कुछ सीखे -समझे ही ।
वह पारंगत तो होगई है ,
कपड़ों का रंग ,डिजाइन चुनने में ।
कई तरह की हेअर-स्टाइल बनाने में ।
और बिन्दी, चूडी ,नेल-पॅालिश या पर्स की मैचिंग करने में ।
लेकिन ,नही आता उसे तुरपन करना या बटन टाँकना ।
नही भाता उसे गेहूँ बीनना या बर्तन माँजना ।
कतराती है वह सब्जी काटने या आटा गूँथने से ।
ताव खाती है टोकने पर कि,
कपड़े तहाने की बजाय क्यों ,छतपर खड़ी ,
ताकती रहती है ,उड़ती हुई पतंगों को ।
बड़ी होरही है वह ,
यूँ ही हवा में उड़ते ।
आसपास के खिड़की-दरवाजे ,
चिपके रहते हैं मेरे पड़ौसी के घर से ।
माता-पिता से ज्यादा ,
उन्हें चिन्ता है ...
दिलचस्पी है कि ,
बड़ी होरही है अब ,
उनके पड़ौस में वह लडकी ।
ढेर सारे सपनों के साथ...।
जैसे निकला हो कोई बैंक से
बैग में ढेर सारा रुपया लेकर
अकेला ही ,
अजनबी शहर में ।
एक लड़की ,
बड़ी हो रही है ।
बड़ी हो रही है वह,
वसन्त में अँखुआती टहनी की तरह ।
गुलमोहर और कचनार,
खिलतीं हैं उसकी आँखों में ।
बालों में महकते हैं ,शिरीष , मोगरा ,चम्पक ।
सतरंगी तितली सी नजरें ,
उडतीं फिरतीं है --यहां-वहाँ...
न जाने कहाँ ।
पीपल की कोंपलों से होंठ,
काँप उठते हैं
हल्के से झकोरे की छुअन से ही...।
मेरे पड़ौस में एक लड़की ,
बड़ी हो रही है ---
टी.वी. पर धारावाहिक और फिल्में देखते -देखते,
अब उसे मामूली और घटिया से लगते हैं ,
अपने कपड़े ।
छोटा और बेकार सा अपना घर ।
उसके सपने नीचे नहीं उतरते ,
गाड़ी और बँगला से ।
उसकी आँखें...
अपना खोया सिक्का तलाशते
बेचैन बच्चे जैसी,
अक्सर आतीं जातीं रहतीं हैं
गली के नुक्कड़ तक ।
मेरे पड़ौस में एक लड़की ,
बड़ी हो रही है ,
बिना कुछ सीखे -समझे ही ।
वह पारंगत तो होगई है ,
कपड़ों का रंग ,डिजाइन चुनने में ।
कई तरह की हेअर-स्टाइल बनाने में ।
और बिन्दी, चूडी ,नेल-पॅालिश या पर्स की मैचिंग करने में ।
लेकिन ,नही आता उसे तुरपन करना या बटन टाँकना ।
नही भाता उसे गेहूँ बीनना या बर्तन माँजना ।
कतराती है वह सब्जी काटने या आटा गूँथने से ।
ताव खाती है टोकने पर कि,
कपड़े तहाने की बजाय क्यों ,छतपर खड़ी ,
ताकती रहती है ,उड़ती हुई पतंगों को ।
बड़ी होरही है वह ,
यूँ ही हवा में उड़ते ।
आसपास के खिड़की-दरवाजे ,
चिपके रहते हैं मेरे पड़ौसी के घर से ।
माता-पिता से ज्यादा ,
उन्हें चिन्ता है ...
दिलचस्पी है कि ,
बड़ी होरही है अब ,
उनके पड़ौस में वह लडकी ।
ढेर सारे सपनों के साथ...।
जैसे निकला हो कोई बैंक से
बैग में ढेर सारा रुपया लेकर
अकेला ही ,
अजनबी शहर में ।
बडी होरही है अब ,
जवाब देंहटाएंपडौसी की लडकी ।
ढेर सारे सपनों के साथ...।
जैसे निकला हो कोई बैंक से
बैग में ढेर सारा रुपया लेकर
अकेला ही ,
अजनबी शहर में ।
वाह कितना अनोखी उपमा फिर भी कितनी सही ।
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं
आज के सत्य को बताती अच्छी रचना..
जवाब देंहटाएंलडकियों के बहाने समाज के सत्य का बखूबी उकेरा है आपने।
जवाब देंहटाएं--------
पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंब्लॅाग पर आने और रचना को पढ कर, उसे सार्थक बनाने के लिये आप सबका शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंजबाब नहीं निसंदेह
जवाब देंहटाएंयह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है
धन्यवाद..साधुवाद..साधुवाद
satguru-satykikhoj.blogspot.com