रविवार, 4 जुलाई 2010

चाँदनी वाला मोहल्ला-----24 जून ग्वालियर
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हम जिस मोहल्ले में रहते हैं ,वह ग्वालियर की पुरानी और पिछडी बस्तियों में से एक है ।नाम है --कोटावाला मोहल्ला। कहते हैं कि सामने खण्डहर सी दिखने वाली हवेली कोटावाले राजा की थी ।मोहल्ले का यह नाम इसीलिये पडा ।इससे ज्यादा जानकारी रखने वाले लोग अब नहीं हैं ।न ही जानने की किसी को जरूरत व फुरसत है ।
-कुछ दिनों पहले मेरी एक परिचिता ने अपनी निजी जानकारियों के आधार पर इस मोहल्ले को - ,कोठावाला मोहल्ला -कहा । ।मेरे चौंकने पर उसने मुझे लगभग झिडकते हुए कहा --तुम तो न जाने किस दुनियाँ में रहती हो....।देखा नही अमुक लडकी के रंग-ढंग और तेवर कैसे बदल रहे हैं ।पाँच-पाँच सौ के सूट कहाँ से पहनरहीं है ,बालों की सेटिंग,मेकअप सेंडल..और क्या-क्या...।घर में नही दाने ,अम्मा चली भुनाने ।कहाँ से आ रहा है सब ।...अमुक की जनीं (पत्नी)को रात में कोई रोज कार से छोडने आता है ....।और..वो....धत् तुम्हें कुछ भी नही पता ।
मैं इन सब बातों पर गौर नही करती ।न ही विश्वास ।
मेरा भतीजा इसे--कुत्ता वाला मोहल्ला कहता है । जो कभी कभी सटीक लगता है ।जब यहाँ आदमियों से ज्यादा कुत्ते नजर आते हैं । काले ,भूरे,बादामी ,चितकबरे छोटे- बडे, सीधे-लडाकू --सभी तरह के बहुत सारे देशी कुत्ते (विदेशियों को ऐसी आजादी कहाँ )। दिन में खूब खिलवाड करते है।और रात में खूब मन भर रोते हैं ।भगाओ तो भाग जाते हैं पर कुछ देर के लिये, आपको यह तसल्ली देने ही कि आपकी आज्ञा का पालन होता तो है कम-से-कम ।
पर मेरे दिमाग में इस मोहल्ले का एक नया और प्यारा सा नाम उगा है ----चाँदनी वाला मोहल्ला ।
जी नही , यह चाँदनी चाँद से उतरी किरण नही है ।और ना ही कोई रूपसी युवती ।यह तो सामने शौचालय से लगी खोली में रहने वाली पारबती की डेढ-दो साल की बेटी है ,जो घर से ज्यादा गली में रहती है ।गाती, खेलती,गिरती,,रोती....।
पारबती को देख कर कोई भी कह सकता है कि भगवान जब देता है, सचमुच छप्पड फाड कर ही देता है ,समुचित रूप में खिडकी- दरवाजे से नही । पारबती के पास रहने ,खाने पहनने-ओढने की कोई समुचित व्यवस्था नही है।कमरा छोटा होने के कारण आधे से भी ज्यादा काम --कपडे ,बर्तन धोना ,नहाना ,आदि--बाहर ही होते हैं । जिन्दगी ने उसे भले ही दूसरे सुखों से वंचित रखा है ,पर मात्रत्व की निधि खुले हाथों लुटाई है ,हर दूसरे साल एक मासूम प्यारा बच्चा उसकी कोख में डाल कर। चाँदनी उसकी तीसरी या चौथी सन्तान है ।
सुबह होते ही चाँदनी अपनी कोठरी से बाहर आजाती है। दिखाने भर के लिये दूध डाली गई पतली काली कटोरी भर चाय के साथ बासी रोटी या माँ के बहुत लाड आने पर मँगाई गई पपडी खाकर घंटों तक चाँदनी गली में रमक-झमक सी घूमती रहती है ।कभी वह कुत्ते के गले में बाँहें डालना चाहती है तो कभी बैठी हुई गाय की पीठ पर सवारी करने के मनसूबे बनाती है ।यही नही ,जब उसका रास्ता रोकने की हिमाकत करता कोई सांड खडा होता है, वह उसके नीचे से निकल कर ऐसे खिलखिलाती है जैसे कोई बाजी जीत गई हो ।माँ बेपरवाह है तो क्या ,जानवर चाँदनी का पूरा खयाल रखते है ।इस मासूम परी को शब्दों में बाँधना आसान नही है ।मैंने तो बस कोशिश की है --

(1)
कुँए की मुडेर पर,
धूप के आते-आते
उतर आती है चाँदनी भी
कोठरी के क्षितिज से।
बिखर जाती है पूरी गली में ।
धूप ,जो---
उसके दूधिया दाँतों से झरती है ।
(2)
चाँदनी सुबह-सुबह,
भर जाती है मन में
नल से फूटती
जलधार की तरह
मन--- जो रातभर लगा रहता है ,
कतार में ।
खाली खडखडाते बर्तनों सा,
भरने कुछ उल्लास,ऊर्जा ।
दिन की अच्छी शुरुआत के लिये ।
(3)
भरी दोपहरी में,
चाँदनी नंगे पाँव ही
टुम्मक-टुम्मक..
चलती है बेपरवाह सी
तपती धरती पर
आखिर ,कौन है वह,
जो बिछा देता है ,
हरी घास या अपनी नरम हथेली,
उसके पाँव तले ।
(4)
दूसरे बच्चों की तरह,
उसके कपडे साफ नही हैं
बाल सुलझे सँवरे नही हैं ।
पीने-खाने को दूध-बिस्किट नही है ।
और दूसरे बच्चों की तरह ,
मचलने पर उसे
टॅाफी या खिलौने नही मिलते है।
पर दूसरे तमाम बच्चों से ज्यादा,
हँसती-खिलखिलाती और खेलती है।
वह नन्ही बच्ची---चाँदनी ।
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और अन्त में ------------
चिडियों की चहकार है चाँदनी।
ताजा अखबार है चाँदनी ।
गजक मूँगफली बेचने वाले के गले की खनक,
दूधवाले की पुकार है चाँदनी ।

पहली फुहार जैसी।
फूलों के हार जैसी ।
भर कर दुलार छूटी ,
दुद्धू की धार जैसी ।





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6 टिप्‍पणियां:

  1. चाँदनी उजाला है ।
    ओस का दुशाला है ।
    भूखी सी आँखों को ,
    पहला निवाला है ।
    ---------------------- इन पंक्तियों को हटा दें और चांदनी को फैलने दें।

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  2. इसी को तो कहते हैं परख। शुक्रिया उत्साही जी ।

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  3. जी नही , यह चाँदनी चाँद से उतरी किरण नही है ।और ना ही कोई रूपसी युवती ।यह तो सामने शौचालय से लगी खोली में रहने वाली पारबती की डेढ-दो साल की बेटी है ,जो घर से ज्यादा गली में रहती है ।गाती, खेलती,गिरती,,रोती....।

    गिरिजा कुलश्रेष्ठ ji!
    हर वह बात जो दिल से निकलती है, असर रखती है.
    आप ने सच्चाई को जिस खूबसूरती से पेश किया है उसके लिए आप बधाई की पात्र हैं.

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  4. भावनात्मक लिखा है...बधाई
    http://merajawab.blogspot.com
    http://kalamband.blogspot.com

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  5. "दिमाग की बजाय दिल से सोचने व करने की आदत के कारण प्रायः हाशिये पर ही रहती आई हूँ"
    ...

    आपको पढना बहुत अच्छा लगा

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  6. इस नए चिट्ठे के साथ ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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