शनिवार, 3 मार्च 2012

सृजन की पीडा का फल


सुबह से ही उसकी हालत मुझे बेचैन कर रही थी । बार बार उसका उठना फिर पसर जाना ,मुँह से झाग गिरना ..सब कुछ व्यथित कर देने वाला । यशपाल जी की एक कहानी में आया शीर्षक साकार हो रहा था--सृजन की पीडा । तब तक उसके आसपास कोई नही था और मुझे स्कूल जाना था लेकिन उस समय मेरा सारा ध्यान सिर्फ उसकी पीडा पर था । किसी तरह उसके घरवालों को बुलवाया । यह बडे खेद की बात है कि एक तरफ लोग गाय को माता कहते हैं पूजा करते हैं पर उसका ध्यान नहीं रखते । यही हाल कन्या और नदी का भी है । खैर...

और तीन-चार घंटे की पीडा के बाद जो फल सामने आया उसने रोम-रोम पुलक से भर दिया । सफेद रेशमी रोओं वाला बछडा । वह निरुपमा माँ मुग्ध हुई अपने शिशु को प्यार कर रही थी और हमारी ग्यासो ( कामवाली) मुझे कहानी सुना रही थी कि --'"देखो दीदी गाय बिना सहायता के 'ब्या' गई जबकिन औरतों को कितनी मदद चइये होती है । कहते हैं कि एक बार एक गाय 'ब्या' रही थी उसने औरत से कहा कि मेरी पीठ सहला दे । औरत ने कहा कि तेरी पीठ सहलाऊँ कि अपना काम देखूँ । मुझे 'टैम' नही है । गाय ने कहा कि बहन , मेरा तो भगवान है पर तू जब बच्चा जनेगी तो तुझे जरूर मदद की जरूरत पडेगी । मेरा जाया तो 'छिन, भर में ही खडा हो जाएगा पर तेरे बच्चे को खडे होने में नौ महीने लग जाएंगे । भगवान ने गाय की सहायता की । और देखो दीदी औरत को 'जादा 'कस्ट' उठाना पडता है । गाय का ही तो 'सराप' लगा है । है कि नही ?"
जो भी हो ,चाहे मानवी हो या अन्य , माँ तो माँ होती है । कहानी की यह सच्चाई है कि कुछ ही देर बाद वह सद्यजात बछडा चलने को तैयार था । साफ-सुथरा मोहक । तब मुझे अपने गबरू की भी याद आई जो बेहद खूबसूरत और प्यारा था । मेरी पहली बाल कहानी 'इन्तज़ार' का नायक भी बना था लेकिन आठ दिन का ही जीवन जीकर चल बसा था । यह कहानी चकमक के नवम्बर 1988 के अंक में श्री राजेश उत्साही ने प्रकाशित की थी ।
सच है कि सिर्फ माँ ही होती है जो इतनी सघन पीडा सहती है तब कहीं इतना मीठा फल पाती है । क्योंकि वह एक जीवन को साकार रूप देती है ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. घर में गायें जब इस अवस्था में होती थीं, रात भर वहीं बैठा रहता था..बहुत कष्ट होता है सृजन में।

    जवाब देंहटाएं
  2. माँ के इस चरित्र को बाखूबी लिखा है आपने ... ये सर्जन और इसका मिश्रित आनद केवल नारी मन ही समझ सकती है ...

    जवाब देंहटाएं
  3. मैंने तो एक पूरा खानदान देखा है गायों का एक गाय और और उसके नाती-पोते, हम बच्चों के साथ साथ.. एक बार बहुत कष्ट में थी अपनी "ललकी गाय".. मैंने उसके गालों पर अपना हाथ रखा और अपना गाल सटाया तो उसके गाढे-गाढे आंसू निकलने लगे!! माँ तो है ही गायें..
    और वो श्राप वाली कहानी तो सचमुच बड़ी प्रेरक लगी!!

    जवाब देंहटाएं
  4. गिरिजा जी, क्या कहूं! आपकी भावपूर्ण सशक्त अभिव्यक्ति के बारे में।
    ह्रदय से निकली ह्रदय को छूने वाली पोस्ट।

    जवाब देंहटाएं