सोमवार, 5 मार्च 2012

दुःखान्त

(1) "दुखान्त यह नही होता कि रात की कटोरी को कोई जिन्दगी के शहद से न भर सके और वास्तविकता के होंठ कभी उस स्वाद को चख न सकें ।
दुःखान्त यह होता है कि रात की कटोरी से चन्द्रमा की कलई उतर जाए और उसमें पडी कल्पना कसैली हो जाए ।

(2) दुःखान्त यह नही होता कि जिन्दगी की डगर पर समाज के बन्धन काँटे बिखेरते रहें और आपके पाँव लहूलुहान होते रहें ।
दुःखान्त यह होता है कि आप लहूलुहान पैरों से उस जगह जाकर खडे होजाएं जहाँ से आपको कोई रास्ता बुलावा ही न दे ।

(3) दुःखान्त यह नही होता कि आप इश्क के ठिठुरते शरीर के लिये उम्र भर गीतों के पैरहन सीते रहें ।
दःखान्त यह होता है कि उन पैरहनों को सीने के लिये आपके विचारों का धागा चुक जाए ।और कलम की सुई का छेद टूट जाए ।

(4) दुःखान्त यह नही होता कि किस्मत से आपके साजन का नाम पता न पढा जाए ।
दुःखान्त यह होता है कि आप अपने प्रिय को उम्र की सारी चिट्ठी लिखलें और आपसे प्रिय का नाम पता खोजाय । "

'रसीदी टिकट '(अमृता प्रीतम) से ।
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सच है । धागा चुक जाना ,कलम टूट जाना , नाम पता खोजाना और गलत पते पर चिट्ठी जाना बहुत बडी विडम्बनाएं हैं जीवन की ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. सच है, गहरे दुख हैं जीवन में दुख है, अन्त है..

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  2. अमृता प्रीतम मुझे बहुत ज्यादा पसंद हैं और रसीदी टिकट बेहतरीन किताब!!

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  3. बहुत सुंदर विचारों की अभिव्यक्ति....
    होली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...

    RECENT POST...काव्यान्जलि ...रंग रंगीली होली आई,

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  4. सार्थक कोट्स!! अमृता जी की बात ही अलग है और आपने कुछ नायाब कथन चुनकर प्रस्तुत किये!!

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  5. बहुत गहरे भावयुक्त विचार प्रस्तुत करने के लिए आभार।
    होली की ढेर सारी शुभकामनाएं।

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  6. अमृता जी का तो जवाब ही नहीं...

    शुक्रिया गिरिजा जी...
    सांझा करने के लिए...
    सादर.

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