दुःखान्त यह होता है कि रात की कटोरी से चन्द्रमा की कलई उतर जाए और उसमें पडी कल्पना कसैली हो जाए ।
(2) दुःखान्त यह नही होता कि जिन्दगी की डगर पर समाज के बन्धन काँटे बिखेरते रहें और आपके पाँव लहूलुहान होते रहें ।
दुःखान्त यह होता है कि आप लहूलुहान पैरों से उस जगह जाकर खडे होजाएं जहाँ से आपको कोई रास्ता बुलावा ही न दे ।
(3) दुःखान्त यह नही होता कि आप इश्क के ठिठुरते शरीर के लिये उम्र भर गीतों के पैरहन सीते रहें ।
दःखान्त यह होता है कि उन पैरहनों को सीने के लिये आपके विचारों का धागा चुक जाए ।और कलम की सुई का छेद टूट जाए ।
(4) दुःखान्त यह नही होता कि किस्मत से आपके साजन का नाम पता न पढा जाए ।
दुःखान्त यह होता है कि आप अपने प्रिय को उम्र की सारी चिट्ठी लिखलें और आपसे प्रिय का नाम पता खोजाय । "
'रसीदी टिकट '(अमृता प्रीतम) से ।
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सच है । धागा चुक जाना ,कलम टूट जाना , नाम पता खोजाना और गलत पते पर चिट्ठी जाना बहुत बडी विडम्बनाएं हैं जीवन की ।
सभी विचार चिंतन योग्य हैं।
जवाब देंहटाएंसच है, गहरे दुख हैं जीवन में दुख है, अन्त है..
जवाब देंहटाएंसंग्रहणीय विचार।
जवाब देंहटाएंअमृता प्रीतम मुझे बहुत ज्यादा पसंद हैं और रसीदी टिकट बेहतरीन किताब!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विचारों की अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंहोली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...
RECENT POST...काव्यान्जलि ...रंग रंगीली होली आई,
सार्थक कोट्स!! अमृता जी की बात ही अलग है और आपने कुछ नायाब कथन चुनकर प्रस्तुत किये!!
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भावयुक्त विचार प्रस्तुत करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंहोली की ढेर सारी शुभकामनाएं।
अमृता जी का तो जवाब ही नहीं...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया गिरिजा जी...
सांझा करने के लिए...
सादर.
Well quoted!
जवाब देंहटाएंRegards,